आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता जीएन साईबाबा की कविताओं और पत्रों का संकलन के विमोचन के अवसर पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने जीएन साईबाबा की तत्काल रिहाई की मांग दोहराई. उन्होंने कहा कि आज की सरकार सोचती है कि कुछ लोगों को ‘अर्बन नक्सल’, ‘देशद्रोही’, ‘आतंकवादी’ क़रार देकर या उन्हें जेल में डालकर वह सफल हो सकती है.
एल्गार परिषद मामले में आरोपी बनाए गए सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद डॉ. आनंद तेलतुम्बड़े ने अप्रैल 2020 में अदालत के आदेश के बाद एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. दो साल बाद भी उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप साबित होने बाक़ी हैं. उनकी पत्नी रमा तेलतुम्बड़े ने इन दो सालों का अनुभव साझा किया है.
उमर ख़ालिद की ज़मानत ख़ारिज करने के फ़ैसले में अदालत यह कबूल कर रही है कि बचाव पक्ष के वकील पुलिस के बयान में जो असंगतियां या विसंगतियां दिखा रहे हैं, वह ठीक है. लेकिन फिर वह कहती है कि भले ही असंगति हो, उस पर वह अभी विचार नहीं करेगी. यानी अभियुक्त बिना सज़ा के सज़ा काटने को अभिशप्त है!
एनआईए ने 2017 में टेरर फंडिंग का यह मामला दर्ज कर कश्मीर के 17 आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र पेश किया था. अदालत ने इनमें से कश्मीरी पत्रकार कामरान यूसुफ़, वेंडर जावेद अहमद और अलगाववादी नेता आसिया अंद्राबी को बरी कर दिया है. बाकी 14 आरोपियों के ख़िलाफ़ आईपीसी और यूएपीए के तहत आरोप तय करने के आदेश दिए गए हैं.
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को सितंबर 2020 में दिल्ली पुलिस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की साज़िश रचने के आरोप में ग़ैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया था. फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में सीएए और एनआरसी के समर्थन और विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी.
केरल हाईकोर्ट का यह आदेश संबंधित आरोपी द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर आया है, जिसमें विशेष अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी में देरी होने के आधार पर आरोपमुक्त करने की उसकी याचिका को ख़ारिज कर दिया गया था.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम ने त्रिपुरा पुलिस और प्रशासन पर हिंसा से निपटने में ‘ईमानदारी की कमी’ प्रदर्शित करने का आरोप लगाया है. टीम की रिपोर्ट में कहा गया कि यह दिखाने के लिए बड़ी कॉन्सपिरेसी थ्योरी तैयार की गई कि सांप्रदायिक हिंसा को उजागर करने वाली स्वतंत्र पत्रकारिता एक चुनी गई सरकार को ‘राज्य के दुश्मनों द्वारा कमज़ोर करने’ का एक प्रयास है.
दिल्ली हाईकोर्ट एक आरोपी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने कहा है कि वह आठ साल से हिरासत में हैं और मामले में आरोप तय किए जाने बाकी हैं. मामले में सुनवाई में देरी हुई है, क्योंकि केवल दो नामित एनआईए अदालतें हैं, जो ग़ैर-एनआईए मामलों के साथ ज़मानत मामले, अन्य आईपीसी अपराध और मकोका मामलों की सुनवाई भी कर रही हैं.
साल 2014 में वायनाड में एक सिविल पुलिस अधिकारी के घर पर हमला करने के मामले में 2015 में 67 वर्षीय आरोपी को गिरफ़्तार किया गया था. आरोपी तब से जेल में बंद था. एनआईए का आरोप है कि आरोपी ने नक्सली विचारधारा को बढ़ावा देने में शामिल एक समूह को हथियारों की आपूर्ति की थी.
त्रिपुरा में हुई हिंसा के संबंध में मस्जिदों पर हमले और तोड़फोड़ के मामलों को कवर कर रहीं एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क की इन दो महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ एक स्थानीय विहिप नेता की शिकायत पर 14 नवंबर को एफ़आईआर दर्ज की गई थी. शिकायत में दावा किया गया कि मुस्लिम समुदाय के लोगों से मिलने के दौरान पत्रकारों ने हिंदू समुदाय और त्रिपुरा सरकार के ख़िलाफ़ भड़काऊ बातें कही थीं.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में बताया कि गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम क़ानून (यूएपीए) के तहत 80 लोगों को दोषी ठहराया गया, जबकि 2019 में 34 लोगों को दोषी ठहराया गया था. यूएपीए के तहत ज़मानत पाना बहुत ही मुश्किल होता है और जांच एजेंसी के पास चार्जशीट दाख़िल करने के लिए 180 दिन का समय होता है.
सुप्रीम कोर्ट त्रिपुरा में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा और इसे लेकर राज्य पुलिस की कथित मिलीभगत की स्वतंत्र जांच के लिए दायर याचिका की सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि घटनाओं की गंभीरता के बावजूद पुलिस द्वारा उपद्रवियों के ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया. उन लोगों में से किसी को गिरफ़्तार नहीं किया, जो मस्जिदों या दुकानों में तोड़फोड़ करने और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने वाले भाषण देने के लिए ज़िम्मेदार
त्रिपुरा में हो रही हिंसा के संबंध में मस्जिदों पर हमले और तोड़फोड़ के मामलों को कवर कर रहीं एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क की इन दो महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ एक स्थानीय विहिप नेता की शिकायत पर राज्य के कुमारघाट थाने में एफ़आईआर दर्ज की गई है. शिकायत में दावा किया गया है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों से मिलने के दौरान पत्रकारों ने हिंदू समुदाय और त्रिपुरा सरकार के ख़िलाफ़ भड़काऊ बातें कही थीं.
त्रिपुरा पुलिस ने विहिप सदस्य की शिकायत पर एचडब्ल्यू न्यूज़ नेटवर्क की दो पत्रकारों- समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है. इससे पहले पुलिस ने हिंसा संबंधित ख़बरों को ऑनलाइन पोस्ट करने को लेकर दो वकीलों और कई पत्रकारों समेत 102 लोगों पर यूएपीए के तहत केस दर्ज किया है.
त्रिपुरा पुलिस ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर त्रिपुरा के उत्तरी ज़िलों में हालिया सांप्रदायिक हिंसा के ख़िलाफ़, यहां तक कि इसका केवल उल्लेख करने के लिए कई पत्रकारों समेत 102 लोगों पर कड़े ग़ैरक़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था.