जोश मलीहाबादी: काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब, मेरा नारा इंक़लाब ओ इंक़लाब…

जन्मदिन विशेष: हर बड़े शायर की तरह जोश मलीहाबादी को लेकर विवाद भी हैं और सवाल भी, लेकिन इस कारण यह तो नहीं ही होना चाहिए था कि आलोचना अपना यह पहला कर्तव्य ही भूल जाए कि वह किसी शायर की शायरी को उसकी शख़्सियत और समय व काल की पृष्ठभूमि में पूरी ईमानदारी से जांचे.

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी: सब धुआं हो जाएंगे इक वाक़या रह जाएगा…

स्मृति शेष: पिछले दिनों उर्दू साहित्यकार और 90 वर्षों से ज़्यादा से छपने वाली पत्रिका ‘शायर’ के संपादक इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी इस दुनिया से चले गए. 'शायर' उन्हें पुरखों से विरसे में मिली थी, जिसे बनाए रखने का सफ़र आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने ज़िंदगीभर अपना सब कुछ लगाकर इसे मुमकिन किया.