अगर कोई हिंदी नहीं बोलता तो देश उसका नहीं, उसे कहीं और चले जाना चाहिए: यूपी के मंत्री

उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद ने कहा कि जिसे हिंदुस्तान में रहना है उसे हिंदी से प्रेम करना होगा. अगर ऐसा नहीं है तो माना जाएगा वो विदेशी हैं या विदेशी ताक़तों से उनका संबंध है.

हिंदुस्तान में चल रही भाषाई सियासत पर गांधी का क्या नज़रिया था…

महात्मा गांधी का मानना था कि अगर हमें अवाम तक अपनी पहुंच क़ायम करनी है तो उन तक उनकी भाषा के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है. इसलिए वे आसान भाषा के हामी थे जो आसानी से अधिक से अधिक लोगों की समझ में आ सके. लिहाज़ा गांधी हिंदी और उर्दू की साझी शक्ल में हिंदुस्तानी की वकालत किया करते थे.

बापू के नाम: आज आप जैसा कोई नहीं, जो भरोसा दिला सके कि सब ठीक हो जाएगा

जयंती विशेष: जिस दौर में गांधी को ‘चतुर बनिया’ की उपाधि से नवाज़ा जाए, उस दौर में ये लाज़िम हो जाता है कि उनकी कही बातों को फिर समझने की कोशिश की जाए और उससे जो हासिल हो, वो सबके साथ बांटा जाए.

अभी गांधी की बात करना क्यों ज़रूरी है?

आज हमारे सामने ऐसे नेता हैं जो केवल तीन काम करते हैं: वे भाषण देते हैं, उसके बाद भाषण देते हैं और फिर भाषण देते हैं. सार्वजनिक राजनीति से करनी और कथनी में केवल कथनी बची है. गांधी उस कथनी को करनी में तब्दील करने के लिए ज़रूरी हैं.

जब चार्ली चैप्लिन मिलने पहुंचे गांधी से

महात्मा गांधी से मिलने के बाद चार्ली चैप्लिन के शब्द थे, ‘अंततः जब वे (गांधी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारे गूंज उठे. उस छोटी तंग गरीब बस्ती में क्या अजब दृश्य था जब एक बाहरी शख़्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जयघोष के बीच दाख़िल हो रहा था.’

मैंने आज़ादी के बाद जैसा हिंदुस्तान देखा था, उसी हिंदुस्तान में मरना चाहता हूं: मुनव्वर राना

जन्मदिन विशेष: इस सियासी उथल-पुथल में एक बुजुर्ग की हैसियत से मुझे ख़ौफ़ लगता है कि कहीं हिंदुस्तान में ज़बान, तहज़ीब और मज़हब के आधार पर कई हिंदुस्तान बन जाएं. यह बहुत अफ़सोसनाक होगा.

‘साहिर की शख़्सियत और उनकी शायरी एक-दूसरे में हूबहू उतर गए थे’

पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.

‘हिंदुस्तान की सरज़मीं बहुत देर तक नफ़रत बर्दाश्त नहीं कर सकती’

मशहूर शायर और यूपी विधान परिषद सदस्य वसीम बरेलवी ने कहा, हमारी विचारधारा एक है. इतनी भाषाओं, मज़हब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे.