भारत के महापंजीयक द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में नवजात शिशु मृत्यु दर में क़रीब 36 प्रतिशत की कमी देखी गई है और राष्ट्रीय स्तर पर नवजात मृत्यु दर का स्तर पिछले दशक में 44 से गिरकर 28 हो गया. पिछले पांच दशकों में राष्ट्रीय स्तर पर जन्म दर में काफी कमी आई है, जो 1971 के 36.9 से घटकर 2020 में 19.5 हो गई.
आरटीआई के तहत मिले आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड के सभी 13 जिलों में 2016-17 से 2020-21 तक मातृ मृत्यु दर में 122.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इसी अवधि में नवजात मृत्यु दर में 238 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के नए आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक के दौरान भारत में शिशु मृत्यु दर में मामूली सुधार हुआ है, 2017 में यह प्रति हज़ार पर 33 थी जो 2018 में 32 हो गई है.
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी एक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज़्यादा बच्चों की मौत भारत में होती हैं. इसके बाद नाइज़ीरिया का नंबर है.
अमिताभ कांत ने कहा कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के हाल बेहाल हैं. यही वे क्षेत्र हैं जिनमें भारत पिछड़ रहा है. पांचवीं कक्षा का छात्र दूसरी कक्षा के जोड़-घटाव नहीं कर पाता है. शिशु मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है.
कांग्रेस के मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने मध्य प्रदेश में बलात्कार, कुपोषण, बाल मृत्यु दर, किसान आत्महत्या और भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी से संबंधित आंकड़े पेश करते हुए शिवराज सरकार पर निशाना साधा है.
कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले पांच सालों में तकरीबन 93.7 लाख गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व देखभाल के लिए अपना पंजीकरण करवाया था पर प्रसव सिर्फ 69.8 लाख के हुए. ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 23.9 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ?