आईएलओ ने प्रधानमंत्री से की अपील, कहा- भारत की अंतरराष्ट्रीय श्रम प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखें

देश के 10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने आईएलओ को पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि वे विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

देश के 10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने आईएलओ को पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि वे विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.

Dadri: Migrant workers wait in a queue while being lodged at a camp by the Uttar Pradesh government, during ongoing COVID-19 lockdown, at Dadri in Gautam Buddha Nagar district, Wednesday, May 20, 2020. (PTI Photo/Atul Yadav) (PTI20-05-2020 000206B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि वे श्रम कानूनों के संबंध में भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञाओं या प्रतिबद्धताओं को बनाए रखेंगे और सामाजिक विचार-विमर्श को बढ़ावा देंगे.

आईएलओ को ये बयान देश के दस मजदूर संगठनों और ट्रेन यूनियनों द्वारा 14 मई को भेजे गई उस शिकायत पर आया है, जिसमें उन्होंने आईएलओ से गुजारिश की थी कि वे देश के विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.

आईएलओ द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया, ‘आईएलओ महानिदेशक ने इस संबंध में तत्काल हस्तक्षेप किया था और इसे लेकर गहरी चिंता जाहिर की है. प्रधानमंत्री से ये अपील की गई है कि वे केंद्र एवं राज्य सरकारों को स्पष्ट संदेश दें कि देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखा जाए और प्रभावी सामाजिक संवाद को सुनिश्चित किया जाए.’

ILO India Labour laws change
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का पत्र.

आईएलओ ने आगे कहा कि इस संबंध में भारत सरकार द्वारा जो भी जवाब सौंपा जाएगा, उसके बारे में भविष्य में जानकारी दी जाएगी.

श्रमिक संगठनों- इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ, टीयूसीसी और यूटीयूसी द्वारा 14 मई को आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर को लिखे पत्र में कहा कि एक तरफ लॉकडाउन के चलते बहुत बड़ी संख्या में श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन का फायदा उठाकर राज्य सरकारें श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन कर रही हैं.

उन्होंने कहा है, ‘ये दुर्भाग्य है कि भारत सरकार राज्य सरकारों द्वारा प्रशासनिक आदेश या अध्यादेश के जरिये नियोक्ताओं को मजदूरों के प्रति उनकी जिम्मेदारी से तीन सालों के लिए मुक्त करने के फैसलों का समर्थन कर रही है जिसमें कंपनी को अपनी सुविधानुसार श्रमिकों को नौकरी पर रखने और उन्हें नौकरी से निकालने, मजदूरों द्वारा अपनी बात रखने के अधिकार को खत्म करना, काम के दौरान सुरक्षा और स्वास्थ्य के अधिकारों पर रोक लगाना, कंपनी का इंस्पेक्शन न करना जैसी चीजें शामिल हैं.’

संगठनों के कहा है कि लॉकडाउन के चलते मजदूर देश के कोने-कोने में फंसे हुए हैं और उनकी कोई सुध नहीं लेने वाला है. इसके कारण उन्हें सैकड़ों किलोमीटर रोड, रेल पटरी, खेतों, जंगलों से पैदल चलकर अपने घर आना पड़ रहा है. इस कठोर यात्रा में कई लोगों की मौत भूख और दुर्घटना इत्यादि के चलते हुई है.

उन्होंने कहा है, ‘हमारा मानना है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मानकों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत एक दिन में आठ घंटे काम करने के नियम के अलावा इस तरह का कदम मानवाधिकार और मजदूरों के अधिकार पर हमला है. सरकार द्वारा त्रिपक्षीय विचार-विमर्श के संबंध में आएलओ कन्वेंशन 144 का भी उल्लंघन किया गया है.’

दस केंद्रीय श्रम संघों द्वारा आईएलओ को भेजा गया पत्र.
दस केंद्रीय श्रम संघों द्वारा आईएलओ को भेजा गया पत्र.

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की महासचिव अमरजीत सिंह ने कहा, ‘आईएलओ का ये जवाब हमारी पहली शिकायत पर आया है. हम जल्द ही उन्हें अपनी दूसरी शिकायत भेजने वाले हैं.’

बीते 22 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मजदूर संगठनों ने श्रम कानूनों में प्रस्तावित बदलावों को वापस लेने की मांग की थी.

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन अवधि से पहले और उसके दौरान किए गए कार्यों के लिए अधिकांश श्रमिकों को मजदूरी से वंचित कर दिया गया है और लाखों लोगों को रोजगार से बाहर निकाल दिया गया है.

मालूम हो कि इससे पहले आईएलओ ने कहा था कि भारत में श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए. 

भारत आईएलओ के संस्थापक सदस्यों में से एक है, जो कि 1919 में अस्तित्व में आया था. भारतीय संसद ने आईएलओ के 47 समझौतों को मंजूरी दी है, जिनमें से काम के घंटे निर्धारित करने, श्रम निरीक्षण, समान वेतन और किसी दुर्घटना के समय मुआवजा समेत कई कल्याणकारी प्रावधान शामिल हैं.

भारत में कुछ राज्य अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और निवेश को बढ़ाने के नाम पर या तो महत्वपूर्ण श्रम कानूनों पर कुछ सालों के लिए रोक लगा रहे हैं या फिर उद्योगों के लिए इन कानूनों के कई प्रावधानों को हल्का किया जा रहा है.

इस मामले में सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, जिसने एक अध्यादेश पारित कर लगभग सभी कानूनों पर तीन साल के लिए रोक लगा दी थी. इसमें काम के लिए निश्चित आठ घंटे को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया था. हालांकि तमाम आलोचनाओं के बाद राज्य सरकार ने मजदूरों के 12 घंटे काम करने के आदेश को वापस ले लिया है.

यूपी का अनुसरण करते हुए गुजरात सरकार ने कहा है कि राज्य में निवेश करने वाली नई कंपनियों को अगले 1,200 दिनों के लिए कई महत्वपूर्ण श्रम कानूनों से छूट दी जाएगी.

इसके अलावा मध्य प्रदेश सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करके फैक्ट्री लगाने और दिहाड़ी मजदूरों को नौकरी पर रखने के लिए कई लाइसेंसों से छूट प्रदान की है. राज्य ने फैक्ट्री एक्ट, 1948 के विभिन्न प्रावधानों के तहत मजदूरों को लाभ देने से भी उद्योगों को छूट दे दी है.

श्रमिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण इन कानूनों को हल्का करने या कुछ वर्षों के लिए इन पर रोक लगाने की वजह से न सिर्फ मजदूरों को अपनी बात रखने की इजाजत नहीं मिलेगी, काम के घंटे बढ़ा दिए जाएंगे, नौकरी से निकालना आसान हो जाएगा बल्कि उन्हें आधारभूत सुविधाओं जैसे कि साफ-सफाई, वेंटिलेशन, पानी की व्यवस्था, कैंटीन और आराम कक्ष जैसी चीजों से भी वंचित रहना पड़ सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि श्रम कानून में बदलाव मजदूरों के अधिकारों से खिलवाड़ हैं और इसके कारण उन्हें मालिकों के रहम पर जीना पड़ेगा. इनका कहना है कि उद्योग इसलिए नहीं आते हैं कि किसी राज्य में श्रम कानून खत्म कर दिया गया है या वहां श्रम कानून कमजोर है. उद्योग वहां पर आते हैं जहां निवेश का माहौल बेहतर होता है.

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