‘भोपाल में कोरोना से हुई 36 मौतों में से 32 गैस पीड़ित हैं’

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन और संभावना ट्रस्ट ने भोपाल में अब तक हुई कुल मौतों में से 36 की जानकारी निकाली है, जिसमें सामने आया है कि इनमें से बत्तीस गैस पीड़ित हैं. संगठनों का दावा है कि गैस जनित दुष्प्रभावों के चलते कोरोना का पीड़ितों पर गंभीर असर हो रहा है. इसके बावजूद सरकार इनके लिए आवश्यक क़दम उठाने में कोताही बरत रही है.

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A team of doctors wearing protective suits check slum dwellers during a house-to-house health survey at Vallabh Nagar during the nationwide lockdown imposed in wake of the coronavirus pandemic in Bhopal Monday April 20 2020. (Photo | PTI)

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन और संभावना ट्रस्ट ने भोपाल में अब तक हुई कुल मौतों में से 36 की जानकारी निकाली है, जिसमें सामने आया है कि इनमें से बत्तीस गैस पीड़ित हैं. संगठनों का दावा है कि गैस जनित दुष्प्रभावों के चलते कोरोना का पीड़ितों पर गंभीर असर हो रहा है. इसके बावजूद सरकार इनके लिए आवश्यक क़दम उठाने में कोताही बरत रही है.

A team of doctors wearing protective suits check slum dwellers during a house-to-house health survey at Vallabh Nagar during the nationwide lockdown imposed in wake of the coronavirus pandemic in Bhopal Monday April 20 2020. (Photo | PTI)
(फोटो: पीटीआई)

भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में रहने वाले 44 साल के अनवर अहमद को 2 मई की रात दिल का दौरा पड़ा. अगले दो दिन शहर के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद 5 मई को उनकी मौत हो गई.

56 वर्षीय नईम अहमद कैंसर पीड़ित थे. 22 अप्रैल को भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर हॉस्पिटल (जेएनसीएच) से कीमोथैरेपी करवाकर लौटे थे. अगले दिन बुखार आया, अगले 11 दिन शहर के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद 3 मई को उनकी भी मौत हो गई.

40 वर्ष के मोहम्मद इसरार सांस के मरीज थे. शहर के शाकिर अली अस्पताल और कमला नेहरू अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 1 मई को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई. वे उक्त अस्पतालों से दवा भी लेकर आए लेकिन 4 मई को वे अचानक बेहोश हो गए. हमीदिया अस्पताल ले जाया गया, जहां कुछ ही घंटों बाद उनकी मौत हो गई.

इन सभी मामलों में कुछ समानताएं थीं. सभी मृतक 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित थे. सभी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे और सभी की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव आई थीं.

ज्ञात हो कि 35 साल पहले भोपाल में विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी घटी थी. उसका शिकार बने लोगों के जख्म अब तक हरे हैं. भोपाल गैस कांड’ के पीड़ित विभिन्न गंभीर बीमारियों से अब तक जूझ रहे हैं, जिनमें दिल, फेफड़े, सांस संबंधी रोग और किडनी व कैंसर आदि मुख्य बीमारियां हैं.

तब लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइट नामक जहरीली गैस के दुष्प्रभाव गैस पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी तक में देखे जा रहे हैं. गैस कांड के कई वर्षों बाद जन्मे लोग भी गंभीर बीमारियों का शिकार हैं. गैस पीड़ितों के बच्चे अब तक शारीरिक कमियों के साथ पैदा हो रहे हैं.

लेकिन अब कोरोना संक्रमण के चलते गैस पीड़ितों के लिए हालात और भी अधिक भयावह हो गए हैं. एक तरफ तो गैस जनित रोगों से उनका जीवन संघर्ष जारी है तो दूसरी तरफ कोरोना भी उन पर कहर बनकर टूट रहा है.

गैस पीड़ितों के पुनर्वास और इलाज के लिए तीन दशकों से काम कर रहीं भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन (बीजीआईए) और संभावना ट्रस्ट से जुड़ीं रचना ढींगरा बताती हैं, ‘कोरोना के चलते भोपाल में जब तक 59 मौतें हुई थीं, तब इनमें से 36 मृतकों की जब हमने जानकारी जुटाई तो सामने आया कि उन 36 में से 32 मृतक गैस पीड़ित थे.’

रचना ढींगरा बताती हैं कि उनका एनजीओ बाकी 23 मृतकों की भी जानकारी जुटाने में लगा हुआ है जिसके बाद सभी की सूची जारी की जाएगी. हालांकि, ऐसी ही दो सूचियां उनके द्वारा पहले भी जारी की जा चुकी हैं.

पिछली सूची जारी होने के समय भोपाल में कोरोना से मरने वालों की संख्या 21 थी, जिनमें से 19 मृतक गैस पीड़ित थे. लेकिन तब से अब तक परिस्थितियों में कोई सुधार नहीं हुआ है और गैस पीड़ितों की मौतों का सिलसिला जारी है. ऐसा भी नहीं है कि हालातों को काबू करने के लिए जिम्मेदार लोग इन तथ्यों से अनभिज्ञ हों.

गौरतलब है कि जब प्रदेश में कोरोना ने दस्तक भी नहीं दी थी उससे पहले ही गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे चार संगठनों (भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ, भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा, भोपाल ग्रुप ऑफ इंफॉर्मेशन एंड एक्शन और चिल्ड्रन अगेंस्ट डाव कार्बाइड) ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, भारतीय चिकित्सीय अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर) के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव, केंद्रीय रसायन मंत्रालय, राज्य के मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी और भोपाल गैस कांड राहत एवं पुनर्वास विभाग की सचिव पल्लवी जैन गोहिल को एक पत्र लिखा था.

21 मार्च को लिखे गए उक्त पत्र में चेताया गया था कि आम लोगों की अपेक्षा गैस पीड़ितों में कोविड-9 से संक्रमित होने की संभावनाएं अधिक हैं, इसलिए करीब साढ़े पांच लाख से अधिक गैस पीड़ित आबादी की देखभाल और टेस्टिंग के लिए तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है.

लेकिन किसी भी मंत्रालय, विभाग या संस्थान ने इस पत्र पर कोई कार्रवाई तो दूर, इसका जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा.

रचना ढींगरा बताती हैं, ‘उस पत्र में हमने अनुमान जताया था कि किसी आम व्यक्ति के मुकाबले एक गैस पीड़ित में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा पांच गुना अधिक है. हमारा अनुमान था कि कोरोना से 1:5 के अनुपात में मौतें होंगी यानी कि एक आम आदमी मरेगा तो पांच गैस पीड़ित. लेकिन वर्तमान आंकड़े उससे भी अधिक हैं.’

वे आगे कहती हैं, ‘वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि जिन लोगों में फेफड़े, किडनी, दिल, डायबिटीज, कैंसर और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) संबंधी समस्याएं हैं उनमें आमजन के मुकाबले संक्रमण का खतरा 80 फीसदी अधिक होता है. किसी को अगर इनमें से दो बीमारी हैं तो खतरा ढाई गुना बढ़ जाता है. गैस पीड़ितों में तो कैंसर और फेफड़े, दिल व किडनी संबंधी रोग आम हैं. अनेक पीड़ितों में तो इनमें से दो या दो से अधिक बीमारी हैं.’

चिकित्सीय शोध में भी सामने आ चुका है कि गैस पीड़ितों के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली क्षतिग्रस्त हो चुकी है. करीब साढ़े पांच लाख पीड़ितों का एक चौथाई हिस्सा गंभीर जानलेवा बीमारियों की चपेट में है.

गैस पीड़ितों के सबसे बड़े अस्पताल भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) के आंकड़े ही बताते हैं कि 50.4 फीसदी गैस पीड़ित दिल, 59.6 फीसदी फेफड़े और 15.6 फीसदी मधुमेह की समस्या से जूझ रहे हैं. सरकारी आंकड़ों में 10,550 पीड़ित कैंसर के रोगी हैं.

गैस पीड़ितों के लिए बने सबसे बड़े अस्पताल भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर. (फोटो: दीपक गोस्वामी)
गैस पीड़ितों के लिए बने सबसे बड़े अस्पताल भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर. (फोटो: दीपक गोस्वामी)

बीजीआईए से जुड़े सतीनाथ षड़ंगी कहते हैं, ‘गैस पीड़ितों पर आईसीएमआर की ही एक रिपोर्ट बताती है कि पीड़ितों की बहुसंख्यक आबादी आर्थिक तंगी का शिकार है. अधिकांश पीड़ित भीड़-भाड़ वाले और अस्वच्छ हालातों में तंग कमरों में रहते है. साथ ही अधिकांश पीड़ित मजदूर, सफाईकर्मी और सुरक्षाकर्मी हैं या सब्जी बेचने और ठेला चलाने जैसे काम करते हैं, इसलिए भी इन लोगों में संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है.’

वे आगे कहते हैं, ‘प्रदेश में कोरोना के दस्तक देने से पहले ही यह सभी तथ्य हमने राज्य और केंद्र सरकार व इसके विभिन्न विभागों और जिम्मेदार सरकारी संस्थानों के सामने रखे थे, लेकिन उनकी तरफ से कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई.’

होना तो यह चाहिए था कि 21 मार्च को गैस पीड़ितों के संगठनों द्वारा लिखे गए पत्र को ध्यान में रखकर पीड़ितों को कोरोना से सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट.

23 मार्च को प्रदेश सरकार के जन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने एक आदेश जारी किया, जिसके मुताबिक गैस पीड़ितों के सबसे बड़े अस्पताल बीएमएचआरसी को कोविड-19 अस्पताल में तब्दील करके केवल कोरोना मरीजों के इलाज के लिए रिजर्व कर दिया.

सरकारी आदेश पर अमल करते हुए अगले ही दिन अस्पताल प्रबधंन ने अपने स्टाफ को जारी एक आदेश में कहा, ‘अब से केवल कोविड-19 मरीजों को ही बीएमएचआरसी में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक बाकी सभी स्वास्थ्य सेवाएं रोक दी जाती हैं.’

रचना बताती हैं, ‘आदेश पर अमल करते हुए अस्पताल में न सिर्फ गैस पीड़ितों के लिए ओपीडी रोक दी गई बल्कि अस्पताल में भर्ती 86 लोगों को भी भगा दिया गया. यह लापरवाही उनमें से 4 लोगों की मौत का कारण बनी. केवल चार मरीजों को अस्पताल में भर्ती रखा गया जिनमें से तीन वेंटिलेटर्स पर थे और एक कार्डियाक यूनिट में.’

जब उन चार मरीजों पर भी कहीं और शिफ्ट हो जाने का दबाव बनाया जाने लगा तो उनमें से एक मुन्नी बी. ने बीजीआईए के साथ मिलकर राज्य सरकार के अस्पताल अधिग्रहण के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

रचना बताती हैं, ‘अप्रैल के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने मामला हाईकोर्ट भेजा. जिस दिन हाईकोर्ट में सुनवाई थी, उससे एक दिन पहले ही सरकार ने बीएमएचआरसी को रिलीज कर दिया.’

यह पूरा वाकया बताता है कि राज्य सरकार गैस पीड़ितों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए गंभीर ही नहीं थी. इसी के चलते कोरोना संक्रमण से गैस पीड़ितों की मौत का सिलसिला ऐसा शुरु हुआ जो अब थमने का नाम नहीं ले रहा है और न ही सरकार, जिम्मेदार विभाग और बीएमएचआरसी प्रबंधन की संवेदनहीनता ही थम रही है.

इसका उदाहरण यह है कि जब 21 मार्च के पत्र का कोई जवाब नहीं मिला और कोरोना से गैस पीड़ितों की मौतों का सिलसिला शुरू हो गया, तब 23 अप्रैल को गैस पीड़ितों के संगठनों की ओर से फिर एक पत्र लिखा गया. इस बार पत्र में तीन नाम और जोड़े गए- प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान,  स्वास्थ्य आयुक्त फैज अहमद किदवई और भोपाल कलेक्टर तरुण पिथोरे.

पत्र में सभी मृतक गैस पीड़ितों की सूची भी संलग्न की गई और कई ऐसे सुझाव दिए गए जो गैस पीड़ितों में कोरोना का संक्रमण फैलने से रोक सकते थे. स्वास्थ्य आयुक्त किदवई को छोड़कर इस पत्र पर भी किसी ने कोई संज्ञान नहीं लिया.

किदवई ने संगठन से जुड़े लोगों को मिलने बुलाया था और उनके सुझाव भी लिए, लेकिन इससे भी कोई खास अंतर नहीं पड़ा और हालात जस के तस बने रहे.

हालांकि किदवई द वायर  से बातचीत में कहते हैं, ‘हमने विशेष तौर पर गैस पीड़ितों के लिए अलग सहायता केंद्र बनाए हैं जहां वे जांच के लिए आ सकते हैं. जांच में अगर वे संदिग्ध पाए जाते हैं तो उनको जिस अस्पताल में भर्ती होने लायक पाया जाता है, वहां रेफर कर दिया जाता है. उनके जो एनजीओ हैं, उन्हें हमने साथ जोड़ा है और गैस पीड़ितों को जांच कराने के लिए इन केंद्रों तक ला रहे हैं.’

उनके दावे के इतर गैस पीड़ितों के संगठन कुछ और ही कहानी बताते हैं. वे कहते हैं, ‘विशेष सहायता केंद्र बनाने का श्रेय तो उन्हें देना पड़ेगा लेकिन इससे कुछ हुआ नहीं. हमारा सुझाव था कि गैस प्रभावित क्षेत्रों में केंद्र बनाए जाएं लेकिन उन्होंने बीएमएचआरसी की मिनी यूनिट्स और गैस राहत डिस्पेंसरीज को ही विशेष सहायता केंद्रों में तब्दील कर दिया. वहां भी जांच बहुत ही कम होती हैं, बस स्क्रीनिंग होती है, वो भी उनकी जो वहां पहुंचते हैं.’

वे आगे कहते हैं, ‘हमारी मांग थी कि आप उन तक पहुंचे जो डिस्पेंसरी आ नहीं पा रहे हैं, इसके लिए हमने हर एक मोहल्ले की उन्हें सूची भी दी. जो पीड़ित हाई रिस्क हैं, वह सूची दी. उन्हें बीएमएचआरसी से भी वहां रजिस्टर्ड साढ़े तीन लाख गैस पीड़ितों की सूची लेनी चाहिए थी. फिर सब तक पहुंचना चाहिए था. लेकिन ये लोग डिस्पेंसरी में बैठ जाते हैं और जो इलाज लेने आते हैं सिर्फ उनकी स्क्रीनिंग कर देते हैं और जांच तो बहुत कम की हो पाती है.’

बहरहाल, बीएमएचआरसी राज्य सरकार के फरमान से तो आजाद हो गया है, लेकिन गैस पीड़ितों के इलाज के प्रति अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही और असंवेदनशील रवैया अब भी जारी है, जिसका खामियाजा पीड़ितों को भोगना पड़ रहा है.

जिन अनवर अहमद का पहले जिक्र किया गया, वे इसका सबसे बड़ा उदाहरण थे. उनके 21 वर्षीय बेटे अलमास अहमद बताते हैं, ‘2 मई को पिताजी के सीने में दर्द हुआ तो उन्हें जयप्रकाश (जेपी) अस्पताल ले गए. वहां हार्ट अटैक का बताकर हमीदिया रेफर कर दिया. हमीदिया में घंटों एक विभाग से दूसरे विभाग भगाने के बाद घर ले जाने बोल दिया और कहा कि पापा में कोरोना का कोई लक्षण नहीं है.’

वे आगे बताते हैं, ‘तकलीफ कम न होते देख हम उन्हें अगले दिन बीएमएचआरसी ले गए. वहां पहले हमसे उनके गैस पीड़ित होने संबंधी सभी दस्तावेज मंगाए गए, तब इलाज शुरू किया. फिर कुछ दवा देकर घर जाने बोल दिया. हमने लाख मिन्नतें कीं कि तकलीफ कम होने तक उन्हें भर्ती कर लिया जाए लेकिन एक नहीं सुनी गई.’

उसी रात अनवर अहमद को सीने में और तेज दर्द उठा, तब अलमास उन्हें लेकर फिर बीएमएचआरसी पहुंचे. अलमास बताते हैं, ‘इस बार डॉक्टरों ने बोला कि पहले हमीदिया अस्पताल से कोरोना की जांच कराकर आएं तब भर्ती करेंगे. हमने हमीदिया का अपना बुरा अनुभव भी बताया लेकिन फिर भी कोई उन्हें छूने तक तैयार नही था. मजबूरन हम घर वापस आ गए. पापा की हालात नाजुक हुई तो आनन-फानन में फिर से उन्हें जेपी अस्पताल ले गए, वहां से फिर हमीदिया रेफर किया गया. वहां उन्हें कोविड वार्ड में भर्ती करके उनकी कोरोना की जांच की और वेंटिलेटर पर डाल दिया.’

अलमास बताते हैं कि अब तक तो केवल निजी अस्पतालों में सुना था कि मरीज के मौत के बाद भी वे उसके परिजनों को उसके जिंदा होने का झूठा दिलासा देते हैं, लेकिन हमीदिया जैसे सरकारी अस्पताल में भी हमारे साथ ऐसा हुआ. पिता जी की मौत हो चुकी थी और नर्स हमसे आकर कह रही थी कि घबराएं नहीं, डॉक्टर पूरी कोशिश कर रहे हैं.

भावुक होकर अलमास कहते हैं, ‘उनकी उम्र बस 44 साल थी, अगर बीएमएचआरसी ने उनका इलाज किया होता तो अभी वे और जी सकते थे.’

रचना बताती हैं, ‘बीएचएमआरसी में अकेले अलमास के साथ ऐसा नहीं हुआ. कोरोना की जांच कराने के नाम पर अब तक तीन लोगों को वे भगा चुके हैं और सभी की मौत हो गई. जबकि हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल को स्पष्ट आदेश दिए थे कि जो भी गैस पीड़ित बीएमएचआरसी में इलाज के आता है उसकी कोरोना जांच होनी चाहिए. लेकिन अस्पताल अपनी आफत टालने के लिए कोरोना संदिग्ध मरीजों को जांच के लिए हमीदिया भेज देता है.’

वे आगे कहती हैं, ‘सबसे बड़ी विडंबना तो यही है कि बीएमएचआरसी की लैब में पूरे प्रदेश की कोरोना जांचे हो रही हैं लेकिन जिन गैस पीड़ितों के लिए यह अस्पताल बना है, उन्हीं की जांच यहां नहीं की जा रही है.’

इस संबंध में हमने बीएमएचआरसी की निदेशक डॉ. आशा देसीकन का भी पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.

इस बीच अलमास ने इस घटनाक्रम पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैस राहत अस्पतालों की निगरानी के लिए बनाई गई समिति में शिकायत की है और पिता की मौत के लिए बीएमएचआरसी को जिम्मेदार ठहराते हुए मुआवजे की मांग की है.

इस पर निगरानी समिति ने बीएमएचआरसी प्रबंधन से जवाब भी मांगा है. निगरानी समिति के अध्यक्ष जस्टिस वीके अग्रवाल कहते हैं, ‘एक-दो शिकायतें हमारे पास आई थीं. इसमें कोई शंका नहीं कि अस्पतालों की कार्यशैली में कमियां हैं. ऐसी शिकायतों का अवसर ही नहीं आना चाहिए. खासतौर पर ऐसे क्राइसिस में तो बिल्कुल ही नहीं. हमने उन शिकायतों को हैंडल किया है. फिलहाल हफ्ते-दस दिन से कोई शिकायत नहीं आई हैं.’

Bhopal: People recovered from COVID-19 wait to be discharged from the Chirayu Hospital, in Bhopal, Monday, June 1, 2020. (PTI Photo) (PTI01-06-2020_000076B)
(फोटो: पीटीआई)

बीएमएचआरसी अस्पताल की कार्यशैली हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है, लेकिन इस कोरोना काल में गैस पीड़ितों के इलाज में अन्य अस्पतालों में भी लापरवाही बरती जा रही हैं.

शुरुआत में जिन कैंसर मरीज नईम अहमद का जिक्र किया गया, उन्हें कोरोना की जांच के नाम पर तीन दिन हमीदिया और जेपी अस्पताल के चक्कर कटवाए गए, 25 मई को जेपी अस्पताल में जांच हुई लेकिन 2 मई को उनकी मौत होने तक उस जांच की रिपोर्ट सामने नहीं आई.

30 अप्रैल को उन्हें हलात बिगड़ने पर हमीदिया भर्ती कराया गया तो फिर कोरोना की जांच हुई. यह रिपोर्ट जरूर दो दिन में आ गई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और नईम को बचाया नहीं जा सका.

उनके भतीजे मूसा कुरैशी कहते हैं, ‘जेपी अस्पताल की जांच रिपोर्ट अगर समय पर आ गई होती तो चाचा जी का इलाज ठीक ढंग से हो गया होता और वो शायद आज हमारे बीच होते. जब तक कोरोना का पता चला, तब तक हालात ऐसे हो गए कि हमीदिया ने भी हाथ खड़े कर दिए और चिरायु अस्पताल रेफर कर दिया.’

थोड़ा रुककर वे आगे कहते हैं, ‘कैंसर तो चाचा जी का कुछ नहीं बिगाड़ पाया लेकिन बुखार या कहूं कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया, वो भी व्यवस्था की लापरवाही के चलते.’

गैस पीड़ित मृतकों के परिजनों से बात करने पर एक डरावना तथ्य और सामना आया, जो गैस पीड़ित संगठनों द्वारा लिखे गए पत्रों में वर्णित तथ्यों की पुष्टि करता है.

जितने भी गैस पीड़ित मृतकों के परिजनों से हमने बात की, उनमें केवल एक ही ऐसे थे जिनकी कोरोना रिपोर्ट उनके जीवित रहते आ गई थी, बाकी सबकी रिपोर्ट उनकी मौत के बाद आई. इससे साफ होता है कि कोरोना संक्रमण गैस पीड़ितों के लिए इतना घातक सिद्ध हो रहा है कि जांच रिपोर्ट आने से पहले ही उनकी मौत हुई जा रही है,

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ से जुड़ीं रशीदा बी कहती हैं, ‘मरने वाले सभी हाई रिस्क थे और हम बार-बार सरकारों और उनके विभागों को यही समझा रहे थे कि उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. नतीजे अब सामने आने लगे हैं. गैस पीड़ित कोरोना की चपेट में आते ही तत्काल दम तोड़ रहे हैं.’

बहरहाल, सरकारें और उनके विभाग गैस पीड़ितों के संगठनों की सुनना तो दूर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति तक की बात नहीं सुन रहे हैं.

23 अप्रैल के पत्र के संबंध में निगरानी समिति ने आईसीएमआर द्वारा भोपाल में चलाए जाने वाले बीएचएमआरसी, राष्ट्रीय पर्यावरणीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान (निरेह) और प्रदेश शासन के भोपाल गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग को कहा था कि सभी गैस पीड़ितों में संक्रमण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को आधार बनाकर उनकी कोरोना की जांच होना सुनिश्चित किया जाए, उन्हें सुपर स्पेशिलिटी ट्रीटमेंट प्रदान हो.

साथ ही निरेह को कोरोना की जांच करने को कहा था क्योंकि उनकी पास इससे संबंधित जरूरी ढांचा है. लेकिन निगरानी समिति की इन सिफारिशों पर अब तक कोई अमल नहीं किया गया.

नतीजतन हर दिन के साथ भोपाल गैस कांड की शिकार आबादी अब कोरोना की शिकार बनती जा रही है और जिम्मेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है. संवेदनहीनता का आलम यह है कि ऐसे नाजुक मौके पर भी गैस राहत विभाग अनाथ पड़ा है, न तो कोई मंत्री है और न ही प्रमुख सचिव.’

रचना कहती हैं, ‘भोपाल के कोरोना के हॉटस्पॉट क्षेत्रों पर नजर डालेंगे तो लगभग सारे के सारे गैस प्रभावित इलाके ही मिलेंगे. इसके बावजूद भी गैस पीड़ितों को संक्रमण से बचाने के लिए कोई विशेष प्रयास न करना साफ दिखाता है कि गैस पीड़ितों को भगवान भरोसे मरने के लिए छोड़ दिया गया है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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