इनकम टैक्स जांच रिपोर्ट में नीरव मोदी द्वारा बोगस खरीद, शेयरों का भारी मूल्यांकन, रिश्तेदारों को संदिग्ध भुगतान, संदिग्ध ऋण जैसे कई मामले उठाए गए थे. हालांकि इस रिपोर्ट को सीबीआई, ईडी जैसी महत्वपूर्ण जांच एजेंसियों से साझा नहीं किया गया था.
राघव बहल ने इस मामले में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर चिंता जताई और उनसे सहयोग की मांग की है.
जन गण मन की बात की 283वीं कड़ी में विनोद दुआ आयकर रिटर्न दाख़िल करने के लिए आधार की ज़रूरत और नफ़रत की राजनीति पर चर्चा कर रहे हैं.
सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो ने एसएससी के कुछ अधिकारियों पर भी परीक्षा के लिए जारी प्रवेश पत्रों में विसंगतियों का सत्यापन किए बगैर आरोपियों को नियुक्ति पत्र जारी करने का आरोप लगाया है.
आधार क़ानून को एक धन-विधेयक के तौर पर पारित किया गया था और इसका संबंध सिर्फ़ भारत की संचित निधि से जुड़ी चीज़ों से होना चाहिए. लेकिन, क्या कोई व्यवस्था के भीतर इस बात पर ध्यान देता है?
दो हज़ार करोड़ के फंड के साथ पचास करोड़ लोगों को बीमा देने की करामात भारत में ही हो सकती है. यहां के लोग ठगे जाने में माहिर हैं. दो बजट पहले एक लाख बीमा देने का ऐलान हुआ था, आज तक उसका पता नहीं है.
नोटबंदी से अमीरों का काला धन गरीबों को देने का प्रधानमंत्री मोदी का महान वादा एक डरावने मज़ाक में बदल चुका है क्योंकि पिछले साल भर में देश के कमज़ोर तबके पर नोटबंदी की सबसे ज़्यादा मार पड़ी है.
वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार बता रहे हैं कि टैक्स वसूलने को लेकर सरकार और व्यापारियों के बीच एक तरह की जंग चल रही है. व्यापारी डर के मारे बोल नहीं पा रहे हैं. कैमरा आॅन होता है तो तारीफ करने लगते हैं.
आयकर विभाग और सीबीआई भारत की राजनीति तय कर रहे हैं. भ्रष्टाचार तो मिटा नहीं, राजनीति तय कर देना भी कम बड़ा योगदान नहीं है.
जीएसटी को लागू किए जाने से पहले सरकार ने छोटे कारोबारियों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया. किसी को जीएसटी के जटिल प्रारूप के कारण छोटे व्यापारियों पर पड़नेवाले प्रभावों का आकलन करने की फुर्सत नहीं है, जिन पर वकील और सीए अभी से ही शिकारी बाज़ की तरह झपट पड़े हैं.
दशकों से उत्तर-पूर्व और कश्मीर के मीडिया संस्थान अपनी आज़ादी की लड़ाई राष्ट्रीय मीडिया के समर्थन के बगैर लड़ रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कोई भी व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. हम सिर्फ आशंका पर रोक नहीं लगा सकते हैं.
अगर संपादक मंत्री से कहकर किसी नियुक्ति में कोई बदलाव करवा सकते हैं, तो क्या इसके एवज में मंत्रियों को अख़बारों की संपादकीय नीति प्रभावित करने की क्षमता मिलती है?
काले धन पर कर और जुर्माना देकर वैध बनाने के लिए लाई गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को अब सरकार ने भी असफल माना है.
लालू और चिदंबरम दोनों का आरोप, विपक्ष की आवाज़ दबाने के लिए केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.