भारत में अक्सर न्यायिक आज़ादी के रास्ते में कार्यपालिका और कभी-कभी विधायिका द्वारा बाधा डालने की संभावनाएं देखी जाती हैं, लेकिन जब न्यायपालिका के भीतर के लोग ही अन्य शाखाओं के सामने झुक जाते हैं, तो स्थिति बिल्कुल अलग हो जाती है.
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण फैसले और प्रस्ताव मुख्य न्यायाधीश द्वारा कॉलेजियम की सहमति दरकिनार करते हुए मनमाने और अनौपचारिक तरीके से लिए जा रहे हैं.
चीफ जस्टिस द्वारा मामलों के आवंटन पर पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर जवाब देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है, उन्हें विभिन्न पीठों को मामले को आवंटित करने का विशेषाधिकार होता है.
22 जून को सेवानिवृत्त हो रहे जस्टिस चेलमेश्वर के सम्मान में 18 मई को उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा विदाई कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग लाया गया तो ऐसा माहौल बना जैसे ऐसा करने से जनता का न्याय से विश्वास उठ जाएगा और लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा.
शांति भूषण की तरफ़ से पेश हुए अधिवक्ता दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण ने दलील दी कि प्रधान न्यायाधीश अपने अधिकारों का निरंकुश होकर इस्तेमाल नहीं कर सकते.
मुख्य न्यायाधीश के मुक़दमों के आवंटन के अधिकार को चुनौती देने वाली इस जनहित याचिका को पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने दायर किया है.
उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने मामलों के आवंटन संबंधी पूर्व क़ानून मंत्री की जनहित याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया.
मुख्य न्यायाधीश के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जज जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा है कि न्यायपालिका की हर समस्या का जवाब महाभियोग नहीं है.