असम: तबलीगी जमात को लेकर विवादित पत्र लिखने वाले विदेशी न्यायाधिकरण सदस्य को हटाया गया

असम में विदेशी न्यायाधिकरण के सदस्य केके गुप्ता ने पिछले महीने स्वास्थ्य और वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को लिखे पत्र में कहा था कि कुछ सदस्यों द्वारा कोविड-19 के लिए इकट्ठा किए गए पैसों को दिल्ली में तबलीगी जमात की बैठक में शामिल होने वालों को राहत देने में इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि वे जिहादी और जाहिल हैं.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

असम में विदेशी न्यायाधिकरण के सदस्य केके गुप्ता ने पिछले महीने स्वास्थ्य और वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को लिखे पत्र में कहा था कि कुछ सदस्यों द्वारा कोविड-19 के लिए इकट्ठा किए गए पैसों को दिल्ली में तबलीगी जमात की बैठक में शामिल होने वालों को राहत देने में इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि वे जिहादी और जाहिल हैं.

New Delhi: Members of the Tablighi Jamaat leave in a bus from LNJP hospital for the quarantine centre during the nationwide lockdown, in wake of the coronavirus pandemic, in New Delhi, Tuesday, April 21, 2020. (PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI21-04-2020_000208B)
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गुवाहाटी: पिछले महीने तबलीगी जमात को लेकर विवादित पत्र लिखने वाले विदेशी न्यायाधिकरण के सदस्य कमलेश कुमार गुप्ता को असम सरकार ने न्यायाधिकरण से हटा दिया है. वे असम के बक्सा जिले में तैनात थे.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले महीने लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि कुछ सदस्यों द्वारा कोविड-19 के लिए इकट्ठा किए गए पैसों को दिल्ली में तबलीगी जमात की बैठक में शामिल होने वालों को राहत देने में इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि वे जिहादी और जाहिल हैं.

दरअसल गुप्ता सहित विदेशी न्यायाधिकरण के 12 सदस्यों ने अपनी एक दिन की सैलरी राज्य सरकार को दान करने के लिए इकट्ठा की थी जो कि 60 हजार रुपये से अधिक थी. हालांकि, बाकी के सदस्यों ने पत्र में लिखे गए विवादित हिस्से से अपनी अनभिज्ञता जताई थी.

22 मई को दिए गए अपने आदेश में असम सरकार के राजनीतिक विभाग की अंडर सेक्रेटरी एन. गोस्वामी ने कहा, ‘जनसेवा के हित में…विदेशी न्यायाधिकरण के सदस्य कमलेश कुमार गुप्ता, बक्सा को 23/5/2020 की दोपहर से कार्यमुक्त किया जाता है क्योंकि उनके आचरण को एक जिम्मेदार विदेशी न्यायाधिकरण सदस्य के तौर पर असंतुलित पाया गया है.’

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘राज्य ऐसे व्यक्ति को इस तरह के जिम्मेदार पद पर रखने का जोखिम नहीं उठा सकता है.’ उन्होंने कहा कि गुप्ता का अनुबंध नवीकरण के लिए आया था और सरकार ने उनके आचरण को देखते हुए अनुबंध न बढ़ाने का फैसला किया.

दरअसल, गुप्ता ने 7 अप्रैल को राज्य के स्वास्थ्य और वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को पत्र लिखा था. हालांकि, गुप्ता ने कहा था कि उन्होंने पत्र वापस ले लिया है और यह वास्तव में सरकार को कभी नहीं भेजा गया था. पत्र में 12 अन्य विदेशी न्यायाधिकरण सदस्यों के नामों का उल्लेख किया गया था जिन्होंने बाद में खुद को इससे दूर कर लिया था.

मीडिया में मामला सामने आने के बाद ऑल इंडिया माइनॉरिटीज स्टूडेंट्स यूनियन ने गुप्ता के खिलाफ केस दर्ज कराया था.

वहीं, बारपेटा से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक ने भी असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को पत्र लिखकर गुप्ता को उनके बेहद सांप्रदायिक और इस्लामोफोबिक पत्र के लिए बर्खास्त करने की मांग की थी.

एफआईआर दर्ज होने के बाद 30 अप्रैल के एक पत्र में राजनीतिक विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी एनडी पटवारी ने गुप्ता के पत्र में उल्लेखित अन्य सदस्यों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

पटवारी ने लिखा था, ‘इस तरह का काम एक जिम्मेदार विदेशी न्यायाधिकरण सदस्य के लिए अनुचित है, क्योंकि इससे सांप्रदायिक वैमनस्य फैल सकता है. आपको यह कारण बताने के लिए निर्देशित किया जाता है कि आपको इस काम के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना क्यों नहीं करना चाहिए.’

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