विगत कुछ सालों से कोशिश चल रही है कि ऐसे नैरेटिव को वैधता मिले जो हिंदुत्व के नज़रिये के अनुकूल हो, लेकिन जगह-जगह उसे चुनौती भी मिल रही है. शायद इस पृष्ठभूमि में संघ-भाजपा को मुफ़ीद लग रहा है कि वे सार्वजनिक पुस्तकालयों पर क़ब्ज़ा क़ायम करें और अपनी एकांगी समझदारी के पक्ष में जनमत तैयार करें.
स्मृति शेष: प्रख्यात कला-इतिहासकार और भारतीय कला-इतिहास के मर्मज्ञ बीएन गोस्वामी नहीं रहे. यह उन जैसे साधक विद्वान के लिए ही संभव था कि वह कला में मौन के महत्व को रेखांकित कर सके.
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कक्षा 11वीं और 12वीं के छात्रों के लिए अतिरिक्त किताबें जारी कीं, जिनमें वे हिस्से भी शामिल हैं, जिन्हें हाल ही में एनसीईआरटी द्वारा हटा दिया गया था. उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी ने ग़लत तरीके से किताबों से ज़रूरी हिस्से हटा दिए हैं, जिससे उनका इतिहास और समाज को देखने का नज़रिया बदल जाएगा.
सरकार जिस उमर ख़ालिद उनके मज़हब तक सीमित कर देना चाहती है, पर वो एक गंभीर शोधार्थी हैं, जिनकी पीएचडी का विषय सिंहभूम का आदिवासी समाज हैं. उनकी थीसिस में लिखा गया हर शब्द एक ऐसे शख़्स को हमारे सामने लाता है, जो बेहद गहराई से लोकतंत्र और इसके अभ्यासों के साथ जिरह कर रहा है.
स्मृति शेष: भारतीय कला, संग्रहालयों की मर्मज्ञ इतिहासकार और जेएनयू शिक्षक कविता सिंह रीढ़विहीन होती जा रही भारत की अकादमिक दुनिया में उन बिरले लोगों में से थीं, जिन्होंने अकादमिक स्वायत्तता का पुरज़ोर समर्थन किया. अकादमिक दुर्दशा के हालिया दौर में उनका असमय चले जाना बड़ी क्षति है.
देश के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े 33 शिक्षाविदों और राजनीति विज्ञान के जानकार, जो एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें तैयार करने की प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों पर जुड़े रहे हैं, का कहना है कि परिषद द्वारा इन किताबों में किए गए बदलावों के बाद वे यह दावा नहीं कर सकते कि ये उनके द्वारा तैयार की गई किताबें हैं.
शिक्षाविद सुहास पलशिकर और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से इसकी राजनीति विज्ञान की टेक्स्टबुक से उनका नाम बतौर ‘मुख्य सलाहकार’ हटाने को कहा है. उनका कहना है कि ‘युक्तिसंगत’ बनाने के नाम पर लगातार सामग्री हटाने से 'विकृत' हुई किताबों से नाम जुड़ा देखना उनके लिए शर्मिंदगी का सबब है.
बनारस का ज़िक्र इसकी सुबहों के बिना अधूरा है. जहां शाम-ए-अवध इतिहास के उतार-चढ़ावों के बीच कई बार बदलने को मजबूर हुई, सुबह-ए-बनारस जाने कितनी सदियों से वैसी ही है. सूरज की पहली किरण गंगा को छूती हुई घाटों का स्पर्श करती है तो वे सोने के लगने लगते हैं और चिड़ियों की चहचहाहट सुहागे का काम करती है.
बीते 28 मई को अभिनेता रणदीप हुडा ने वीडी सावरकर के जीवन पर बनी उनकी फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' का एक फोटो सोशल मीडिया पर डाला था, जिसके साथ लिखा गया था कि सावरकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत थे.
मुंबई के सबसे बड़े थिएटरों में से एक इरोज़ को मल्टीप्लेक्स और रिटेल आउटलेट में तब्दील किए जाने की सूचना है और इस बात से इसके चाहने वाले ख़ुश नहीं हैं.
क्रमिक विकास (एवोल्यूशन) जीव विज्ञान की धुरी है और डार्विनवाद इसे समझने की बुनियाद. इन्हें स्कूल के पाठ्यक्रम से निकालना विज्ञान की कक्षा के इकोसिस्टम को बिगाड़ना है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: साहित्य उन शक्तियों में से नहीं रह गया जो मानवीय स्थिति को बदल सकती हैं- फिर भी हमें ऐसा लिखना चाहिए मानो कि हमारे लिखने से स्थिति बदल सकती है.
क्रमागत उन्नति का सिद्धांत या थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन जीव विज्ञान को देखने का एक अनिवार्य लेंस है. इस विषय को समझने के लिए क्रमागत उन्नति को समझना बेहद ज़रूरी है.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) कक्षा 11वीं की किताब से भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के सभी संदर्भों को भी हटा दिया है. जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी शर्त हटाने के साथ इतिहास की किताब से मुग़ल, गुजरात दंगों और महात्मा गांधी पर कुछ संदर्भ हटाए गए हैं.
एनसीईआरटी ने दसवीं की विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से चार्ल्स डार्विन, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समेत जैविक विकास (एवोल्यूशन) संबंधी सामग्री को हटाया है. इसे वापस सिलेबस में शामिल करने की मांग करते हुए 1,800 से अधिक वैज्ञानिकों और शिक्षकों ने कहा कि वे विज्ञान की स्कूली शिक्षा में किए 'इस तरह के ख़तरनाक बदलावों' से असहमत हैं.