पाकिस्तानी फिल्मों ने विभाजन को किस ​तरह दिखाया

आज़ादी के 75 साल: विभाजन के बाद पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री को बनाने में न सिर्फ सीमित संसाधनों की समस्या का सामना करना पड़ा, बल्कि भारत से आने वाली तकनीकी रूप से श्रेष्ठ हिंदी फिल्मों को सीमित करने के लिए ताकतवर डिस्ट्रीब्यूटर लॉबी से भी लड़ाई लड़नी पड़ी.

‘हुक्मरां हो गए कमीने लोग, ख़ाक में मिल गए नगीने लोग’

जनता के अधिकारों के लिए सत्ता से लोहा लेने वाले हबीब जालिब ने गांव-देहात को अपने पांव से बांध लिया था और उसी पांव के ज़ख़्म पर खड़े होकर सत्ता को आईना दिखाते रहे.