विभाजन और सांप्रदायिक राजनीति पर आधारित भीष्म साहनी के उपन्यास ‘तमस’ के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया अभियान की शुरुआत भाजपा के पूर्व सांसद बलबीर पुंज के एक मैसेज से हुई, जिसमें उन्होंने साहनी को वामपंथी बताते हुए दावा किया था कि तमस में सांप्रदायिक हिंसा के लिए ‘प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से’ आरएसएस को ज़िम्मेदार ठहराया गया था.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने फरवरी माह में होने वाले अपने ‘भारत रंग महोत्सव’ में विख्यात नाटककार और अभिनेता उत्पल दत्त द्वारा लिखित ‘तितुमीर’ नाटक को मंचन के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन अब आमंत्रण को वापस ले लिया है. नाटक के निर्देशक का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि नाटक के मुख्य किरदार स्वतंत्रता सेनानी ‘तितुमीर’ मुसलमान हैं.
नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्र बीते 3 अक्टूबर से धरने पर बैठे हैं. उनकी मांग है कि संस्थान में स्थायी निदेशक की नियुक्ति की जाए, जो बीते चार सालों से नहीं हुई है. उनका यह भी कहना है कि फैकल्टी के अभाव में कई-कई दिनों तक कक्षाएं नहीं हो पा रही हैं, इसलिए स्थायी फैकल्टी भी नियुक्त हो.
वीडियो: कुछ ही समय पहले भारतीय रंगमंच ने अपने शिखर व्यक्तित्वों में से एक इब्राहिम अलकाज़ी को खो दिया. वह रंगमंच की दुनिया में कलाकारों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर गए हैं, जिन्हें अपने-आप में अभिनय का स्कूल कहा जाता है. रंगमंच, टेलीविज़न और फिल्मों में अपनी छाप छोड़ने वाले राजेंद्र गुप्ता से द वायर की दामिनी यादव की बातचीत.
वीडियो: मध्य प्रदेश के गाडरवारा में जन्मे आशुतोष राना रामलीला के किरदारों से अपनी जगह बनाते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के गलियारों तक पहुंचे और साल 1995 में टीवी धारावाहिक 'स्वाभिमान' से बतौर फिल्मी अभिनेता बने. इन्होंने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मराठी फिल्में भी कीं. इसके अलावा कुछ किताबें लिखी हैं. उनसे द वायर की दामिनी यादव की बातचीत.
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) का अध्यक्ष पद साल 2017 से ख़ाली था. इस पद पर परेश रावल की नियुक्ति चार वर्षों के लिए की गई है.
इब्राहिम अल्काज़ी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में सबसे लंबे समय तक निदेशक के पद पर रहे. उन्होंने कलाकारों की कई पीढ़ियों को अभिनय की बारीकियां सिखाईं. इन कलाकारों में नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी आदि शामिल हैं.
पंकज त्रिपाठी जब बिहार के छोटे से गांव से पटना पहुंचे तो उन्हें डॉक्टर बनना था, लेकिन वह छात्र राजनीति में कूद पड़े. राजनीति से रंगमंच के रास्ते उनका सफर मुंबई तक पहुंच गया है.
जैसे भारत में कुछ लोगों के नाम दारोगा पांडे या सिपाही सिंह होते हैं लेकिन वे न दारोगा होते हैं और न सिपाही. उसी तरह ‘थियेटर ओलंपिक्स’ संस्था ओलंपिक के नाम का इस्तेमाल कर रही है.