कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के टेलिफोनिक सर्वे में ये जानकारी सामने आई है कि देश के अधिकतर सूचना आयोग एकाध स्टाफ के सहारे काम कर रहे हैं. अधिकतर आयोगों के ऑफिस नंबर या हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करने पर किसी ने जवाब नहीं दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय चयन समिति ने फरवरी में राष्ट्रपति के सचिव संजय कोठारी के नाम की अनुशंसा की थी. उस समय कांग्रेस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति के लिए अपनाई प्रक्रिया को ‘गैरकानूनी और असंवैधानिक’ बताया था और फैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की थी.
आलम ये है कि चयन समिति के एक सदस्य वित्त सचिव राजीव कुमार ने भी सीवीसी पद के लिए आवेदन किया था और उन्हें इसके लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि आरटीआई क़ानून में संशोधन करने का मुख्य उद्देश्य आरटीआई के तहत बने संस्थानों को प्रभावित करना है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम न कर पाएं.
इससे पहले केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि सीआईसी में 13,000 से अधिक ऐसे मामले है, जो एक वर्ष से अधिक समय तक लंबित हैं.
गैर-सरकारी संस्था सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट से पता चलता है कि आयोगों में लंबित मामलों का प्रमुख कारण सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न होना है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर के 26 सूचना आयोगों में 31 मार्च 2019 तक कुल 2,18,347 मामले लंबित थे.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने एकमत होकर ये फैसला दिया और साल 2010 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें कोर्ट ने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई एक्ट के दायरे में है.
आरटीआई कार्यकर्ताओं ने शीर्ष न्यायालय के इस फैसले की सराहना की और साथ ही कहा कि ‘कानून से ऊपर कोई नहीं है.’
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा करने से नियुक्ति प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बढ़ेगा और फैसले लेने में न्यायपालिका एवं सरकार के सभी स्तरों पर उच्च स्तर की पारदर्शिता और जवाबदेही तय हो सकेगी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2010 में अपने फैसले में शीर्ष अदालत की इस दलील को खारिज कर दिया था कि सीजेआई कार्यालय को आरटीआई के दायरे में लाए जाने से न्यायिक स्वतंत्रता बाधित होगी.
आरटीआई कार्यकर्ताओं ने नए नियमों को सूचना आयोगों की स्वतंत्रता एवं उनकी स्वायत्तता पर हमला करार दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने सूचना आयोगों में ख़ाली पद पर भी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि कोर्ट के साथ विभिन्न विभागों में ख़ाली पद होना मज़ाक का विषय बनता जा रहा है. जब तक ये ख़ाली पद भरे नहीं जाएंगे, ऐसे ही लंबित मामले बढ़ते रहेंगे.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय सूचना आयोग के 14 वें वार्षिक सम्मेलन में कहा कि आरटीआई आवेदनों की अधिक संख्या में किसी सरकार की सफलता नहीं छिपी होती.
आरटीआई कानून लागू होने की 14वीं सालगिरह पर जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी सूचना आयुक्तों की समय पर नियुक्ति नहीं हो रही है. इसकी वजह से देश भर के सूचना आयोगों में लंबित मामलों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है और लोगों को सही समय पर सूचना नहीं मिल पा रही है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट में सूचना आयोगों में पदों की रिक्ति को आरटीआई की सक्रियता के लिए बाधक बताया गया है. राज्यों के मामले में उत्तर प्रदेश ने 14 साल में एक भी वार्षिक रिपोर्ट पेश नहीं की है, जबकि बिहार सूचना आयोग की अब तक वेबसाइट भी नहीं बन पायी है.