पिछले साल सितंबर में तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ द्वारा सनातन धर्म की अवधारणा पर आयोजित सम्मेलन में राज्य कैबिनेट में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा था कि सनातन धर्म डेंगू और मलेरिया की तरह है, जिसे ख़त्म करने की ज़रूरत है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘सांस्कृतिक मार्क्सवादी’ और ‘वोक पीपल’ (Woke People) को लेकर संघ सुप्रीमो की ललकार एक तरह से उत्पीड़ितों की दावेदारी और स्वतंत्र चिंतन के प्रति हिंदुत्व वर्चस्ववाद की बढ़ती बेचैनियों को ही बेपर्द करती है.
विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अपने आक्रामक हिंदुत्व कहें या बहुसंख्यकवाद की बिना पर समता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे उदार संवैधानिक मूल्यों को आक्रांत कर देश के राजनीतिक विमर्श को इस हद तक बदल दिया है कि हतप्रभ विपक्ष इन मूल्यों की बिना पर उससे जीतने का विश्वास ही खो बैठा है.
छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा राम वनगमन पथ परियोजना के क्रियान्वयन का मक़सद समाज में लोगों के बीच जातिगत और लैंगिक भूमिकाओं की जड़ों को और भी मज़बूत करना था. इसका क्रियान्वयन हिंदुत्व सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विस्तार के अलावा और कुछ भी नहीं था. असल में कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व एक धूर्ततापूर्ण नाम है.
तमिल फिल्म अन्नपूर्णी, जिसे नेटफ्लिक्स ने हटा दिया है, को लेकर उपजा विवाद हुआ ही नहीं होता, अगर फिल्म के दृश्य से आहत होने वाले कथित धार्मिकों ने वाल्मीकि रामायण पढ़ ली होती.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
जो समाजवादी पार्टी 1993 के दौर से भी पहले से धर्म और राजनीति के घालमेल के पूरी तरह ख़िलाफ़ रही और धर्म की राजनीति के मुखर विरोध का कोई भी मौका छोड़ना गवारा नहीं करती रही है, अब उसके लिए धर्म अनालोच्य हो गया है.
बीते दिनों आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों और उनके प्रतिनिधि चुनने की प्राथमिकताओं पर लंबी बहस चली, तमाम सवाल उठाए गए. क्या वजह है कि इन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मिजाज़ में इतना अंतर है?
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विचारधारा से प्रतिबद्ध वही लेखक बड़े या महान हुए जिन्होंने अपने साहित्य में अपनी ही विचारधारा का अतिक्रमण करने का दुस्साहस किया, कह सकते हैं, अपने साहित्य-विचार के पक्ष में. यह अतिक्रमण न विरोध होता है, न ही विचलन. शमशेर और मुक्तिबोध ऐसे अतिक्रमण के उजले उदाहरण हैं.
हिंदुत्व की पूरी पिच भाजपा की तैयार की हुई है. इस पर हाथ-पांव मारने की बेचैन कोशिश में तात्कालिक लाभ होता दिख सकता है, पर दूरगामी परिणाम देखा जाए तो इसके फायदे के बजाय नुक़सान ही ज़्यादा नज़र आते हैं.
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ इस विपक्षी गठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला है.
विगत कुछ सालों से कोशिश चल रही है कि ऐसे नैरेटिव को वैधता मिले जो हिंदुत्व के नज़रिये के अनुकूल हो, लेकिन जगह-जगह उसे चुनौती भी मिल रही है. शायद इस पृष्ठभूमि में संघ-भाजपा को मुफ़ीद लग रहा है कि वे सार्वजनिक पुस्तकालयों पर क़ब्ज़ा क़ायम करें और अपनी एकांगी समझदारी के पक्ष में जनमत तैयार करें.
लेखक और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर अचिन वानाइक ने कहा कि फिलिस्तीन पर एक व्याख्यान को लेकर हरियाणा स्थित ओपी जिंदल विश्वविद्यालय ने उनसे खेद जताने के लिए कहा है. विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया है कि इस दौरान हिंदुत्व और इसके मुस्लिम विरोधी होने पर की गई उनकी टिप्पणी आपत्तिजनक थी.
मध्य प्रदेश में चौदहवीं विधानसभा (2018-2023) ने भाजपा और कांग्रेस, दो सरकारों को देखा, जहां जनता ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, दल-बदल तो देखे ही, साथ ही बढ़ती कट्टरता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को पैठ बनाते देखा. इन पांच सालों के घटनाक्रमों से प्रदेश में भविष्य की राजनीति की दिशा समझी जा सकती है.
सच यह है कि गोलवलकर की कथनी का तरीका भले ही अप्रचलित हो गया हो, पर उनका एजेंडा आज भी सामाजिक परिदृश्य पर हावी है.