नरेंद्र मोदी सरकार के तहत भारत के आंकड़ा संग्रह और उन्हें जारी करने के तंत्र की आलोचना की गई है, क्योंकि सरकार ने अप्रिय आंकड़ों के कारण कई रिपोर्टों को गुप्त रखने की कोशिश की है. 2021 की जनगणना, जिसे कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था, अभी भी नहीं हुई है.
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, बीते वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 11 साल के निचले स्तर 4.2 फीसदी पर पहुंच गई है.
यह पहली बार है जब केंद्र सरकार ने आधिकारिक तौर पर सर्वे पूरा होने के बाद एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी नहीं करने का फैसला किया है. वहीं, सरकार ने रिपोर्ट को रद्द करने से पहले एनएससी से परामर्श नहीं किया था.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा कि महज़ शब्दों के खेल या विज्ञापनों से बढ़ती बेरोज़गारी के मुद्दे का समाधान नहीं होने वाला है, सिर्फ विज्ञापन देने से ही नौकरियां नहीं मिल जाएंगी.
आम चुनाव से ठीक पहले बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़ों पर आधारित यह रिपोर्ट लीक हो गई थी, तब सरकार ने इस रिपोर्ट को अधूरा बताया था, लेकिन शुक्रवार को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में इसकी पुष्टि हो गई.
श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले तीन साल में केवल 1.12 करोड़ रोज़गार ही पैदा किए जा सके.
लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले चुनावों पर नजर रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉमर्स द्वारा हाल ही में जारी किये गये राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह खुलासा किया गया है.
साल 2004-05 से अब तक पांच करोड़ से अधिक ग्रामीण महिलाएं राष्ट्रीय बाजार की नौकरियां छोड़ चुकी हैं. ये आंकड़े एनएसएसओ की पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) 2017-18 की रिपोर्ट पर आधारित हैं जिन्हें जारी करने पर मोदी सरकार ने रोक लगा दी है.
देश-विदेश की शीर्ष वित्तीय संस्थाओं से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने कहा कि वित्तीय आंकड़े नीतियां बनाने और जनता की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए ज़रूरी है कि इन आंकड़ों को इकठ्ठा और प्रसारित करने वाली संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार न हों और इनकी विश्वसनीयता बनी रहे.
आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे मोदी सरकार ने दबा दिया है. इससे पहले उसने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी जारी होने से रोक दिया था.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र की मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, इस साल फरवरी में बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी हो गई जो कि सितंबर 2016 के बाद सबसे अधिक है. पिछले साल फरवरी में यह आंकड़ा 5.9 फीसदी था.
नीति आयोग ने गुरुवार को श्रम मंत्रालय से सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू करने और 27 फरवरी को इसके निष्कर्षों को पेश करने को कहा ताकि इसे मार्च के पहले सप्ताह में साझा किया जा सके.
वीडियो: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में बीते 45 सालों में 2017-18 में सबसे अधिक बेरोज़गारी रही है. रोज़गार की स्थिति पर द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु का नज़रिया.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने ये आंकड़े जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच जुटाए हैं. नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद देश में रोजगार की स्थिति पर आया यह पहला सर्वेक्षण है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से इस्तीफ़ा देते हुए कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहनन ने कहा कि सरकार आयोग के काम को गंभीरता से नहीं ले रही है और सदस्यों की सलाह को नज़रअंदाज़ कर रही है.