जम्मू कश्मीर प्रशासन ने राज्य के आरटीआई मामलों को जल्द निपटाने में अटकाया रोड़ा

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने जम्मू कश्मीर में आरटीआई के तहत लंबित मामलों का निस्तारण केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा करने का फैसला लिया था. हालांकि अब जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक समिति बना दी है जिसके बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकेगा.

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(फोटो साभार: विकीपीडिया)

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने जम्मू कश्मीर में आरटीआई के तहत लंबित मामलों का निस्तारण केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा करने का फैसला लिया था. हालांकि अब जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक समिति बना दी है जिसके बाद ही इस पर कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकेगा.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने तत्कालीन जम्मू कश्मीर के सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2009 के तहत राज्य सूचना आयोग के समक्ष सुनवाई के लिए लंबित सभी दूसरी अपीलों और शिकायतों का निस्तारण केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा करने का फैसला लिया था.

लेकिन जम्म कश्मीर सामान्य प्रशासन विभाग ने इस मामले पर अंतिम फैसला लेने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है. इस समिति को 26 दिसंबर 2019 तक अपनी रिपोर्ट सौंपना है. आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करना आरटीआई मामलों के निपटारे में जानबूझकर देरी करना है.

जम्मू कश्मीर राज्य को 31 अक्टूबर 2019 को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख- में विभाजित कर दिया गया. इस फैसले की वजह से जम्मू कश्मीर का आरटीआई एक्ट, 2009 भी खत्म हो गया है और यहां पर केंद्र का आरटीआई एक्ट, 2005 लागू हो गया है.

जम्मू कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बड़ी संख्या में दिए गए आवेदन और अपीलें राज्य के विभाजन के वक्त लंबित थीं.

आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने जम्मू कश्मीर का विभाजन करने के फैसले को लागू करने से 15 दिन पहले 15 अक्टूबर 2019 को सीआईसी को एक दस-सूत्रीय एजेंडे के साथ एक पत्र भेजा था जिसमें जम्मू कश्मीर के राज्य सूचना आयोग में लंबित सभी मामलों को सीआईसी द्वारा फैसला लेने के लिए कहा था.

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जम्मू कश्मीर के मामलों के संबंध में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा लिया गया फैसला.

इसके अलावा डीओपीटी ने यह भी कहा था कि जम्मू कश्मीर के आरटीआई एक्ट, 2009 के तहत दायर किए गए सभी आरटीआई आवेदन, सभी प्रथम अपीलें, सभी नियुक्त जनसूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी को केंद्र के आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत माना जाएगा.

बाद में 25 अक्टूबर 2019 को हुई एक बैठक में केंद्रीय सूचना आयोग ने डीओपीटी के इन प्रस्तावों को मंजूरी दे दी और वे जम्मू कश्मीर के मामलों को सुनने के लिए तैयार हो गए थे.

हालांकि बीते 28 नवंबर 2019 को जम्मू कश्मीर सामान्य प्रशासन विभाग उपराज्यपाल जीसी मुर्मू के आदेश पर एक पांच सदस्यीय समिति बनाई है जिसे राज्य के आरटीआई मामलों पर फैसला लेना है.

समिति को इस संदर्भ में सुझाव देने हैं कि क्या जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश को केंद्रीय सूचना आयोग के दायरे में लाया जाएगा या फिर इसका अलग से केंद्रीय सूचना आयोग होगा.

इसके अलावा इन्हें इस मामले पर भी फैसला लेना है कि अगर जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश सीआईसी के दायरे में आता है तो आरटीआई एक्ट के तहत जन सूचना अधिकारी एवं अन्य पदाधिकारियों को फिर से पद पर नियुक्त करने के लिए क्या कार्य करने होंगे.

हालांकि की आरटीआई एक्ट की धारा 12-17 के मुताबिक केंद्रशासित प्रदेशों को सूचना आयोग बनाने की शक्ति नहीं है. यहां के मामलों की सुनवाई केंद्रीय सूचना आयोग में होती है.

आरटीआई कार्यकर्ताओं का मानना है कि डीओपीटी द्वारा इस मामले का समाधान करने के बाद भी समिति बनाकर फिर से उसी मामले पर निर्णय लेना आरटीआई मामलों  निपटारे में जानबूझकर देरी करना है.

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जम्मू कश्मीर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा बनाई गई समिति.

आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कहा, ‘आरटीआई एक्ट, 2005 में ये स्पष्ट रूप से लिखा है कि केंद्रशासित प्रदेशों को अपने यहां सूचना आयोग बनाने का अधिकार नहीं है. यहां के मामलों का फैसला सीआईसी द्वारा किया जाता है. जम्मू कश्मीर प्रशासन ने किसी ऐसे विषय पर निर्णय लेने के लिए समिति क्यों बनाई है जब कानून में ऐसा कोई प्रावधान है ही नहीं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर केंद्रशासित प्रदेश में सूचना आयोग बनाने का सुझाव दिया जाता है तो केंद्र के कानून में संशोधन करना होगा और ऐसा करने में काफी समय लग जाएगा, जो कि बेवजह की एक देरी होगी. आज जम्मू कश्मीर के लोगों को आरटीआई की सबसे ज्यादा जरुरत है.’

जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा समिति बनाने को लेकर अभी तक डीओपीटी का कोई बयान सामने नहीं आया है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार ने बीते पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का फैसला लिया था. इसके बाद से राज्य में संचार, आवागमन समेत कई प्रतिबंध लगा दिए गए जिसकी वजह से वहां का जनजीवन आज भी काफी प्रभावित है.