सुप्रीम कोर्ट ने माना, रॉ की पूर्व कर्मचारी की यौन उत्पीड़न की शिकायत गंभीरता से नहीं ली गई

खुफिया एजेंसी रॉ की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने एजेंसी के दो वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि जांच में देरी के चलते आरोप साबित नहीं हो पाए.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
(फोटो: पीटीआई)

खुफिया एजेंसी रॉ की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने एजेंसी के दो वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि जांच में देरी के चलते आरोप साबित नहीं हो पाए.

New Delhi: A view of the Supreme Court of India in New Delhi, Monday, Nov 12, 2018. (PTI Photo/ Manvender Vashist) (PTI11_12_2018_000066B)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने देश की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की पूर्व महिला कर्मचारी की यौन उत्पीड़न की शिकायत पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करने पर केंद्र सरकार से पीड़िता को एक लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि महिला द्वारा रॉ के तत्कालीन प्रमुख और डिप्टी के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत पर कार्रवाई में देरी की गई और उसे गंभीरता से नहीं लिया.

साल 2008 में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के बाहर आत्महत्या करने का प्रयास करने के बाद महिला कर्मचारी को दिसंबर 2009 में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया था.

जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी ने याचिकाकर्ता से सहमति जताई कि यौन शोषण की उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया. इस पर कोई दोराय नहीं है कि याचिकाकर्ता की यौन उत्पीड़न की शिकायतें विभाग में उनके वरिष्ठों की काम करने संबंधी अज्ञानता और आकस्मिक रवैये को दर्शाती हैं.’

पीठ ने इस बात पर भी सहमति जताई कि जांच में देरी की वजह से यौन शोषण के आरोप साबित नहीं हो पाए.

पीठ ने कहा कि कार्यस्थलों पर महिला कर्मचारियों को सम्मानजनक माहौल प्रदान कराने के लिए विशाखा गाइडलाइंस का पालन करना जरूरी है.

मालूम हो कि विशाखा गाइडलाइंस के तहत कार्यस्थल पर यौन शोषण की शिकायत मिलने पर तत्काल जांच समिति गठित करने अनिवार्य है.

जस्टिस खानविलकर ने कहा, ‘यौन उत्पीड़न की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिए जाने की वजह से याचिकाकर्ता ने अत्यधिक असंवेदनशील और असहज परिस्थितियों का सामना किया. शिकायत की जांच के नतीजों की परवाह किए बिना याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का स्पष्ट रूप से हनन किया गया. इस पूरी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता के सम्मान से जीने के उनके अधिकारों के उल्लंघन के लिए उन्हें एक लाख रुपये की मुआवजा राशि दी जानी चाहिए.’

पीठ ने कहा कि मुआवजे की यह धनराशि आज से अगले छह सप्ताह के भीतर या तो याचिकाकर्ता को सीधे तौर पर दी जाए या सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री कार्यालय में जमा कराई जाए.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में पीड़िता को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया.

एजेंसी का कहना था कि 2008 में आत्महत्या का प्रयास करने की वजह से वह मीडिया सुर्खियों में आ गई थीं, जिससे उनकी गोपनीयता समाप्त हो गई थी.

मालूम हो कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ महिला कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की थीं, जिस वजह से वह अभी तक आधिकारिक आवास पर ही रह रही थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने महिला को आधिकारिक आवास खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया है और साथ में प्रशासन से भी कहा है कि वह आधिकारिक आवास में तय समय से अधिक रहने की वजह से महिला पर किसी तरह का जुर्माना नहीं लगाए.

महिला कर्मचारी ने अदालत में याचिका दायर कर यह भी मांग की थी कि सरकार उनकी बेटी की उच्च शिक्षा का पूरा भार वहन करे, जो लगभग 26 लाख रुपये था.

पीठ ने कहा, ‘अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी होने की वजह से याचिकाकर्ता का सेवानिवृत्ति लाभों को प्राप्त करने का अधिकार उसके लिए लागू सेवा नियमों के प्रावधानों के तहत ही सीमित होना चाहिए. विचाराधीन रिट याचिका में दिए गए कारणों की वजह से याचिकाकर्ता को कोई मुआवजा नहीं दिया जा सकता.’

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