केंद्र ने साल 2015 में कश्मीरी पंडित प्रवासियों की घाटी में वापसी के लिए 6,000 ट्रांज़िट आवास के निर्माण की घोषणा की थी. हालांकि इनके निर्माण की गति काफी धीमी रही है. गृह मंत्रालय ने संसदीय समिति को बताया कि 849 इकाइयों का निर्माण किया जा चुका है, जबकि 176 इकाइयों का निर्माण पूरा होने के क़रीब है.
श्रीनगर नगर निगम के महापौर समेत निर्वाचित सदस्यों ने आरोप लगाया है कि संयुक्त आयुक्त (योजना) गुलाम हसन मीर वास्तविक ग़रीब आवेदकों को छोड़कर सिर्फ़ अमीरों को ही भवन निर्माण की अनुमति दे रहे हैं. उन्होंने मांग की कि मीर ‘भ्रष्ट और अक्षम’ हैं, उन्हें तत्काल हटाया जाए. इन लोगों ने गुजरात कैडर के निगम आयुक्त आमिर अथर ख़ान के ख़िलाफ़ भी नारेबाज़ी की और कहा कि वे वापस अपने राज्य चले जाएं.
1990 के बाद घाटी से बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित पलायन कर गए थे, लेकिन कुछ परिवार यहीं रह गए. केंद्र सरकार द्वारा ऐसे आठ सौ से अधिक कश्मीरी पंडित परिवारों में किसी एक को नौकरी देने का वादा किया गया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ.
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि उनका मानना है कि कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अपूर्ण है और वे उन्हें ससम्मान वापस लाने की किसी भी प्रक्रिया का समर्थन करेंगे.
वीडियो: ‘कश्मीर पंडितों का क्या?’ यह एक ऐसा सवाल है जो कई सालों से राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. इस सवाल ने सिर्फ़ कश्मीरी पंडितों के ज़ख़्म हरे किए और मुसलमानों की ख़राब छवि को पेश किया. इस मुद्दे पर शिक्षक अनमोल टिक्कू से सृष्टि श्रीवास्तव की बातचीत.
मोदी सरकार के इस कदम ने सात दशकों की आधिकारिक नीति को ख़त्म करते हुए देश को अनजान क़ानूनी और राजनीतिक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है.
देशभर के कश्मीरी पंडितों ने उम्मीद जताई कि इससे क्षेत्र में शांति का माहौल स्थापित होगा और मूल स्थान पर सम्मान एवं गरिमा के साथ उनकी वापसी का मार्ग प्रशस्त होगा.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि 27 साल बाद उन मामलों के सबूत इकट्ठा करना मुश्किल होगा, जिनकी वजह से कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़ा था.