देश के केवल 66 प्रतिशत ज़िले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त: सरकार

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 ज़िलों में से सिर्फ 508  ने ही ख़ुद को मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) से मुक्त घोषित किया है. देश में पहली बार 1993 में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. बाद में 2013 में क़ानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- मैला ढोने की प्रथा ख़त्म करने के लिए क्या क़दम उठाए गए हैं

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने और आने वाली पीढ़ियों को इस ‘अमानवीय प्रथा’ से रोकने के अपने लगभग 10 साल पुराने फैसले को लागू करने के लिए उठाए गए क़दमों का रिकॉर्ड छह सप्ताह के भीतर अदालत के सामने पेश करे.

सरकार ने बताया- साल 2018 से 2022 तक 308 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान हुई

एक सवाल के जवाब में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा को सूचित किया कि इन 308 लोगों में से सबसे अधिक 52 मौतें तमिलनाडु में हुईं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 46 और हरियाणा में 40 लोगों की मौत सीवर सफाई के दौरान दर्ज की गई हैं.

‘मैनहोल टू मशीनहोल’ का वित्त मंत्री का दावा शब्दों की कलाबाज़ी भर है: सफाई कर्मचारी आंदोलन

मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि इस बार के बजट में सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में धन का आवंटन किया गया है. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.

सीवर में जान गंवाने वाले श्रमिकों के परिजनों को मुआवज़ा न मिलने पर जज बोले- शर्म से सिर झुका

दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते अक्टूबर में डीडीए को मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान जान गंवाने वाले दो लोगों के परिवार को 10-10 लाख रुपये मुआवज़ा देने को कहा था. ऐसा न किए जाने पर कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि हम ऐसे लोगों से यह बर्ताव कर रहे हैं जो हमारे लिए काम कर रहे हैं ताकि हमारी ज़िंदगी आसान हो.

कानपुर में सेप्टिक टैंक में उतरे तीन और गुड़गांव में दो लोगों की मौत

उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले के चौबेपुर क्षेत्र में एक सेप्टिक टैंक की शटरिंग हटाते वक़्त ज़हरीली गैस के संपर्क में आने से तीन लोगों की मौत हो गई. वहीं, हरियाणा के गुड़गांव में एक घर के सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से एक सफाई कर्मचारी और एक अन्य व्यक्ति की मौत हो गई.

महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान में छह श्रमिकों की मौत

महाराष्ट्र में पुणे शहर के वाघोली इलाके में एक हाउसिंग सोसाइटी की जल निकासी चैंबर एवं सेप्टिक टैंक में काम करने के दौरान तीन मज़दूरों की मौत हो गई. वहीं, तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदूर स्थित एक रिज़ॉर्ट का सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान तीन लोगों की दम घुटने से मौत हो गई.

दिल्ली: सीवर सफाई के दौरान मृत दो लोगों के परिजनों को दस-दस लाख रुपये देने का निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने डीडीए को बीते नौ सितंबर को बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान मारे गए दो लोगों के परिजनों को मुआवज़ा देने का निर्देश देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ादी के 75 साल बाद भी गरीब हाथ से मैला ढोने का काम करने को मजबूर हैं.

उत्तर प्रदेश: कानपुर में सेप्टिक टैंक की ज़हरीली गैस से तीन मज़दूरों की मौत

घटना कानपुर ज़िले के बर्रा इलाके में हुई. एक निर्माणाधीन मकान में बन रहे सेप्टिक टैंक के अंदर गए तीन मज़दूर ज़हरीली गैस के संपर्क में आने से बेहोश हो गए थे. उन्हें अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

दिल्ली: सीवर की ज़हरीली गैस से दो श्रमिकों की मौत

घटना बाहरी दिल्ली के मुंडका इलाके में हुई, जहां एक सफाईकर्मी अपार्टमेंट में सीवर बंद होने पर उसे जांचने के लिए उसमें उतरा और बेहोश हो गया. उनकी मदद के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड अंदर गया और वो भी अचेत हो गया. पुलिस के अनुसार, अस्पताल ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. 

पिछले पांच सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 347 लोगों की जान गई: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, वर्ष 2021 में 36 और 2022 में अब तक 17 मौतें हुईं. इस दौरान सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोगों की जान गई है.

हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मृत्यु होने की रिपोर्ट नहीं: सरकार

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में बताया कि पिछले तीन साल के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय हुईं दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हो गई. सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार का हाथ से मैला उठाने वालों को नकारना कोई नई बात नहीं है.

देश में मैला ढोने वालों की संख्या 58,098 है, इनमें से 42,594 लोग अनुसूचित जातियों से हैं: सरकार

सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने संसद में बताया कि सरकार की ओर से सिर पर मैला ढोने वालों की धर्म और जाति को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है. हालांकि इनकी पहचान करने के लिए मैनुअल स्केवेंजर अधिनियम 2013 के प्रावधानों के अनुसार सर्वेक्षण किए गए हैं. इन सर्वेक्षणों के दौरान मैला ढोने वालों की पहचान की गई है.

मानवाधिकार आयोग ने सफ़ाईकर्मियों की मौत के मामलों में ज़िम्मेदारी तय करने की पैरवी की

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर कहा कि सफ़ाईकर्मियों के साथ भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी की तरह व्यवहार किया जाए. आयोग ने कहा है कि सफ़ाईकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, प्रौद्योगिकी का उपयोग हो, जागरूकता फैलाई जाए और न्याय एवं पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए.

हाथ से मैला उठाने की प्रथा समाप्त करने की ज़िम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की है: बॉम्बे हाईकोर्ट

अदालत तीन महिलाओं के द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिनके पति हाथ से मैला उठाते थे और दिसंबर 2019 में एक निजी सोसायटी के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय उनकी मौत हो गई थी. अदालत ने मुंबई के ज़िलाधिकारी को निर्देश दिया कि मुआवजे़ के तौर पर प्रत्येक याचिकाकर्ता को 10 लाख रुपये की राशि दी जाए.

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