कानपुर में सेप्टिक टैंक में उतरे तीन और गुड़गांव में दो लोगों की मौत

उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के चौबेपुर क्षेत्र में एक सेप्टिक टैंक की शटरिंग हटाते वक़्त ज़हरीली गैस के संपर्क में आने से तीन लोगों की मौत हो गई. वहीं, हरियाणा के गुड़गांव में एक घर के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से एक सफाई कर्मचारी और एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई.

महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान में छह श्रमिकों की मौत

महाराष्ट्र में पुणे शहर के वाघोली इलाके में एक हाउसिंग सोसाइटी की जल निकासी चैंबर एवं सेप्टिक टैंक में काम करने के दौरान तीन मज़दूरों की मौत हो गई. वहीं, तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदूर स्थित एक रिज़ॉर्ट का सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान तीन लोगों की दम घुटने से मौत हो गई.

सीवेज साफ़ करने के दौरान हो रहीं मौतें समाज के लिए अभिशाप: मानवाधिकार आयोग

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू ने कहा कि सरकार को यह बताने की ज़रूरत है कि उसने मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए क्या किया है, क्योंकि सिर्फ क़ानून बनाना काफ़ी नहीं है. उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय राजधानी तक में ऐसी घटनाओं के बारे में सुनते हैं तो देश के बाकी हिस्सों की स्थित की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

सीवर में श्रमिकों की मौत असल में सरकार और ठेकेदारों द्वारा की गई हत्याएं हैं: बेज़वाड़ा विल्सन

देश में मैला ढोने वाले सफाई कर्मचारियों की स्थिति पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन का नज़रिया.

बिहार: सेप्टिक टैंक में दम घुटने से चार मजदूरों की मौत

सहरसा ज़िले की घटना. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने बताया कि श्रमिकों की मौत दम घुटने के कारण हुई है क्योंकि सेप्टिक टैंक कार्बन डाई ऑक्साईड गैस से भरा हुआ था.

‘जब तक जातिवाद का सफाया नहीं होगा तब तक स्वच्छ भारत की बात भी कैसे हो सकती है’

वीडियो: मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों की वर्तमान स्थिति और पुनर्वास पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक और मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन से सृष्टि श्रीवास्तव की बातचीत.

बिहार के पूर्णिया में सेप्टिक टैंक की मरम्मत के दौरान तीन मज़दूरों की मौत

दम घुटने से मौत होने की आशंका. तीनों मज़दूरों में से दो सगे भाई थे. स्थानीय लोगों ने करंट लगने से मौत होने का आरोप लगाया.

मैला ढोने की प्रथा को गंभीरता से ले मंत्रालय: संसदीय समिति

संसद की एक समिति ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा है कि मैला ढोने के काम में लगे लोगों के पुनर्वास हेतु स्व-रोजगार योजना का बजट आवंटन बढ़ाया जाए.

क्यों कानून बनने के 24 साल बाद भी मैला ढोने की प्रथा समाप्त नहीं हुई?

मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना के पहले के वर्षों में 100 करोड़ रुपए के आसपास आवंटित किया गया था, जबकि 2014-15 और 2015-16 में इस योजना पर कोई भी व्यय नहीं हुआ.

‘मैं मैला ढोता हूं लेकिन मैला ढोने वाले के रूप में मरूंगा नहीं’

टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी करने वाले सुनील यादव दिन में पढ़ाई करते हैं और रात में सफ़ाई कर्मचारी का काम करते हैं. वे डॉ. अंबेडकर को अपना आदर्श और पढ़ाई को बदलाव का औज़ार मानते हैं.