स्मृति शेष: श्याम मनोहर पाण्डेय भोजपुरी लोक महाकाव्य लोरिकी और मध्ययुगीन प्रेमाख्यानों के अध्येता थे, जिनका बीते दिनों लंदन में निधन हो गया.
श्रीलंकाई लेखक शेहान करुणातिलक को उनके उपन्यास ‘द सेवन मून्स ऑफ माली अल्मेडा’ के लिए बुकर पुरस्कार दिया गया है. उनके उपन्यास में माली अलमेडा नामक एक युद्ध फोटोग्राफर की कहानी है, जो मौत के बाद स्वर्ग पहुंचता है और गृहयुद्ध के अत्याचारों की तस्वीरों का एक ज़ख़ीरा उसके हाथ लग जाता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज की सत्तारूढ़ राजनीति के सिलसिले में सब कुछ 'राज' पर इतना एकाग्र हो चला है कि 'नीति' लगभग ग़ायब हो गई है. नीति के राजनीति से लोप के चलते उसके लिए कोई नया शब्द गढ़ना चाहिए. इसी बीच, राज और बाज़ार का संबंध बहुत गाढ़ा हुआ है और वे एक-दूसरे के पोषक हो गए हैं.
स्मृति शेष: नई कहानी भावों, मूड की कहानी थी. यहां वैयक्तिकता केंद्र में थी. पर शेखर जोशी इस वैयक्तिकता में भी एक ख़ास क़िस्म की सामाजिकता लेकर आते हैं, क्योंकि बक़ौल जोशी, लेखन उनके लिए ‘एक सामाजिक ज़िम्मेदारी से बंधा हुआ कर्म है.’
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भाषाओं की विविधता और उनमें रचना और विचार, ज्ञान और अनुभव की जो विपुलता और सक्रियता है उसे उजागर करें तो हर भारतीय को यह अभिमान सहज हो सकता है कि वह एक बहुभाषिक, बहुधार्मिक राष्ट्र का नागरिक है जिसके मुकाबले भाषाओं और बोलियों की संख्या कहीं और नहीं है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लोकतंत्र में आलोचना, वाद-विवाद और प्रश्नवाचकता की जगहें सिकुड़ जाएं तो ऐसे लोकतंत्र को पूरी तरह से लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.
वीडियो: यूं तो इस्मत चुग़ताई को उर्दू साहित्यकार माना जाता है, लेकिन उनका पाठक और प्रशंसक वर्ग हिंदी में भी उतना ही बड़ा है. उर्दू के जिन चार प्रगतिशील साहित्यकारों में उनका नाम शामिल है, उन्होंने समूचे भारतीय साहित्य को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाई. उनकी याद के बहाने स्त्री मन को टटोलने की कोशिश.
लेखक सलमान रुश्दी पर हमले के एक हफ्ते बाद शुक्रवार को उनके समर्थन में और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उनके विचारों के प्रति एकजुटता व्यक्त करने के लिए उनके मित्र और साथी लेखक न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी में इकट्ठा हुए और द सैटेनिक वर्सेज़ समेत उनकी रचनाओं को पढ़ा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम निस्संदेह अधिकता के समय में जी रहे हैं. चीज़ें बहुत अधिक हो गई हैं और उनके दाम भी. महंगाई बढ़ रही है, विषमता भी. हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि में बढ़ोतरी हुई है. पुलिस द्वारा जेल में डाले गए और सुनवाई न होने के मामले भी बढ़े हैं. न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के प्रति भक्ति और आसक्ति बढ़ी है.
पुस्तक समीक्षा: हिंदी कविता और नई कहानी के प्रमुख हस्ताक्षर रहे अज्ञेय की अक्षय मुकुल द्वारा लिखी जीवनी ‘राइटर, रेबेल, सोल्जर, लवर: द मैनी लाइव्ज़ ऑफ अज्ञेय’ उनके जीवन के अनगिनत पहलुओं को तो उभारती ही है, साथ ही 1925 से 1980 के भारत के राजनीतिक-सामाजिक इतिहास का भी दस्तावेज़ बन जाती है.
मैन बुकर से सम्मानित अंग्रेज़ी के प्रख्यात लेखक सलमान रुश्दी पश्चिमी न्यूयॉर्क के चौटाउक्वा संस्थान में एक कार्यक्रम में अपना व्याख्यान शुरू करने वाले थे जब एक व्यक्ति ने मंच पर जाकर चाकू से उन पर हमला किया. उनके एजेंट के अनुसार, वे वेंटिलेटर पर हैं और उनकी स्थिति ठीक नहीं है. अपनी किताब 'द सैटेनिक वर्सेज़’ लिखने के बाद वर्षों तक उन्हें इस्लामी चरमपंथियों से मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मध्य प्रदेश के मंडला में चित्रकार सैयद हैदर रज़ा की स्मृति में ज़िला प्रशासन द्वारा बनाई गई कला वीथिका क्षेत्र के एकमात्र संस्कृति केंद्र के रूप में उभर रही है.
जन्मदिन विशेष: एक सर्जक के मन की पीड़ाएं उसकी सर्जना के लिए माध्यम बनती हैं पर स्वयं सर्जक भी स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते कि उनकी मानसिक व्याधियों से उनकी कला का वह रूप संभव हो सका है, या अशांत मन के विकारों ने उनकी कला को सीमित किया. स्वदेश दीपक भी अपने मन की प्रेत-छायाओं से लड़ते रहे और अंततः जब लड़ने से थक गए तो अपने आस-पास की दुनिया को छोड़कर एक सुबह चुपचाप कहीं चले गए.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अज्ञेय के लिए स्वतंत्रता और स्वाभिमान ऐसे मूल्य थे जिन पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. अक्षय मुकुल की लिखी उनकी जीवनी इस धारणा का सत्यापन करती है.