स्विस कंपनी के ज़रिये दशकों तक भारत-पाकिस्तान की जासूसी कर रहा था सीआईए: रिपोर्ट

अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट और जर्मनी की सरकारी संवाद एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी खुफिया संस्था सीआईए ने एक स्विस कंपनी के ज़रिये लगभग पचास सालों से अधिक समय तक दुनिया के तमाम देशों के गोपनीय सूचनाओं और जानकारी में सेंध लगाई और अमेरिकी नीति तय करने में सहायता दी.

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(फोटो: रॉयटर्स)

अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट और जर्मनी की सरकारी संवाद एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी खुफिया संस्था सीआईए ने एक स्विस कंपनी के ज़रिये लगभग पचास सालों से अधिक समय तक दुनिया के तमाम देशों के गोपनीय सूचनाओं और जानकारी में सेंध लगाई और अमेरिकी नीति तय करने में सहायता दी.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

वाशिंगटन: अमेरिका की खुफिया संस्था सीआईए ने एक स्विस कंपनी के जरिये भारत सहित दुनिया के तमाम देशों के गोपनीय संदेशों को दशकों तक पढ़ा और अमेरिकी नीति तय करने में सहायता दी. स्विट्जरलैंड की इस कंपनी पर दुनिया को बड़ा भरोसा था लेकिन वास्तव में इस कंपनी में सीआईए की साझेदारी थी.

यह जानकारी अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट और जर्मनी की सरकारी संवाद एजेंसी जेडडीएफ में प्रकाशित रिपोर्ट में सामने आई है. भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस कंपनी के उपकरणों का उपयोग पूरे विश्व में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा अपने जासूसों, सैनिकों और गोपनीय राजनयिकों के साथ संदेशों के आदान-प्रादान के लिए बेहद विश्वसनीय माना जाता रहा, लेकिन किसी को भी इस कंपनी का मालिकाना हक संयुक्त रूप से सीआईए और उसकी सहयोगी पश्चिमी जर्मनी की खुफिया एजेंसी बीएनडी के पास होने का पता किसी को नहीं चला.

बताया जा रहा है कि यह सिलसिला करीब पचास सालों तक चला. क्रिप्टो एजी नाम की स्विस कंपनी से सन 1951 में सीआईए (सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी) का समझौता हुआ और यह 1970 के बाद तक चला.

दोनों समाचार समूहों सीआईए की गोपनीय कार्रवाइयों पर आधारित खोजपूर्ण संयुक्त अभियान चला रहे हैं. इस अभियान में बताया जा रहा है कि किस तरह से अमेरिका और उसके सहयोगी देश दुनिया के देशों से धन लेते थे और उनकी सूचनाओं की चोरी कर उनका फायदा उठाते थे.

क्रिप्टो एजी का गठन 1940 में संवाद और सूचनाओं की सुरक्षा के लिए एक स्वतंत्र संस्था के तौर पर हुआ था. लेकिन बाद में इसने अपनी भूमिका बदल ली.

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स्विट्जरलैंड में क्रिप्टो एजी का दफ्तर. (फोटो: रॉयटर्स)

रिपोर्ट के अनुसार कूट भाषा (कोड लैंग्वेज) में होने वाले संवाद के लिए उपकरण बनाने वाली क्रिप्टो एजी ने सीआईए से हाथ मिलाकर अपने ग्राहक देशों के साथ विश्वासघात किया.

करीब 50 साल तक दुनिया के तमाम देशों की सरकारें अपने जासूसों, सेनाओं और कूटनीतिकों से होने वाले संवाद के लिए क्रिप्टो एजी पर निर्भर थीं और उस पर विश्वास करती थीं. कंपनी के ग्राहकों में लैटिन अमेरिकी देश, भारत, पाकिस्तान, ईरान और वेटिकन भी थे.

इन सभी देशों को कभी शक भी नहीं हुआ कि उनके गोपनीय संदेशों को इस तरह से बीच से ही चुराया जा रहा है. उनको यह भी पता नहीं चल सका कि क्रिप्टो एजी का सीआईए के साथ कोई रिश्ता है.

यह बात पश्चिमी जर्मनी के खुफिया संगठन और सीआईए के बीच गठजोड़ से पता चली कि क्रिप्टो एजी का इस्तेमाल किया जा रहा था.

इस रिपोर्ट के अनुसार, सीआईए और नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी ने सहयोगियों और विरोधियों दोनों की ही जासूसी की। कंपनी ने सालों तक दुनिया के कई देशों की विश्वसनीयता हासिल होने के बावजूद विभिन्न देशों के जासूस, सैनिकों और राजनयिकों के गोपनीय बातचीत और संवाद को बिना उनकी जानकारी के सुना।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस कंपनी के क्लाइंट्स ईरान, लैटिन अमेरिकी देश, भारत, पाकिस्तान और वेटिकन शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस कंपनी के किसी भी क्लाइंट को इस बारे में जानकारी नहीं थी कि कंपनी का स्वामित्व सीआईए के पास है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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