राज्य का रुतबा इंसान से बड़ा हो, यह रघुवीर सहाय को बर्दाश्त नहीं. वह इंसान से उसकी आज़ादी की इच्छा छीन लेता है. हर व्यक्ति को आज़ादी का एहसास हो और वैसे मौके ज़्यादा से ज़्यादा पैदा कर सके, जिनमें वह खुद को ख़ुदमुख़्तार देख सके, उसे किसी सत्ता के अधीन और निरुपाय होने का बोध न रहे, यह हर मानवीय उपक्रम और साहित्य का भी दायित्व है.
कविता का पूरा अर्थ हासिल कर पाना और संप्रेषणीयता का प्रश्न, हर कवि को इन दो कसौटियों पर अनिवार्यतः कसा जाता था. केदारनाथ सिंह की कविता, हर खरी कविता की तरह इन दोनों के प्रलोभन से बचती थी.
वीडियो: जब कभी कोई पुरुष कलम उठाता है तो मान लिया जाता है कि उस कलम से जो भी लिखेगा, वह साहित्य समाज का दर्पण कहलाएगा, लेकिन जब कोई महिला कलम उठाती है, तब ऐसा नहीं होता. महिला लेखन की चुनौतियों पर प्रकाशक मीरा जौहरी और कथाकार गीताश्री से दामिनी यादव की बातचीत.
वीडियो: मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी की पुण्यतिथि पर जाने-माने वैज्ञानिक, कलमकार, फिल्म निर्माता गौहर रज़ा से दामिनी यादव की बातचीत.
वीडियो: साहित्यकार प्रेमंचद ने हिंदी साहित्य को ज़मीन पर पांव टिकाना सिखाया और कड़वी ज़मीनी सच्चाई से रूबरू करवाया. 1918 से 1936 के कालखंड को 'प्रेमचंद युग’ कहा जाता है लेकिन यदि उनके समय और आज के समाज की समानताएं देखी जाएं तो लगता है कि प्रेमचंद युग अभी समाप्त ही नहीं हुआ है.
प्रेमचंद महात्मा गांधी की आंदोलन पद्धति के मुरीद थे. सशस्त्र आतंक के ज़रिये क्रांति या मुक्ति के नारे प्रेमचंद का खून गर्म नहीं कर पाते क्योंकि वे हिंसा के इस गुण या अवगुण को पहचानते थे कि वह कभी भी शुभ परिणाम नहीं दे सकती.
पद्म विभूषण से सम्मानित देश की प्रख्यात कलाविद् एवं राज्यसभा की पूर्व मनोनीत सदस्य कपिला वात्स्यायन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की संस्थापक सदस्य और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की आजीवन ट्रस्टी भी थीं.
पुण्यतिथि विशेष: सत्ता और जनता, जब दोनों एकमेक हो जाते हैं, वह बुद्धि के लिए सबसे ख़तरनाक समय होता है.
जून महीने के आख़िरी हफ्ते में मासिक पत्रिका हंस के संपादक संजय सहाय ने कहा कि प्रेमचंद यथास्थितिवादी, प्रतिगामी थे और उनकी 25-30 कहानियों को छोड़कर अधिकतर कहानियां ‘कूड़ा’ हैं.
मेरा जीवन क्षणिक है, मैं इस अनंत में एक कण हूं लेकिन मैं हूं और मेरे होने का अर्थ है, अपने बारे में यह नवलजी का विश्वास था और इसका प्रमाण वे तमाम प्रकाशित और अप्रकाशित कृतियां हैं, जिनमें वे जीवित हैं.
हरिशंकर परसाई व्यंग्य के विषय में ख़ुद कहा करते थे कि व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है. उनकी रचनाएं उनके इस कथ्य की गवाह हैं.
विशेष: प्रेमचंद अगर आज के हालात, ख़ासकर तथाकथित संस्कृति बचाने वालों को देखते, तो शायद अवसाद में चले जाते. उन्हें संस्कृति राजनीतिक स्वार्थ-सिद्धि के लिए इस्तेमाल होने वाला महज़ साधन लगती थी और उनके अनुसार यही तथाकथित संस्कृति, सांप्रदायिकता को भी स्वार्थ पूरे करने के अवसर देती थी.
गिरीश कर्नाड के नाटकों में बेहद सुंदर संतुलन देखने को मिलता है, जहां वह भारत के तथाकथित स्वर्णिम अतीत या पौराणिक मिथक को कच्चे माल की तरह उपयोग तो करते हैं, पर उसके मूल में कोई समसामयिक समस्या या वर्तमान समाज के विरोधाभास ही निहित रहते हैं.
विचारधारा की जकड़न से विचारों की स्वतंत्रता की नवल जी की यात्रा कष्टसाध्य रही. उन्हें ख़ुद को ही कई जगह अस्वीकार करना पड़ा. लेकिन चूंकि उनकी प्रतिबद्धता रचनाकार से भी आगे बढ़कर रचना से थी, और विचारधारा से तो कतई नहीं, सो उन्हें ख़ुद को बदलने में संकोच नहीं हुआ.
आज उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मदिन है. ये मार्मिक संस्मरण कहानीकार निर्मल वर्मा ने उन्हें याद करते हुए लिखा था. इसे रेणु की पुस्तक ‘ऋणजल धनजल’ में शामिल किया गया है.