पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने 12% से भी कम महिलाओं को टिकट दिया

राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम की 679 सीटों में से भाजपा ने 643 और कांग्रेस ने 666 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है. इनमें से भाजपा ने केवल 80 और कांग्रेस ने 74 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 28 और कांग्रेस ने 30 महिलाओं को मैदान में उतारा है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सचिवालय भर्ती मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालयों के लिए कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा नहीं, बल्कि निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करते हुए बाहरी एजेंसियों द्वारा की गई थी. आरोप है कि बाहरी एजेंसियों के क़रीबी लोगों को चयन प्रक्रिया में ‘तरजीह’ दी गई.

छत्तीसगढ़ विधानसभा के पास नग्न प्रदर्शन करने वाले युवकों की ज़मानत याचिका ख़ारिज

छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने 29 युवकों की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी है. एसटी/एससी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इन युवकों ने कथित फ़र्ज़ी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर सरकारी नौकरियों में भर्ती पर राज्य की निष्क्रियता के ख़िलाफ़ विधानसभा के पास नग्न प्रदर्शन किया था.

हार्दिक ने गुजरात में भाजपा पर बेईमानी और धनबल से चुनाव जीतने का आरोप लगाया

हार्दिक ने दावा किया, मतदान के दौरान कई जगह वाई-फाई नेटवर्क पकड़ा गया. कई स्थानों पर मतगणना से पहले ईवीएम की सील टूटी मिली.

गुजरात विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के बड़े चेहरे हारे, भाजपा के ज़्यादातर दिग्गजों को मिली जीत

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढ़वाडिया, सिद्धार्थ चिमनभाई पटेल और राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल को क़रारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है.

क्या गुजरात में मोदी की चमक फीकी पड़ गई ​है?

गुजरात में अपनी कमज़ोरियों के कारण कांग्रेस भले ही बाज़ी नहीं पलट पायी, लेकिन मतदाताओं ने पिछली बार से डेढ़ दर्जन ज़्यादा सीटें देकर साफ कर दिया है कि वे ‘अपने’ प्रधानमंत्री के ‘कांग्रेसमुक्त भारत’ के आह्वान को कान नहीं दे रहे.

गुजरात चुनाव में भाजपा की जीत विपक्ष के लिए सुखद संदेश लाई है

अगर हिंदुत्ववादी आख्यान का जादू इस देश में चलेगा तो इससे यही प्रमाणित होता है कि भारत की राजनीति में विचारधारा की मौत नहीं हुई है. वह अगर दक्षिणपंथ के रूप में जिंदा है तो उसके वामपंथी या मध्यमार्गी होने की संभावना भी है.