सेनाओं की ओर से पीएम केयर्स फंड में दी गई राशि में सर्वाधिक भारतीय सेना की ओर से 157.71 करोड़ रुपये दिया गया है, वहीं वायुसेना ने 29.18 करोड़ रुपये और नौसेना ने 16.77 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है.
हाल ही में सार्वजनिक किए गए पीएम केयर्स ट्रस्ट के दस्तावेज़ में जहां एक तरफ इसे ‘कॉरपोरेट चंदा प्राप्त करने के लिए सरकारी ट्रस्ट के रूप में परिभाषित’ किया गया हैं, वहीं एक क्लॉज में इसे प्राइवेट ट्रस्ट बताया गया है.
यह राशि सार्वजनिक क्षेत्र की 101 कंपनियों द्वारा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी फंड्स के तहत दान किए गए 2,400 करोड़ रुपये के अतिरिक्त थी. कर्मचारियों के वेतन से ओएनजीसी ने सबसे अधिक 29.06 करोड़ रुपये दिए, वहीं बीएसएनएल ने भी कर्मचारियों के वेतन से 11.43 करोड़ रुपये इस फंड में दिए.
यह आंकड़ा केंद्र सरकार के 50 विभागों का है. 157.23 करोड़ रुपये के इस अनुदान में से 93 प्रतिशत से अधिक की धनराशि यानी क़रीब 146 करोड़ रुपये अकेले रेलवे के कर्मचारियों के वेतन से दान किए गए हैं.
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, आरबीआई सहित 15 सरकारी बैंकों और संस्थाओं ने आरटीआई के माध्यम से बताया है कि उन्होंने कुल मिलाकर 349.25 करोड़ रुपये पीएम केयर्स फंड में दान किए. एलआईसी ने विभिन्न श्रेणियों के तहत अकेले सबसे अधिक 113.63 करोड़ रुपये दान में दिए हैं.
लोकसभा में विपक्षी सांसदों द्वारा पीएम केयर्स फंड पर लगातार सवाल उठाने पर भाजपा के नेता कांग्रेस पर हमलावर होते रहे, साथ ही कहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष गांधी परिवार की निजी संपत्ति की तरह काम करता है. हालांकि पीएम केयर्स फंड की जवाबदेही को लेकर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
कोविड-19 से लड़ाई में जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए बना पीएम केयर्स फंड पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है, जो पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत पंजीकृत है. यह किसी केंद्रीय या राज्य एक्ट के माध्यम से स्थापित नहीं किया गया है, जिससे इसे एफसीआरए के प्रावधानों से छूट मिल सके.
आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कॉरपोरेट मंत्रालय ने अपनी फाइलों में ये लिखा है कि पीएम केयर्स फंड का गठन केंद्र सरकार द्वारा किया गया है. केंद्र सरकार द्वारा गठित कोई भी विभाग आरटीआई एक्ट के दायरे में आता है.
सूचना के अधिकार क़ानून से मिली जानकारी के अनुसार, ओएनजीसी ने सबसे ज़्यादा 300 करोड़ रुपये, एनटीपीसी ने 250 करोड़ रुपये, इंडियन ऑयल ने 225 करोड़ रुपये कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) का पैसा अनुदान के रूप में पीएम केयर्स फंड में दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया था कि चूंकि पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली काफ़ी गोपनीय है, इसलिए इसमें प्राप्त राशि एनडीआरएफ में ट्रांसफर की जाए, जो कि संसद से पारित किए गए क़ानून के तहत बनाया गया है और एक पारदर्शी व्यवस्था है.
हाल ही में केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत बनाए गए नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड में व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा अनुदान को मंज़ूरी दी है. लेकिन कोविड-19 जैसी आपदा के दौर में जब स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बेहतरी के लिए इसमें मिली राशि का प्रयोग किया जा सकता है, इसमें दान देने के बारे में आम जनता को बेहद कम जानकारी है.
संसद की बेहद महत्वपूर्ण लोक लेखा समिति की बैठक में प्रस्ताव रखा गया था कि वो कोरोना संकट पर सरकार के प्रबंधन की जांच-पड़ताल करेगी. हालांकि भाजपा सदस्यों ने इसका कड़ा विरोध किया और जांच करने से रोक दिया.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में पीएम केयर्स के गठन जायज़ ठहराते हुए कहा कि आपदा प्रबंधन क़ानून के तहत एक क़ानूनी कोष यानी नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड के होने मात्र से स्वैच्छिक दान के लिए अलग कोष के सृजन पर रोक नहीं है.
पीएम केयर्स फंड की कार्यप्रणाली बहुत ही अपारदर्शी है और इसे आरटीआई एक्ट के दायरे से भी बाहर कर दिया गया, जिसके कारण पता नहीं चल पा रहा है कि वाकई ये फंड किस तरह से काम कर रहा है, कौन इसमें डोनेशन दे रहा है और इसमें प्राप्त राशि को किन-किन कार्यों में ख़र्च किया जा रहा है?
वीडियो: भाजपा ने आरोप लगाया है कि 2005-06 में चीन सरकार द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को दान दिया गया था, तो कांग्रेस ने दावा किया है कि पीएम केयर्स फंड में कई चीनी कंपनियों से डोनेशन लिया गया है. इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.