दिल्ली: सीवर की ज़हरीली गैस से दो श्रमिकों की मौत

घटना बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में हुई, जहां एक सफाईकर्मी अपार्टमेंट में सीवर बंद होने पर उसे जांचने के लिए उसमें उतरा और बेहोश हो गया. उनकी मदद के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड अंदर गया और वो भी अचेत हो गया. पुलिस के अनुसार, अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. 

आपके लिए अमृत काल है, सफाईकर्मियों और उनके परिवार के लिए नहीं: बेजवाड़ा विल्सन

वीडियो: बीते साल केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले पांच सालों में मैला साफ करने से एक भी मौत नहीं हुई. हालांकि सफाई कर्मचारी आंदोलन के संयोजक बेजवाड़ा विल्सन के मुताबिक़, इसी काम को करते हुए बीते पांच सालों में 535 लोगों की जान गई. देशभर में सफाई कर्मचारी सीवर साफ करने के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं. इस बारे में बेजवाड़ा विल्सन से बातचीत.

पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 347 लोगों की जान गई: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं. इस दौरान सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोगों की जान गई है.

हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मृत्यु होने की रिपोर्ट नहीं: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि पिछले तीन साल के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय हुईं दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हो गई. सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार का हाथ से मैला उठाने वालों को नकारना कोई नई बात नहीं है.

देश में मैला ढोने वालों की संख्या 58,098 है, इनमें से 42,594 लोग अनुसूचित जातियों से हैं: सरकार

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने संसद में बताया कि सरकार की ओर से सिर पर मैला ढोने वालों की धर्म और जाति को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है. हालांकि इनकी पहचान करने के लिए मैनुअल स्केवेंजर अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार सर्वेक्षण किए गए हैं. इन सर्वेक्षणों के दौरान मैला ढोने वालों की पहचान की गई है.

महाराष्ट्र: सेप्टिक टैंक में जान गंवाने वाले तीन श्रमिकों की पत्नियों ने जीती मुआवज़े की लड़ाई

दिसंबर 2019 में मुंबई के तीन श्रमिकों की सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौत के बाद उनकी पत्नियों ने अदालत से मुआवज़े और पुनर्वास की मांग की थी. बीते 17 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को चार हफ्ते के भीतर ऐसा करने के निर्देश दिए हैं. यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य में संभवतः यह पहली बार है जब निजी ठेके पर काम काम करते समय हुई मृत्यु के मुआवज़े के मामले में सरकार को ज़िम्मेदार

मानवाधिकार आयोग ने सफ़ाईकर्मियों की मौत के मामलों में ज़िम्मेदारी तय करने की पैरवी की

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर कहा कि सफ़ाईकर्मियों के साथ भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी की तरह व्यवहार किया जाए. आयोग ने कहा है कि सफ़ाईकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, प्रौद्योगिकी का उपयोग हो, जागरूकता फैलाई जाए और न्याय एवं पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए.

हाथ से मैला उठाने की प्रथा समाप्त करने की ज़िम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की है: बॉम्बे हाईकोर्ट

अदालत तीन महिलाओं के द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिनके पति हाथ से मैला उठाते थे और दिसंबर 2019 में एक निजी सोसायटी के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय उनकी मौत हो गई थी. अदालत ने मुंबई के ज़िलाधिकारी को निर्देश दिया कि मुआवजे़ के तौर पर प्रत्येक याचिकाकर्ता को 10 लाख रुपये की राशि दी जाए.

साल 1993 से सैप्टिक टैंक सफाई के दौरान 941 सफाईकर्मियों की मौत: केंद्र सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि देश भर में हाथ से मैला ढोने वाले कुल 58,098 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है. हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की ख़बर नहीं है लेकिन सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने की जानकारी है.

हाथ से मैला साफ़ करने के कारण कोई मौत नहीं होने के सरकार के जवाब से कार्यकर्ता नाराज़

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में कहा था कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है. एक दलित के जीवन की अनदेखी है.

सिर पर मैला ढोने की प्रथा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था. हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि 40 से अधिक राज्यों में से केवल 13 ने ही हलफ़नामा दाख़िल किया है.

देश में हाथ से मैला ढोने वाले 66 हज़ार से अधिक लोगों की पहचान की गई: सरकार

राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.

बजट 2021: मैला ढोने वालों के पुनर्वास फंड में 73 फीसदी की कटौती

मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए पिछले साल 110 करोड़ रुपये का बजट आवंटित हुआ था, लेकिन अब इसे कम करके 30 करोड़ रुपये कर दिया गया है. केंद्र ने ये कदम ऐसे समय पर उठाया है जब मैला ढोने वालों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है.

हिमाचल प्रदेश: सेप्टिक टैंक में उतरे दो श्रमिकों की ज़हरीली गैस से मौत

घटना हमीरपुर ज़िले की है. दो श्रमिक कई दिनों से बंद शटरिंग खोलने के लिए सेप्टिक टैंक में उतरे थे. कुछ देर बाद एक अन्य मज़दूर के अंदर झांककर देखने पर वे दोनों अचेत मिले. अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

झारखंड के गढ़वा में सेप्टिक टैंक की ज़हरीली गैस से तीन मज़दूरों की मौत

घटना गढ़वा शहर के पिपराकला इलाके का है. घटना से आक्रोशित लोगों ने मुआवज़े की मांग को लेकर सदर अस्पताल के सामने तीनों मज़दूरों के शव के साथ एनएच-75 को लगभग एक घंटे तक जाम कर दिया था.