होली: बुराई आज न ऐसे रहे न वैसे रहे…

सुनने में बात बहुत अच्छी लगती है कि होली है तो जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो, लेकिन क्या ऐसा करना तब तक संभव है जब तक उन कारणों की पड़ताल न की जाए, जिनके चलते वह बिराना हुआ या कि रह गया.

नज़ीर अकबराबादी: होली की बहारों का बेनज़ीर शायर

फिराक़ गोरखपुरी लिखते हैं कि नज़ीर दुनिया के रंग में रंगे हुए महाकवि थे. वे दुनिया में और दुनिया उनमें रहती थी, जो उनकी कविताओं में हंसती-बोलती, जीती-जागती त्योहार मनाती नज़र आती है.