बैंकों का कहना है कि बढ़ते फंसे क़र्ज़ व उसके लिए ऊंचे प्रावधान के चलते वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में उनका घाटा बढ़ा.
जन गण मन की बात 205वीं कड़ी में विनोद दुआ जान-बूझकर कर्ज न चुकाने वाले बैंक डिफॉल्टरों और पूर्वोत्तर के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत पर चर्चा कर रहे हैं.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में देने से समस्या ख़त्म हो जाएगी, ऐसा सोचना अज्ञानता के अलावा कुछ नहीं है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.
आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.
पिछली सरकारों में व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए तोड़ने-मरोड़ने वाले पूंजीपति मोदी सरकार में भी फल-फूल रहे हैं.
वित्त वर्ष 2016-17 में हज़ार करोड़ से ऊपर की राशि बट्टे खाते में डालने वाले स्टेट बैंक ने अप्रैल से नवंबर 2017 के बीच न्यूनतम बैलेंस न रखने पर आम ग्राहकों से 1,771 करोड़ का जुर्माना वसूला था.
लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री ने बताया कि पिछले पांच वर्ष की अवधि के दौरान बैंकों के 2,30,287 करोड़ रुपये के क़र्ज़ को बट्टे खाते में डाल दिया गया.
राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ज़्यादातर एनपीए वे ऋण हैं, जो अप्रैल 2014 से पहले दिए गए.
बचत खाते में न्यूनतम बैलेंस न होने पर स्टेट बैंंक आॅफ इंडिया ने अपने खाताधारकों पर 1771 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.
वित्त मंत्रालय ने कहा कि एनपीए में करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे क़र्ज़ का है.
रिज़र्व बैंक ने कहा, मर्चेंट बैंकरों के बीच हितों का टकराव एनपीए बढ़ने की की बड़ी वजह.
प्रधानमंत्री मोदी ने एनपीए को यूपीए सरकार के दौर का सबसे बड़ा घोटाला बताया.