बाहरी भाषा-व्यवहार और संसदीय भाषा-व्यवहार के बीच भद्रता की दीवार दरक रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पिछले एकाध दशक में गाली का व्यवहार बहुत फैला और मान्य हुआ है. हम इसे अपने लोकतंत्र का गाली-समय भी कह सकते हैं.

मधु लिमये याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र बिना बुद्धि के सशक्त नहीं हो सकता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अमृतकाल में बुद्धि अभद्र शब्द बन गया है. बुद्धिजीवियों का लगभग रोज़ अपमान किया जाता है. अपनी बुद्धिहीनता को नेता आभूषण की तरह पहनकर रौब जमाते हैं. राजनीति में बुद्धि नहीं तिकड़म और हिकमत से सब काम चल रहा है. मधु लिमये इसके बरक़स, एक बुद्धिशील राजनीतिज्ञ थे. 

आगामी लोकसभा चुनाव में क्या नेताओं की छवि पर भारी पड़ेंगे स्थानीय मुद्दे?

वीडियो: लोकसभा चुनाव में सालभर से कम समय बचा है. देश की युवा पीढ़ी जब अपना नेता चुनने की सोचती है, तो उसके लिए क्या महत्वपूर्ण है- कोई लोकलुभावन छवि वाला नेता या वो मुद्दे, जिनसे वो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दो-चार होते रहते हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों ने साझा की अपनी राय. 

विशेष क़ानूनों के तहत विभिन्न राज्यों में सांसदों/विधायकों के ख़िलाफ़ 200 से अधिक मामले लंबित

सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया है कि पांच मार्च 2020 और 10 सितंबर 2020 के आदेश के अनुपालन में उच्च न्यायालयों को सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक सांसदों/विधायकों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत 175 मामले और धनशोधन निषेध क़ानून के तहत 14 मामले लंबित हैं.

​जन गण मन की बात, एपिसोड 263: लोकतंत्र में आम नागरिक और नेताओं के नखरे

जन गण मन की बात की 263वीं कड़ी में विनोद दुआ लोकतंत्र में आम नागरिकों की स्थिति और नेताओं के विलासितापूर्ण जीवन पर चर्चा कर रहे हैं.