इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आईआईएम) में इस प्लेसमेंट सीजन में छात्र नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आईआईएम कोझिकोड के निदेशक ने कहा कि प्लेसमेंट में आ रही मंदी हर किसी को प्रभावित करेगी, लेकिन अलग-अलग अनुपात में.
एक आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़, नौ आईआईएम के पीएचडी दाखिले के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच सालों में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के तहत आए छात्रों का अनुपात औसतन पांच फीसदी से कम रहा है. वहीं, सभी आईआईएम में ओबीसी और एससी फैकल्टी के लिए आरक्षित 60 फीसदी और एसटी फैकल्टी के 80 फीसदी से अधिक पद ख़ाली रहते हैं.
आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा की नियुक्ति को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जहां शिक्षा मंत्रालय ने माना कि शर्मा को स्नातक स्तर पर द्वितीय श्रेणी मिलने के बावजूद इस पद पर नियुक्त किया गया जबकि इसके लिए प्रथम श्रेणी से डिग्री होना अनिवार्य शर्त है. शर्मा को नियुक्ति के साथ दूसरे कार्यकाल की मंज़ूरी भी मिली थी.
टोरंटो विश्वविद्यालय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल के सर्वेक्षण में पाया गया कि कोविड-19 से पिछले साल सितंबर तक क़रीब 32 लाख लोगों की मौत हुई होगी. सर्वेक्षण में तक़रीबन 1.4 लाख वयस्कों को शामिल किया गया था. अध्ययन में दो सरकारी डेटा स्रोतों के ज़रिये भारत सरकार के प्रशासनिक आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. इसमें आईआईएम अहमदाबाद और चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी सी-वोटर भी शामिल थे.
एक सर्वे के अनुसार, देश के छह आईआईएम में जुलाई 2015 तक कुल 233 शिक्षक थे. इनमें से सिर्फ़ दो अनुसूचित जाति और पांच अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं. अनुसूचित जनजाति से कोई भी शिक्षक यहां नहीं था.