अनिल अंबानी के प्रवक्ता ने कहा है कि यह अंबानी के व्यक्तिगत क़र्ज़ से जुड़ा मामला नहीं बल्कि रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस इंफ्राटेल द्वारा लिए गए कॉरपोरेट ऋण से संबंधित है. स्टेट बैंक के आवेदन पर जवाब देने के लिए अंबानी को हफ़्ते भर का समय दिया गया है.
यह मामला रिलायंस कम्युनिकेशंस द्वारा ग्लोबल फाइनेंसिंग के लिए 2012 में लिए गए कर्ज पर दी गई कथित व्यक्तिगत गारंटी से संबंधित है.
ब्रिटेन की एक अदालत ने 10 करोड़ डॉलर की राशि जमा करने के लिए रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी को छह सप्ताह का समय दिया है. अंबानी के बचाव में उनके वकीलों ने दलील दी थी कि उनकी नेटवर्थ लगभग शून्य है और उनका परिवार संकट की स्थिति में उनकी मदद नहीं करेगा, जिसे अदालत ने मानने से इनकार कर दिया.
अंबानी के साथ ही छाया विरानी, रायना करानी, मंजरी काकर, सुरेश रंगाचर ने आरकॉम के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है. रिलायंस कम्युनिकेशंस फिलहाल दिवाला प्रक्रिया में है.
हालांकि भारत कॉन्ट्रैक्ट लागू करने और प्रॉपर्टी रजिस्टर करने जैसे क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 163वें और 154वें स्थान पर है.
अनिल अंबानी की क़र्ज़ में डूबी टेलीकॉम कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस की सहयोगी कंपनी जीसीएक्स लिमिटेड ने 35 करोड़ डॉलर का भुगतान कर पाने में असफल रहने के बाद यह क़दम उठाया है.
अंबानी की याचिका पर एनसीएलएटी ने शुक्रवार को एसबीआई को 259 करोड़ रुपये जारी करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया. उच्चतम न्यायालय ने रिलायंस कम्युनिकेशंस समूह को एरिक्सन को 550 करोड़ रुपये 19 मार्च तक चुकाने को कहा था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि यदि समूह ऐसा करने में विफल रहता है तो अनिल अंबानी को जेल जाना पड़ेगा.
अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस कम्युनिकेशंस ने लगभग 45,000 करोड़ रुपये के कर्ज को चुकाने के लिए अपनी संपत्तियों को बेचने में असफल रहने पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की मुंबई बेंच में दिवालिया याचिका दायर करने का फैसला किया.
पैंतालीस हज़ार करोड़ रुपये के क़रीब क़र्ज़ को चुकाने में असफल रही रिलायंस कम्युनिकेशनंस ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत दिवालिया होने की अपील की है.
मोदी सरकार के चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं. यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है. सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई.
वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई वाली लोकसभा की प्राक्कलन समिति भारत में बैड लोन की मात्रा और जान-बूझकर दिवालिया होने के मामले की जांच कर सकती है.
शिरडी इंडस्ट्रीज़ को एनसीएलटी से मिले रिवाइवल पैकेज, ख़ासकर इसे कर्मचारियों के बकाया पीएफ को 5-7 साल तक टालने की अनुमति कैसे मिली, इसकी पड़ताल की जानी चाहिए.