साल 1993 से सैप्टिक टैंक सफाई के दौरान 941 सफाईकर्मियों की मौत: केंद्र सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि देश भर में हाथ से मैला ढोने वाले कुल 58,098 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है. हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मौत होने की ख़बर नहीं है लेकिन सीवर या सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कर्मियों की मौत होने की जानकारी है.

हाथ से मैला साफ़ करने के कारण कोई मौत नहीं होने के सरकार के जवाब से कार्यकर्ता नाराज़

केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने संसद में कहा था कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाथ से मैला ढोना पहले से ही अमानवीय है. सरकार सम्मान के मौलिक अधिकार से इनकार कर रही है. इन लोगों और मौतों की गिनती तक नहीं कर रही है. यह अस्पृश्यता का एक आधुनिक रूप है. एक दलित के जीवन की अनदेखी है.

सिर पर मैला ढोने की प्रथा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था. हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि 40 से अधिक राज्यों में से केवल 13 ने ही हलफ़नामा दाख़िल किया है.

देश में हाथ से मैला ढोने वाले 66 हज़ार से अधिक लोगों की पहचान की गई: सरकार

राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.

बजट 2021: मैला ढोने वालों के पुनर्वास फंड में 73 फीसदी की कटौती

मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए पिछले साल 110 करोड़ रुपये का बजट आवंटित हुआ था, लेकिन अब इसे कम करके 30 करोड़ रुपये कर दिया गया है. केंद्र ने ये कदम ऐसे समय पर उठाया है जब मैला ढोने वालों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है.

मैला ढोने की प्रथा रोकने के लिए क़ानून बदलेगा, मशीन से सफाई कराना होगा अनिवार्य

विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर केंद्र ने सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई को लोगों द्वारा कराने से रोकना और मशीन से उनकी सफाई को बढ़ावा देना है.

पिछले 10 वर्ष में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई: आरटीआई

सूचना के अधिकार कानून के तहत राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने बताया है कि पिछले 10 वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान सबसे ज़्यादा मौत तमिलनाडु में हुई. इसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली तथा कर्नाटक में मौते हुई हैं.

सीवर सफाई के दौरान तीन वर्षों में हुई 271 सफाईकर्मियों की मौत: केंद्र सरकार

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की ओर से सूचना के अधिकार के तहत प्रदान किए गए आंकड़ों से यह जानकारी सामने आई है.

दिल्ली: शाहदरा में एक सफाईकर्मी की मौत, दूसरे की हालत गंभीर

पुलिस ने कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने सफाई की जिम्मेदारी एक निजी कांट्रैक्टर को सौंपा था. अपनी शिकायत में कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि उन्होंने जब सुरक्षा उपकरण मांगे तक कथित तौर पर कांट्रैक्टर ने मना कर दिया. दोनों सफाईकर्मियों के बेहोश होने के बाद पुलिस के आने से पहले कांट्रैक्टर वहां से भाग गया.

बेंगलुरु में सीवर सफाई के दौरान दम घुटने से 17 साल के बच्चे की मौत

बच्चे को बचाने गए 50 वर्षीय मारिआन्ना की हालत बहुत गंभीर है और वो अस्पताल में भर्ती हैं. मामले में अभी एफआईआर दर्ज की जानी बाकी है.

दिल्ली: सीवर सफाई के दौरान बीमार पड़े तीन में से एक सफाईकर्मी की मौत

बीते 23 नवंबर को उत्तर पश्चिमी दिल्ली के शकूरपुर में सीवर की सफाई करने उतरे एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और तीन अन्य बेहोश हो गए थे. पुलिस ने इस मामले में एक ठेकेदार और एक निजी सुपरवाइज़र को गिरफ्तार कर लिया था.

दिल्ली में सीवर की सफाई करने उतरे एक व्यक्ति की मौत, दो गिरफ्तार

दिल्ली के लोक निर्माण विभाग मंत्री सत्येंद्र जैन ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं और मृतक सफाईकर्मी के परिवार को दस लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है.

कमजोर कानून के चलते भारत में जारी है हाथ से मैला सफाई की प्रथा: अध्ययन

विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सफाईकर्मियों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और यह जातिगत व्यवस्था से संबंधित रोजगार है. इसीलिए हाथ से मैला सफाई की प्रथा अब भी जारी है.

सीवर में मौत: क़रीब 50 फीसदी पीड़ित परिवारों को ही मिला 10 लाख का मुआवज़ा

विशेष रिपोर्ट: द वायर द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि 1993 से साल 2019 तक महाराष्ट्र में सीवर सफाई के दौरान हुई 25 लोगों की मौत के मामले में किसी भी पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा नहीं दिया गया. वहीं, गुजरात में सीवर में 156 लोगों की मौत के मामले में सिर्फ़ 53 और उत्तर प्रदेश में 78 मौत के मामलों में सिर्फ़ 23 में ही 10 लाख का मुआवज़ा दिया गया.