मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई पीठ ने ‘करुर लॉयर्स’ नामक वॉट्सऐप ग्रुप चलाने वाले एक वकील द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने मामले में याचिकाकर्ता का नाम चार्जशीट से हटाने का भी निर्देश दिया.
मीडिया कंपनियों के एक 13-सदस्यीय समूह डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन की याचिका पर कोर्ट का ये आदेश आया है. इससे पहले सितंबर महीने में हाईकोर्ट ने आईटी नियम, 2021 के एक प्रमुख प्रावधान के पर रोक लगा दी थी, जिसके तहत सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिए केंद्र द्वारा एक निगरानी तंत्र स्थापित करने का प्रावधान किया गया है.
मद्रास हाईकोर्ट ने तीन लोगों की की रिट याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए यह सुझाव दिया. तीनों पेट्रोल पंप के मालिक हैं. तीनों ने एक दशक से अधिक समय से किराये के रूप में कई करोड़ रुपये का भुगतान नहीं करने पर रक्षा विभाग द्वारा उन्हें ज़मीन से हटाए जाने की कार्रवाई को चुनौती दी है.
याचिकाकर्ता आदि-द्रविड़ समुदाय से संबंध रखता है और उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है. उन्हें पिछड़े वर्ग का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. उन्होंने हिंदू धर्म के अरुणथाथियार समुदाय से संबंध रखने वाली महिला से शादी की है. जिसे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया गया है. उन्होंने अंतर जातीय प्रमाण पत्र जारी करने का आवेदन किया था, ताकि सरकारी नौकरी में लाभ ले सके.
तमिल, तेलुगु सहित कई भाषाओं में आई फिल्म 'जय भीम' पर तमिलनाडु में विवाद खड़ा हो गया है. वन्नियार समुदाय का आरोप है कि फिल्म में उन्हें ग़लत तरीके से दिखाया गया है. निर्देशक टीजे ज्ञानवेल ने कहा कि विवाद की पूरी ज़िम्मेदारी उनकी है और इसके लिए अभिनेता सूर्या को निशाना बनाना अनुचित है.
मद्रास हाईकोर्ट के 200 से अधिक वकीलों ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी के तबादले के प्रस्ताव को देश के चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में ईमानदार व निडर जज के ख़िलाफ़ दंडात्मक क़दम बताया है. 2019 में इसी हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रहीं जस्टिस विजया के. ताहिलरमानी का तबादला भी मेघालय हाईकोर्ट में किया गया था, जिसके बारे में दायर पुनर्विचार याचिका ख़ारिज होने पर उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
टीजे ज्ञानवेल की जय भीम उम्मीद और नाउम्मीदी की फ़िल्म है. उम्मीद इसलिए कि यह दिखाती है कि इंसाफ़ के लिए लड़ा जा सकता है, जीता भी जा सकता है. नाउम्मीदी इसकी कि शायद हमारे इस वक़्त में यह सब कुछ एक सपना बनकर रह गया है.
कोर्ट ने तमिलनाडु के विल्लुपुरम ज़िले के निलंबित एसपी डी. कन्नन को एक अधीनस्थ अधिकारी के यौन उत्पीड़न के मामले से मुक्त करने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि अगर कोई वरिष्ठ अधिकारी ऐसे आरोपों का सामना करता है, तो लोगों का विभाग पर भरोसा कैसे क़ायम रहेगा. केवल 10 प्रतिशत पुलिस अधिकारी ही अपने विवेक के अनुसार काम कर रहे हैं.
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक लॉ ग्रैजुएट छात्र को राहत देते हुए कहा कि सरकार के ख़िलाफ़ काम करने और सरकार की नीतियों का विरोध करने के बीच बड़ा अंतर है.
डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स एसोसिएशन, पत्रकार मुकुंद पद्मनाभन और संगीतकार टीएम कृष्णा की नए आईटी नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर अदालत ने नियम 9 के उपबंध (1) एवं (3) पर रोक लगाई है. ये उप-खंड आचार संहिता के पालन को निर्धारित करते हैं.
22 मई 2018 को तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित वेदांता समूह के स्टरलाइट कॉपर प्लांट के ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शन हिंसक हो गया था. इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चला दी थी, जिसमें लगभग 13 लोगों की मौत हो गई थी. प्रदर्शनकारी प्लांट पर प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाकर इसे बंद करने की मांग कर रहे थे. मद्रास हाईकोर्ट ने सभी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ दर्ज केस वापस लेने का आदेश भी दिया है.
हाईकोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि ये बेहद घृणित है कि इस तरह की प्रथा चल रही है. अदालत ने यह भी कहा कि जिन सामानों पर फोटो छापे जा चुके हैं, उसे बर्बाद न किया जाए क्योंकि उन पर काफी धन ख़र्च किया गया था.
केनरा बैंक ने तिरुचिरापल्ली की सोशल सर्विस सोसाइटी को 48.8 लाख रुपये की राशि, जो 1994-95 में 1,540 लोगों को क़र्ज़ दी गई थी, को चुकाने के लिए उत्तरदायी बनाने का अनुरोध किया था, जिसे मद्रास हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया था. बैंक ने इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी, जिसने हाईकोर्ट का निर्णय बरक़रार रखा.
मेडिकल कॉलेज की सीटों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा को लेकर डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के नागरिकों को इतना सशक्त किया जाए कि आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन हो.
मद्रास हाईकोर्ट ने माकपा सांसद एस. वेंकटेशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को संघ या राज्य में इस्तेमाल होने वाली किसी भी भाषा में पक्ष रखने का अधिकार है. सांसद ने अपनी याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसे केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच सभी पत्राचारों में अंग्रेज़ी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए.