आईआईएमसी के 11 शिक्षकों में से आठ ने महानिदेशक के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा

शिक्षकों ने पत्र लिखकर आरोप लगाया कि केजी सुरेश की अध्यक्षता में आईआईएमसी प्रशासन काफी मनमाना, अपारदर्शी और कामचलाऊ हो गया है.

शिक्षकों ने पत्र लिखकर आरोप लगाया कि केजी सुरेश की अध्यक्षता में आईआईएमसी प्रशासन काफी मनमाना, अपारदर्शी और कामचलाऊ हो गया है.

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Source: Facebook/@iimc

भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), दिल्ली के 11 शिक्षकों में से आठ ने संस्थान के महानिदेशक डीजी केजी सुरेश पर उन्हें निशाना बनाने और बदनाम करने के आरोप लगाए हैं. इन शिक्षकों ने खुद को प्रशासनिक जिम्मेदारियों से मुक्त करने की मांग भी की है.

शिक्षकों ने सुरेश के साथ-साथ केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को भी इस बाबत पत्र लिखा है. मंत्रालय के सचिव आईआईएमसी के पदेन अध्यक्ष होते हैं.

सुरेश से संपर्क किए जाने पर उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर शिक्षक नेतागीरी एक्टिविज्म में लगे हैं और उनके नखरे को नौटंकी करार किया जा सकता है.

मंत्रालय के सचिव को सात जुलाई को लिखे पत्र में शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि मीडिया में दिए गए डीजी के बयान से उनका सार्वजनिक तौर पर अपमान हुआ है और उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई है.

पत्र के मुताबिक, ‘हमारा मानना है कि आईआईएमसी के शिक्षकों के बारे में धड़ल्ले से और गैर-जिम्मेदार तरीके से दिए गए अनर्गल बयान तथ्यात्मक तौर पर गलत, पेशेवर तौर पर अनैतिक, बदनाम करने वाले और काफी परेशान करने वाले हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उन बयानों से आईआईएमसी के शिक्षकों की प्रतिष्ठा काफी धूमिल हुई है और पूरे संस्थान की भी छवि खराब हुई है.’

सात जुलाई को ही इन शिक्षकों ने सुरेश को भी पत्र लिखा और ब्योरा दिया कि अहम शैक्षणिक मुद्दों पर चर्चा के लिए मिलने का समय बार-बार मांगे जाने के बाद भी उन्होंने अनसुना कर दिया जबकि अगस्त में नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने जा रहा है.

पत्र में सुरेश से कहा गया कि उनकी अध्यक्षता में आईआईएमसी प्रशासन काफी मनमाना, अपारदर्शी और कामचलाऊ हो गया है. उन्होंने कहा कि शैक्षणिक स्तर सुधारने की बात तो दूर, मौजूदा स्तर बनाए रखने के लिए भी संस्थान प्रशासन कतई प्रतिबद्ध नहीं दिख रहा.

सुरेश ने कहा कि शिक्षक तो अपनी हाजिरी बनाने के भी खिलाफ हैं और वह उनसे सिर्फ जवाबदेह बनने के लिए कह रहे हैं.

डीजी ने कहा, ‘हम एक पेशेवर प्रशिक्षण संस्थान हैं, कोई उदार कला विश्वविद्यालय नहीं. कभी-कभी ऐसे दिन होते हैं जब उनमें से कोई शिक्षक दिखाई नहीं देता. उनमें से कई लोग नेतागीरी कर रहे हैं. इसलिए पिछले कुछ साल में संस्थान का क्षरण हुआ है , क्योंकि कोई शैक्षणिक अनुशासन या जवाबदेही है ही नहीं.’

उन्होंने कहा कि सरकार का रुख साफ है कि संस्थान में 30 फीसदी आंतरिक संसाधन का इंतजाम किया जाना चाहिए और जब तक शिक्षक एवं कर्मचारी काम नहीं करेंगे, तो काम कैसे चलेगा.

सुरेश ने कहा, ‘हमारे गैर-शिक्षण कर्मी बायोमेट्रिक प्रणाली का पालन कर रहे हैं. उन्होंने मुझसे लिखित में कहा है कि लापरवाह शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.’

हाल में एसोसिएट प्रोफेसर साश्वती गोस्वामी को रेडियो एवं टेलीविजन पत्रकारिता पाठ्यक्रम की निदेशक पद से हटा दिया गया था, जबकि अंग्रेजी पत्रकारिता पाठ्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिवाजी सरकार का तबादला कर उन्हें आईआईएमसी के ढेंकनाल, ओड़िशा परिसर में भेज दिया गया है. सरकार की सेवानिवृति में महज 10 महीने का वक्त बाकी है.

शिक्षकों ने लिखा, यदि पाठ्यक्रम निदेशक या अध्यक्ष के पदों में कोई बदलाव किया जाना है तो इन नियुक्तियों के पैमाने साफ किए जाएं.

गोस्वामी और सरकार के अलावा इस पत्र पर संचार शोध, सामुदायिक रेडियो संसाधन केंद्र, न्यू मीडिया, प्रकाशन और राष्ट्रीय मीडिया शिक्षक विकास कार्यक्रम एवं विकास पत्रकारिता विभागों के प्रमुखों ने भी दस्तखत किए हैं.

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