समाजवादियों ने उनके समाजवाद का कॉरपोरेटीकरण कर उसे भाई-भतीजावादी पूंजीवाद का सगा बनाकर, उसे अस्मिता, जाति, वंश व परिवार के कॉकटेल में बदल आमजन के लिए वैसे ही निरर्थक कर डाला है, जैसे संकीर्णतावादियों ने गांधी के रामराज्य को.
लोहिया कहते थे कि किसी शख़्सियत का जन्मदिन मनाने या उसकी मूर्ति लगाने से, उसके निधन के 300 साल बाद तक परहेज रखना चाहिए ताकि इतिहास निरपेक्ष होकर यह फैसला कर पाए कि वह इसकी हक़दार थी या नहीं.