यूपी: सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के सरकार के नोटिस पर हाईकोर्ट की रोक

सीएए के ख़िलाफ़ राज्य में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से ही इसकी भरपाई की जाएगी. इस बारे में जारी सरकार के वसूली नोटिस को कानपुर के व्यक्ति द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

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Mirzapur: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath addresses at a rally during the five-days Ganga Yatra under the 'Namami Ganga' campaign, in Mirzapur, Wednesday, Jan. 29, 2020. (PTI Photo)(PTI1_29_2020_000180B)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

सीएए के ख़िलाफ़ राज्य में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से ही इसकी भरपाई की जाएगी. इस बारे में जारी सरकार के वसूली नोटिस को कानपुर के व्यक्ति द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.

Mirzapur: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath addresses at a rally during the five-days Ganga Yatra under the 'Namami Ganga' campaign, in Mirzapur, Wednesday, Jan. 29, 2020. (PTI Photo)(PTI1_29_2020_000180B)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने के दौरान हुए सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने के उत्तर प्रदेश सरकार के नोटिस पर रोक लगा दी है.

लाइव लॉ के मुताबिक कानपुर के एक याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नुकसान की भरपाई के लिए दिए गए नोटिस की वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने सरकार के वसूली नोटिस पर रोक लगा दी है.

याचिकाकर्ता को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वसूली नोटिस दिया गया था. फिलहाल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को नुकसान की भरपाई के नोटिस से अंतरिम संरक्षण दिया है.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा नियोजित नियमों के कथित अभ्यास में एडीएम की ओर से नोटिस जारी किया गया था, जबकि ऐसा करना डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम सरकार (2009)5 एसीसी 212 में पारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.

इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि हर्जाने या जांच की देयता का अनुमान लगाने के लिए एक वर्तमान या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायाधीश को दावा आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जा सकता है. ऐसा कमिशनर हाईकोर्ट के निर्देश पर सबूत ले सकता है. देयता का आकलन करने के बाद इसे हिंसा के अपराधियों और घटना के आयोजकों द्वारा वहन किया जाएगा.

दैनिक भास्कर के मुताबिक कानपुर में बीते 19 व 20 दिसंबर को सीएए के विरोध में हिंसा हुई थी, जिसमें दो पुलिस चौकियों को आग के हवाले कर दिया गया, साथ ही तमाम सार्वजनिक संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया था.

इसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को चिह्नित कर उन्हें नोटिस भेजा, जो कानपुर के रहने वाले मोहम्मद फैजान को भी मिला. फैजान ने ही इस नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका दायर की है. जिसके बाद अदालत के आदेश पर फैजान को अंतरिम राहत मिली है. अदालत ने इस बारे राज्य सरकार को काउंटर एफिडेविट फाइल करने के लिए एक महीने का समय दिया है.

एक ऐसी ही याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच भी सुनवाई कर रही है. वकील परवेज आरिफ टीटू द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर दिए गए डेस्टरेक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम सरकार (2009)5 एसीसी 212 में पारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका के मद्देनजर हाईकोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख तक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्रवाई के परिणाम के अधीन लगाए नोटिस पर रोक लगा दी है.

पीठ ने कहा, ‘हम इस विचार के हैं कि जिन नियमों के तहत नोटिस जारी किया गया है, उन्हें शीर्ष अदालत के समक्ष चुनौती दी गई है, इसलिए न्याय की मांग है कि जारी किए गए नोटिस के प्रभाव और संचालन को तब तक रोक दिया जाए है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में समस्या का निर्धारण न हो जाए.’

सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का हवाला देते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इन नोटिसों को चुनौती देने वाली एक याचिका को इस सप्ताह के शुरू में खारिज कर दिया था. मामले को 20 अप्रैल को आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

बता दें कि इससे पहले 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सीएए प्रदर्शन के दौरान हुए सार्वजनिक संपत्ति की नुकसान भरपाई के नोटिस रद्द करने संबंधी याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था.

याचिका में दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा नीत योगी आदित्यनाथ सरकार प्रदर्शनकारियों की संपत्ति जब्त कर, सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान का बदला लेने के मुख्यमंत्री के वादे पर आगे बढ़ रही है ताकि अल्पसंख्यक समुदाय से राजनीतिक कारणों के लिए बदला लिया जा सके.

मामले में याचिकाकर्ता एवं वकील परवेज आरिफ टीटू ने यह दावा करते हुए इन नोटिस पर रोक लगाने का अनुरोध किया है कि ये उन व्यक्तियों को भेजे गए हैं जिनके खिलाफ किसी दंडात्मक प्रावधान के तहत मामला दर्ज नहीं हुआ और न ही उनके खिलाफ किसी प्राथमिकी या अपराध का ब्योरा उपलब्ध कराया गया है.

इसके अलावा वकील निलोफर खान के जरिये दायर याचिका में कहा गया था कि ये नोटिस 2010 में दिए गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर आधारित हैं, जो 2009 में शीर्ष अदालत द्वारा पारित फैसले के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है. इन निर्देशों की 2018 के फैसले में पुन: पुष्टि की गई थी.

मामूल हो कि 19-20 दिसंबर, 2019 को लखनऊ और राज्य के अन्य हिस्सों में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे. उसी दौरान कथित तौर पर सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया जिसमें सरकारी बसें, मीडिया वैन, मोटर बाइक आदि भी शामिल थी.

उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम, 1984  की धारा 3 और 4 के तहत नोटिस जारी किए थे.

बिजनौर में 20 दिसंबर को हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान का आकलन करने के बाद जिला प्रशासन ने 43 लोगों को वसूली नोटिस भेजा था. यहां हिंसा के दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी और इस सिलसिले में 146 गिरफ्तारियां की गई थी.

गोरखपुर शहर में 33 लोगों को पुलिस ने नोटिस भेजा था. वहीं संभल में 11 लाख 66 हजार रुपये का नुक़सान पाया गया था और 26 लोगों को नोटिस जारी किए गए थे. रामपुर में 28 लोगों को नोटिस जारी करके 25 लाख की भरपाई करने को कहा गया था. नोटिस में इन 28 लोगों को हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान का ज़िम्मेदार बताया गया था.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चेतावनी दी थी कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, उनसे बदला लिया जाएगा और नुकसान की भरपाई की जाएगी.

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