नरेंद्र मोदी के आठ साल के कार्यकाल का सार- बांटो और राज करो

'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' और 'सबका साथ-सबका विकास' सरीखे नारे देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने शासन में इस पर अमल करते नज़र नहीं आते हैं.

भाजपा और हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए मुग़ल नए खलनायक हैं

मुग़ल शब्द को भारतीय मुसलमानों को इंगित करने वाला प्रॉक्सी बना दिया गया है. पिछले आठ सालों में, इस समुदाय को- आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि शारीरिक तौर पर- निशाना बनाना न सिर्फ उन्मादी गिरोहबंद भीड़, बल्कि सरकारों की भी शीर्ष प्राथमिकता बन गई है.

प्रोफेसर भैरवी प्रसाद साहू: क्षेत्रीय इतिहास के पैरोकार

स्मृति शेष: इस महीने की शुरुआत में प्रसिद्ध इतिहासकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक भैरवी प्रसाद साहू का निधन हो गया. साहू ने अपने लेखन में राज्य और धर्म के अंतरसंबंध, धार्मिक कर्मकांड, स्थानीयताओं और स्थानीय समाजों के विकास की ऐतिहासिक प्रक्रिया को रेखांकित किया है.

आलोचकों को गांधी के प्रासंगिक पहलुओं पर नज़र डालने की ज़रूरत: रामचंद्र गुहा

इतिहासकार एवं लेखक रामचंद्र गुहा ने के एक कार्यक्रम में कहा कि गांधी अपने जीवनकाल में सभी के थे, जीवन के बाद वह किसी के नहीं हैं. गांधी पहचान की राजनीति से परे हैं. वह एक सार्वभौमिक हस्ती हैं. दुनिया के कई हिस्सों में उन्हें मान्यता एवं स्वीकार्यता हासिल है.

हिंदुत्व के पैरोकार महान अशोक से इतने ख़फ़ा क्यों रहते हैं

अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.

यशपाल: ‘मैं जीने की कामना से, जी सकने के प्रयत्न के लिए लिखता हूं…’

विशेष: यशपाल के लिए साहित्यिकता अपने विचारों को एक बड़े जन-समुदाय तक पहुंचाने का माध्यम थी. पर इस साहित्यिकता का निर्माण विद्रोह और क्रांति की जिस चेतना से हुआ था, वह यशपाल के समस्त लेखन का केंद्रीय भाव रही. यह उनकी क्रांतिकारी चेतना ही थी जो हर यथास्थितिवाद पर प्रश्न खड़ा करती थी.

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्य से परे दिए अपने वक्तव्यों पर कभी शर्मिंदगी नहीं होती

बीते दिनों गोवा में दिए एक भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने पुर्तगाली शासन संबंधी ग़लत ऐतिहासिक तथ्यों को पेश किया. इसके बाद उनके भाषण लेखकों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाज़मी था, लेकिन लगता है कि उन्हें यह भरोसा हो चला है कि यशस्वी प्रधानमंत्री के मुख से निकली बात की पड़ताल कोई नहीं करता.

आईआईटी खड़गपुर द्वारा जारी नए साल के कैलेंडर को लेकर क्यों हो रहा है विवाद

आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम द्वारा हाल ही में जारी साल 2022 के एक कैलेंडर में आर्यों के हमले की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो ग़लत है. इसे लेकर जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं.

यूपी: शिक्षा आयोग की वेबसाइट पर अकबर इलाहाबादी का नाम ‘प्रयागराज’ होने के बाद हैकिंग का दावा

उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की वेबसाइट पर मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी, नूह नारवी, तेग इलाहाबादी, शबनम नकवी और राशिद इलाहाबादी के नाम में ‘इलाहाबादी’ की जगह ‘प्रयागराज’ लिखा पाया गया था. आयोग का कहना है कि वेबसाइट को हैकर्स ने निशाना बनाकर इस तरह की छेड़छाड़ की.

पाठ्यपुस्तकों में स्वतंत्रता सेनानियों के ग़लत चित्रण को सुधारा जाना चाहिए: संसदीय समिति

‘स्कूल की पाठ्यपुस्तकों की सामग्री और डिज़ाइन में सुधार’ विषय पर स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कई ऐतिहासिक शख़्सियतों और स्वतंत्रता सेनानियों को अपराधियों के रूप में ग़लत तरीके से चित्रित किया गया है, इसे ठीक किया जाना चाहिए और उन्हें हमारी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उचित सम्मान दिया जाना चाहिए.

पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम टंट्या भील रेलवे स्टेशन होगा: शिवराज सिंह चौहान

टंट्या भील को आदिवासी आदर्श एवं मध्य प्रदेश का जननायक कहा जाता है. मध्य प्रदेश सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने इसी महीने भोपाल में स्थित देश के सबसे आधुनिक हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया है. रानी कमलापति गोंड शासक की पत्नी थीं.

यूजीसी द्वारा स्नातक के प्रस्तावित इतिहास पाठ्यक्रम के विरोध में उतरे इतिहासकार

इरफ़ान हबीब, आदित्य मुखर्जी और पंकज झा जैसे प्रमुख इतिहासकारों ने यूजीसी द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम की आलोचना करते हुए इसे इतिहास को 'विकृत करने' का प्रयास कहा है, साथ ही एक विषय के तौर पर इतिहास का महत्व कम करने का आरोप लगाया है.

क्या कोविड महामारी को सामाजिक बदलाव लाने के मौक़े के तौर पर देखा जा सकता है?

बीते कुछ सालों से बहुसंख्यकवाद पर सामाजिक ऊर्जा और विचार दोनों ख़र्च किए गए, लेकिन आज संकट की इस घड़ी में बहुसंख्यकवादी इंफ्रास्ट्रक्चर कितना काम आ रहा है? महामारी ने यह अवसर दिया है कि अपनी प्राथमिकताएं बदलकर संकुचित, उग्र और छद्म राष्ट्रवाद को त्याग दिया जाए.

लाल बहादुर वर्मा: जीवन प्रवाह में बहते एक इतिहासकार का जाना…

स्मृति शेष: लाल बहादुर वर्मा इतिहास की आंदोलनकारी और विचारधर्मी भूमिका के समर्थक थे. वे किताब से ज़्यादा इंसानों में विश्वास करते थे. केवल बैठे रहकर वे किसी बदलाव की उम्मीद नहीं करते थे, वे भारत के हर लड़ते हुए मनुष्य के साथ खड़े थे.