प्रधानमंत्री को अपने कहे गए शब्दों के असर के प्रति सचेत होना चाहिए: मनमोहन सिंह

लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद हुए 20 भारतीय सैनिक के संबंध में जारी एक बयान में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि आज हम इतिहास के एक नाज़ुक मोड़ पर खड़े हैं. हमारी सरकार के निर्णय एवं उसके द्वारा उठाए गए क़दम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आकलन कैसे करेंगी.

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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में शहीद हुए 20 भारतीय सैनिक के संबंध में जारी एक बयान में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि आज हम इतिहास के एक नाज़ुक मोड़ पर खड़े हैं. हमारी सरकार के निर्णय एवं उसके द्वारा उठाए गए क़दम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आकलन कैसे करेंगी.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. (फोटो: पीटीआई)
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान को लेकर उनकी आलोचना करते हुए सोमवार को कहा कि मोदी को अपने बयान से चीन के षड्यंत्रकारी रुख को ताकत नहीं देनी चाहिए तथा सरकार के सभी अंगों को मिलकर मौजूदा चुनौती का सामना करना चाहिए.

चीन की सेना के साथ हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने और सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बयान के संबंध में जारी एक बयान में मनमोहन सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री को अपने कहे गए शब्दों के असर को लेकर सावधान रहना चाहिए.

सिंह ने यह भी कहा कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति एवं मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता तथा यह सुनिश्चित होना चाहिए कि जवानों का बलिदान व्यर्थ न जाए.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-चीन तनाव विषय पर बीते 19 जून को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में कहा था कि भारतीय क्षेत्र में कोई नहीं घुसा है और न ही किसी सैन्य चौकी पर कब्जा हुआ है.

उनके इस बयान को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय ने शनिवार को कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सर्वदलीय बैठक में की गई टिप्पणियों की कुछ हलकों में ‘शरारतपूर्ण व्याख्या’ की कोशिश की जा रही है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हालांकि पीएमओ ने कहा कि सर्वदलीय बैठक में बताया गया था कि इस बार चीन की सेना एलएसी पर बहुत बड़ी संख्या में गई थी और भारतीय प्रतिक्रिया सराहनीय है.

बता दें कि यह पहली बार है जब पीएमओ ने बड़ी संख्या में चीन के जवानों की मौजूदगी की बात स्वीकार की है.

इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि अच्छी-खासी संख्या में चीन के लोग भी आ गए हैं, लेकिन भारत को भी अपनी तरफ से जो कुछ करना चाहिए भारत ने किया है.

बहरहाल प्रधानमंत्री के इस बयान पर विपक्ष के तमाम नेताओं ने सवाल उठाए थे.

पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने एक बयान में कहा, ‘15-16 जून, 2020 को गलवान घाटी में भारत के 20 बहादुर जवानों ने वीरता के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. इस सर्वोच्च बलिदान के लिए हम इन साहसी सैनिकों एवं उनके परिवारों के प्रति कृतज्ञ हैं, लेकिन उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए.’

सिंह ने कहा, ‘आज हम इतिहास के एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं. हमारी सरकार के निर्णय एवं सरकार द्वारा उठाए गए कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आकलन कैसे करेंगी. जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके कंधों पर कर्तव्य का गहन दायित्व है.’

उनके मुताबिक हमारे लोकतंत्र में यह दायित्व देश के प्रधानमंत्री का है. प्रधानमंत्री को अपने शब्दों व घोषणाओं द्वारा देश की सुरक्षा एवं सामरिक तथा भूभागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान होना चाहिए.

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘चीन ने अप्रैल, 2020 से लेकर आज तक भारतीय सीमा में गलवान घाटी एवं पांगोंग सो झील इलाके में अनेकों बार घुसपैठ की है. हम न तो उनकी धमकियों एवं दबाव के सामने झुकेंगे और न ही अपनी भूभागीय अखंडता से कोई समझौता स्वीकार करेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री को अपने बयान से उनके षड्यंत्रकारी रुख को ताकत नहीं देनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार के सभी अंग इस खतरे का सामना करने तथा स्थिति को और ज्यादा गंभीर होने से रोकने के लिए परस्पर सहमति से काम करें.’

सिंह ने कहा, ‘यही समय है जब पूरे राष्ट्र को एकजुट होना है तथा संगठित होकर इस दुस्साहस का जवाब देना है. हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति तथा मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता. पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा प्रचारित झूठ के आडंबर से सच्चाई को नहीं दबाया जा सकता.’

उन्होंने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री एवं केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वे वक्त की चुनौतियों का सामना करें और कर्नल बी. संतोष बाबू एवं हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ एवं ‘भूभागीय अखंडता’ के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी.’

पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे कुछ भी कम किया जाना जनादेश से ऐतिहासिक विश्वासघात होगा.

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन के साथ छह सप्ताह से सीमा पर बने गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. इसी दौरान दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. चीन ने पूरी गलवान घाटी पर अपना दावा किया. हालांकि भारत ने चीन के इस दावे को खारिज किया है.

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