आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच ने कहा कि आम बजट में जनजातीय समुदाय की अनदेखी करते हुए उसके लिए कुल बजट की 8.6 प्रतिशत राशि के बजाय केवल 2.26 प्रतिशत राशि आवंटित की गई है.
राइट टू एजुकेशन फोरम का कहना है कि बजट के आधे-अधूरे और अदूरदर्शी प्रावधान बताते हैं कि सरकार स्कूली शिक्षा को लेकर बिल्कुल संजीदा नहीं है. डिजिटल लर्निंग और ई-विद्या संबंधी प्रस्ताव निराशाजनक हैं, जिनसे वंचित वर्गों समेत अस्सी फीसदी बच्चों के स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर होने का ख़तरा मंडरा रहा है.
चंपावत ज़िले के एक सरकारी स्कूल की दलित रसोइए द्वारा बनाए मध्याह्न भोजन को कथित उच्च जाति के छात्रों के खाने से इनकार के बाद उन्हें काम से हटा दिया गया था. मुख्य शिक्षा अधिकारी ने बताया कि उन्हें नियुक्ति में सही प्रक्रिया का पालन न होने के चलते हटाया गया था. अब उचित प्रक्रिया के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया है.
चंपावत ज़िले के सुखीढांग के एक सरकारी स्कूल की दलित रसोइए द्वारा बनाए गए मध्याह्न भोजन को कथित उच्च जाति के छात्रों द्वारा खाने से इनकार के बाद महिला को काम से हटा दिया गया था. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने महिला को हटाने की वजह नियुक्ति में प्रक्रियागत चूक को बताया था.
घटना चंपावत ज़िले के सुखीढांग के एक सरकारी स्कूल की है, जहां 66 छात्रों में से 40 ने इस महीने की शुरुआत में नियुक्त एक दलित महिला द्वारा तैयार खाना खाने से मना कर दिया था. काम से हटाए जाने के बाद महिला ने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराते हुए आपत्ति जताने वाले छात्रों के माता-पिता के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में इन कर्मचारियों को साल 2009 से ही महज 1,000 रुपये प्रति माह वेतन मिल रहा है, जबकि कई संसदीय समितियों ने वर्षों से इसमें बढ़ोतरी की सिफ़ारिश की है.
वीडियो: नरेंद्र मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया की शुरुआत की थी, लेकिन कोरोना वायरस के दौरान उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के अजगैन गांव के एक स्कूल में ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा का लाभ बच्चे नहीं उठा सके. यह स्कूल राज्य की राजधानी लखनऊ से महज 47 किमी. दूर है, जहां किसी भी बच्चे के पास मोबाइल फोन और इंटरनेट नहीं है. इतना ही नहीं मिड-डे मील बनाने वाली महिला को पिछले साल जून से वेतन नहीं मिला है.
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि यह योजना पांच वर्षों 2021-22 से 2025-26 तक के लिए है, जिस पर 1.31 लाख करोड़ रुपये ख़र्च आएगा. इसमें प्री-स्कूल से लेकर प्राथमिक विद्यालय के स्तर के विद्यार्थियों को कवर किया जाएगा.
घटना बिहार के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के गृह ज़िले कटिहार की है, जहां के सरकारी शिक्षक मोहम्मद तमीजुद्दीन एक वायरल वीडियो में मिडडे मील की बोरियां बेचते दिखते हैं. उनका कहना है कि एक सरकारी आदेश के बाद उन्हें ऐसा करना पड़ा था.
कर्नाटक में मिड-डे मील योजना के लगभग 40 लाख लाभार्थी बच्चों में से क़रीब 10 प्रतिशत को अक्षय-पात्र फाउंडेशन नाम की संस्था भोजन मुहैया कराती है. हाल ही में इस संस्था में धांधली के आरोप लगे हैं. साथ ही यह संस्था अंडे जैसे पौष्टिक आहार को भी इस योजना से जोड़ने के ख़िलाफ़ रही है.
बिहार हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मिड-डे मील और सर्व शिक्षा से जुड़ीं योजनाओं को जारी रखने के साथ सरकारी स्कूल के छात्रों को पाठ्य पुस्तकें और नोटबुक मुहैया कराने का आदेश दिया है.
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की ओर से कहा गया है कि कोविड-19 संकट के कारण कुपोषण को कम करने की पहल की प्रगति पर असर पड़ा और वर्तमान चुनौतियां और भी बढ़ गई हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील योजना के तहत हर महीने प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये का भुगतान करती है, लेकिन इस साल मार्च में उसके ख़ुद के हलफ़नामे में कहा गया कि उसने पंजीकृत 8.21 लाख बच्चों को क़रीब सात करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो प्रति बच्चा 100 रुपये से भी कम है.
सरकार द्वारा हाल ही में लाई गई नई शिक्षा नीति को लेकर विशेषज्ञों एवं शिक्षाविदों की विभिन्न राय है. कुछ लोग जहां इसे प्रगतिशील दस्तावेज़ बता रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि यह हाशिये पर पड़े लोगों एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों, एससी/एसटी, ओबीसी जैसे वर्ग को कोई ख़ास राहत प्रदान नहीं करती है.
नई शिक्षा नीति में प्रस्ताव किया गया है कि मध्याह्न भोजन के दायरे का विस्तार कर उसमें नाश्ते का प्रावधान जोड़ा जाए. सुबह के समय पोषक नाश्ता मिलना अधिक मेहनत वाले विषयों की पढ़ाई में लाभकर हो सकता है.