माइक्रोसॉफ्ट सीईओ सत्या नडेला ने नागरिकता कानून की आलोचना की, कहा- यह बहुत बुरा है

विश्व की अग्रणी प्रौद्योगिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने कहा कि मैं किसी बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत में अगला यूनिकॉर्न बनाने या इंफोसिस का अगला सीईओ बनते देखना चाहूंगा. अगर मैं देखूं तो जो मेरे साथ अमेरिका में हुआ मैं वैसा भारत में होते हुए देखना चाहता हूं.

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विश्व की अग्रणी प्रौद्योगिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने कहा कि मैं किसी बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत में अगला यूनिकॉर्न बनाने या इंफोसिस का अगला सीईओ बनते देखना चाहूंगा. अगर मैं देखूं तो जो मेरे साथ अमेरिका में हुआ मैं वैसा भारत में होते हुए देखना चाहता हूं.

माइक्रोसॉफ्ट सीईओ सत्या नडेला. (फोटो: रॉयटर्स)
माइक्रोसॉफ्ट सीईओ सत्या नडेला. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर भारत में जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सत्या नडेला ने कहा कि देश की मौजूदा स्थिति दुखद है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नडेला ने कहा, ‘मुझे लगता है कि जो हो रहा है, वह दुखद है. मुझे लगता है कि यह बुरा है. मैं तो भारत आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत में अगला यूनिकॉर्न बनाने या इन्फोसिस का अगला सीईओ बनते देखना पसंद करूंगा, वह प्रेरणा होनी चाहिए. अगर मैं देखूं तो जो मेरे साथ अमेरिका में हुआ मैं वैसा भारत में होते हुए देखना चाहता हूं.’

नडेला के बयान के बाद माइक्रोसॉफ्ट ने सत्या नडेला की ओर से जारी बयान में कहा, ‘हर देश को अपनी सीमाओं को परिभाषित करना चाहिए. राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करनी चाहिए और उसके अनुरूप आव्रजन नीति निर्धारित करनी चाहिए. लोकतंत्र में लोग और उनकी सरकारें इस पर बहस करें और सीमाओं को परिभाषित करें.’

बयान में कहा गया, ‘मैं अपनी भारतीय विरासत से जुड़ा हुआ हूं, बहुसांस्कृतिक भारत में पला-बढ़ा हूं. मैं एक ऐसे भारत की उम्मीद करता हूं, जहां एक प्रवासी एक समृद्ध स्टार्टअप को शुरू करने और एक बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेशन की अगुवाई करने की सोच सकें साथ में भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचा सके.’

नडेला ने अपनी बात समझाने के लिए खुद का उदाहरण भी दिया. उन्होंने कहा कि वह अगर वह ग्लोबल कंपनी के सीईओ बन पाए हैं और अगर उन्हें अमेरिका की नागरिकता मिल पाई है तो उन्हें भारत में टेक्नॉलजी तक मिली पहुंच और अमेरिकी की इमिग्रेशन पॉलिसी को इसका श्रेय जाता है. उन्होंने समावेशी भारतीय संस्कृति का भी जिक्र किया और कहा कि बाजार की ताकतों और उदरावादी मूल्यों के कारण ही पूंजीवाद को बल मिला है, यह भारत की सरकार अच्छी तरह समझ रही होगी, उन्हें यह उम्मीद है.

दरअसल नडेला मैनहट्टन में माइक्रोसॉफ्ट के एक कार्यक्रम में संपादकों के साथ बातचीत कर रहे थे.

इस दौरान बजफीड न्यूज के एडिटर इन चीफ बेन स्मिथ ने नडेला से भारत के नए नागरिकता कानून के बारे में सवाल पूछा था, जिस पर नडेला ने यह प्रतिक्रिया दी.

बेन स्मिथ ने नडेला से पूछा था कि सरकार के साथ जो कंपनियां डील करती हैं उन पर काफी दबाव रहता है, मुझे लगता है कि भारत में नागरिकता कानून पर जारी विरोध के बीच आपकी भारत सरकार को लेकर चिंताएं बढ़ी होंगी, कि वो डेटा का किस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं?

इस पर नडेला ने कहा, ‘मेरा बचपन भारत में ही बीता है, जहां पर मैं बड़ा हुआ, जिस माहौल में बड़ा हुआ उस पर मैं पूरी तरह से गर्व करता हूं. मुझे लगता है कि वो एक ऐसी जगह है जहां पर हम दिवाली, क्रिसमस साथ में मिलकर मनाते हैं. लेकिन मुझे लगता है जो हो रहा है बुरा हो रहा है, खासकर उसके लिए जो कुछ और देखकर वहां पर बड़ा हुआ हो. अगर कहूं तो दो अमेरिकी चीजें जिनको हमने देखा है वह एक तकनीक है और दूसरा प्रवासियों के लिए उसकी पॉलिसी, जिसकी वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं. मुझे लगता है कि ये बुरा है, लेकिन मैं एक बांग्लादेशी प्रवासी को जो भारत में आया हो उसे बड़ा होते हुए देखना चाहता हूं या इंफोसिस का सीईओ बनते हुए देखना चाहिए. अगर मैं देखूं तो जो मेरे साथ अमेरिका में हुआ मैं वैसा भारत में होते हुए देखना चाहता हूं.’

नडेला के इस बया पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा, ‘मैं खुश हूं कि नडेला ने वो कहा जो वह महसूस करते हैं. मैं चाहता हूं कि हमारे अपने आईटी सेक्टर के लोगों में वह कहने का साहस हो, जो वे सोचते हैं.’

इस बीच लेखक और स्तंभकार सदानंद धुमे ने कहा, ‘मैं कहीं न कहीं अचंभित हूं कि सत्या नडेला ने इस मुद्दे पर बात की लेकिन पूरी तरह आश्चर्यचकित नहीं हूं कि उन्होंने भारत के नागरिकता कानून से असहमति जताई. माइक्रोसॉफ्ट जैसी सफल कंपनी बिना धर्म को ध्यान में रखकर सभी लोगों को समान अवसर दिए जाने के सिद्धांतों पर बनी है.’

मालूम हो कि नागरिकता कानून 10 जनवरी से प्रभावी हो गया. इसके तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले यह इस तारीख तक भारत में रह रहे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, पारसियों, जैनों और इसाईयों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.

नागरिकता कानून के विरोध में देशभर में हुए प्रदर्शनों में अब तक लगभग 26 लोगों की मौत हो चुकी है. सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में हुई है. हिंसा के दौरान 21 प्रदर्शनकारियों की यूपी में मौत हुई.

इस कानून के विरोध में सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने क्षतिपूर्ति के लिए 400 लोगों को नोटिस भेजा है.

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