सरकारें विरोध की आवाज़ दबाने के लिए राज्य प्रशासन का इस्तेमाल कर रही हैं: मीडिया संगठन

प्रधानमंत्री के गोद लिए गए गांव से संबंधित एक रिपोर्ट पर पत्रकार सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ वाराणसी में केस दर्ज़ किया गया है. मीडिया संगठनों का कहना है कि अधिकारियों द्वारा क़ानूनों के इस तरह से दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति भारत के लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने की तरह है.

(फोटो: रॉयटर्स)

प्रधानमंत्री के गोद लिए गए गांव से संबंधित एक रिपोर्ट पर पत्रकार सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ वाराणसी में केस दर्ज़ किया गया है. मीडिया संगठनों का कहना है कि अधिकारियों द्वारा क़ानूनों के इस तरह से दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति भारत के लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने की तरह है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के एक गांव पर कोरोना वायरस लॉकडाउन के प्रभाव पर रिपोर्ट को लेकर एक पत्रकार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किए जाने की मीडिया संगठनों ने आलोचना की है और कहा है कि कई सरकारें राज्य प्रशासन को विरोध की आवाज दबाने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं.

गौरतलब है कि समाचार पोर्टल ‘स्क्रोल डॉट इन’ की संपादक सुप्रिया शर्मा के खिलाफ वाराणसी के रामनगर थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई है.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि यह प्राथमिकी वाराणसी के डोमरी गांव निवासी माला देवी द्वारा दी गई एक शिकायत के आधार पर दर्ज की गई है. डोमरी गांव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया गया है और वाराणसी उनका संसदीय क्षेत्र है.

एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी को अतिरंजित प्रतिक्रिया बताया.

एक बयान में गिल्ड ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ कानून के आपराधिक प्रावधानों का प्रयोग अब अस्वस्थ और गंदा चलन हो गया है जिसकी लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है.

इसने कहा कि इसका विरोध होना चाहिए और इसे खत्म किया जाना चाहिए.

गिल्ड ने स्क्रोल डॉट इन के बयान का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि वह अब भी उस रिपोर्ट पर कायम है. स्क्रोल ने कहा है कि डोमरी गांव में माला देवी का इंटरव्यू पांच जून, 2020 को किया गया था और उनका बयान ‘इन वाराणसी विलेज अडॉप्टेड बाय प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी, पीपल वेंट हंगरी डूरिंग लॉकडाउन’ (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए वाराणसी के गांव में लोग लॉकडाउन के दौरान भूखे रहे) में सही ढंग से पेश किया गया है.

ऑउटलुक के मुताबिक एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा है कि सरकार ऐसा कर कानून का दुरुपयोग कर रही है, जो निंदनीय है जिसे तत्काल वापस लिया जाए.

बयान में कहा गया कि पत्रकारों के खिलाफ कानून के आपराधिक प्रावधानों का उपयोग अब एक अस्वास्थ्यकर और घृणित प्रवृत्ति बन गया है, जिसका किसी भी जीवंत लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है. एडिटर्स गिल्ड इसका विरोध करता है.

गिल्ड का मानना है कि सुप्रिया शर्मा के खिलाफ आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं का इस्तेमाल गलत तरह से किया गया है और यह मीडिया की स्वतंत्रता को गंभीरता से कम करेगा.

साथ ही कहा गया है कि गिल्ड सभी कानूनों का सम्मान करता है और साथ ही माला देवी के बचाव के अधिकार से भी खुद को रोकता है, लेकिन ऐसे कानूनों के अनुचित दुरुपयोग को भी निंदनीय मानता है. इससे भी बदतर, अधिकारियों द्वारा कानूनों के इस तरह के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति भारत के लोकतंत्र के एक प्रमुख स्तंभ को नष्ट करने की तरह है.

भारतीय महिला प्रेस कोर ने भी सुप्रिया शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी पर चिंता जताई है. संगठन ने एक बयान में कहा कि प्राथमिकी पत्रकारों को धमकाने का एक और प्रयास है ताकि वे सत्तारूढ़ लोगों को असहज लगने वाले समाचारों पर फोकस नहीं कर सकें.

संगठन ने कहा कि सत्ता को सच दिखाना पत्रकारों का काम है ताकि सरकार सुधार के उपाय करके गलत चीजों को खत्म कर सके.

बयान में कहा गया, ‘इसकी बजाय कई सरकारें राज्य प्रशासन का प्रयोग विरोध के स्वर उठाने वालों को धमकाने और उनके उत्पीड़न के लिए कर रही हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25