सुप्रीम कोर्ट के कार्यक्रम में बोले कानून मंत्री- शासन का काम प्रतिनिधियों पर छोड़ना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट में 'न्यायपालिका और बदलती दुनिया' विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गांधीजी का जीवन सत्य और सेवा को समर्पित था, जो किसी भी न्यायतंत्र की नींव माने जाते हैं औ हमारे बापू खुद भी तो वकील थे.

/
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में जस्टिस एनवी रमना, सीजेआई एसए बोबडे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: ट्विटर/पीआईबी)

सुप्रीम कोर्ट में ‘न्यायपालिका और बदलती दुनिया’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गांधीजी का जीवन सत्य और सेवा को समर्पित था, जो किसी भी न्यायतंत्र की नींव माने जाते हैं औ हमारे बापू खुद भी तो वकील थे.

अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में जस्टिस एनवी रमना, सीजेआई एसए बोबडे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: ट्विटर/पीआईबी)
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन में जस्टिस एनवी रमना, सीजेआई एसए बोबडे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और जस्टिस अरुण मिश्रा. (फोटो: ट्विटर/पीआईबी)

नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को कहा कि शासन की जिम्मेदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों और निर्णय सुनाने का काम न्यायाधीशों पर पर छोड़ देना चाहिए.

कानून मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट में ‘न्यायपालिका और बदलती दुनिया’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन 2020 में कहा कि आतंकवादियों और भ्रष्ट लोगों को ‘निजता का कोई अधिकार नहीं’ है और ऐसे लोगों को व्यवस्था का दुरुपयोग नहीं करने देना चाहिए.

प्रसाद ने आगे कहा कि लोकलुभावनवाद को कानून के तय सिद्धांतों से ऊपर नहीं होना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि व्यवस्था में परिवर्तन तर्कसंगत और कानून के अनुसार होना चाहिए. प्रधानमंत्री ने पर्यावरण न्यायशास्त्र को पुनर्परिभाषित करने के लिए शीर्ष अदालत की सराहना की और कहा कि न्यायपालिका ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन कायम किया है. मोदी ने कहा कि कोई भी देश लैंगिक न्याय सुनिश्चित किए बिना पूर्ण विकास हासिल नहीं कर सकता.

उन्होंने ट्रांसजेंडरों पर कानून, ‘ट्रिपल तालक’ और ‘दिव्यांग’ (विकलांग व्यक्ति) के अधिकारों का उल्लेख किया और कहा कि सरकार ने सैन्य सेवाओं में महिलाओं को अधिकार देने और 26 सप्ताह के लिए भुगतान किए गए मातृत्व अवकाश प्रदान करने के लिए भी कदम उठाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इन्हें 1.3 अरब भारतीयों ने खुले दिन से अपनाया है. उन्होंने कहा कि यह दुनिया भर में उल्लेखनीय परिवर्तनों का एक दशक होने जा रहा है, जो सभी सीमाओं, समाज, अर्थव्यवस्था व प्रौद्योगिकी, को प्रभावित करेगा और इन परिवर्तनों को तर्कसंगत और न्यायसंगत होने की आवश्यकता है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधीजी का जीवन सत्य और सेवा को समर्पित था, जो किसी भी न्यायतंत्र की नींव माने जाते हैं और हमारे बापू खुद भी तो वकील थे. अपने जीवन का जो पहला मुकदमा उन्होंने लड़ा, उसके बारे में गांधी जी ने बहुत विस्तार से अपनी आत्मकथा में लिखा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हर भारतीय की न्यायपालिका पर बहुत आस्था है. हाल में कुछ ऐसे बड़े फैसले आए हैं, जिनको लेकर पूरी दुनिया में चर्चा थी. फैसले से पहले अनेक तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं. लेकिन हुआ क्या? सभी ने न्यायपालिका द्वारा दिए गए इन फैसलों को पूरी सहमति के साथ स्वीकार किया.

उन्होंने कहा कि तमाम चुनौतियों के बीच कई बार देश के लिए संविधान के तीनों पिलर ने उचित रास्ता ढूंढा है. हमें गर्व है कि भारत में इस तरह की एक समृद्ध परंपरा विकसित हुई है. बीते पांच वर्षों में भारत की अलग-अलग संस्थाओं ने, इस परंपरा को और सशक्त किया है.

इस मौके पर बोलते हुए चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि भारत एक मिली-जुली संस्कृति वाला देश है और इसमें मुगलों, डच, पुर्तगाली और अंग्रेजों की संस्कृतियों को आत्मसात किया गया है.

सीजेआई एसए बोबडे ने महात्मा गांधी के उन शब्दों को याद किया कि यदि सभी अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो उनके अधिकारों का ध्यान रखा जाता है. उन्होंने कहा, ‘भारतीय संविधान के केंद्र में व्यक्ति था और व्यक्ति के अधिकारों को मान्यता दी गई थी.’

सीजेआई ने आगे कहा कि संविधान ने एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका बनाई है और ‘हम इस बुनियादी सुविधा को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रयासरत हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)