मौत की धमकी से जुड़ी आशीष खेतान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इंकार

शीर्ष अदालत ने आप नेता से अपनी याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटकाने के लिए कहा है.

शीर्ष अदालत ने आप नेता से अपनी याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटकाने के लिए कहा है.

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आप नेता आशीष खेतान. (फोटो साभार: फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के नेता आशीष खेतान की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने दक्षिणपंथी संगठनों से मौत की धमकियां मिलने का आरोप लगाया था.

न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने खेतान से अपनी याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटकाने के लिए कहा है.

खेतान ने इस याचिका में यह भी अनुरोध किया था कि वह ऐसी शिकायतों से निपटने हेतु जांच एजेंसियों के लिए दिशानिर्देश तैयार करे.

आप नेता ने 24 मई को शीर्ष अदालत से संपर्क किया था और इन कथित खतरों से सुरक्षा मांगी थी.

खेतान ने नौ मई को कहा था कि उन्हें उनके दफ्तर में हिंदी में लिखा एक पत्र मिला था, जिसमें लिखा था कि उनकी मौत निकट है.

खेतान का कहना था कि उन्होंने दिल्ली पुलिस आयुक्त के पास भी इस धमकी की शिकायत की थी लेकिन उन्होंने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

उन्होंने कहा कि इस पत्र की भाषा और सामग्री उसी लेख के समान है, जो सनातन प्रभात ने डॉ नरेंद दाभोलकर के खिलाफ प्रकाशित किया था. यह लेख दाभोलकर की हत्या के पहले और बाद में प्रकाशित किया गया था.

यह धमकी इस बात की याद दिलाती है कि उन राष्ट्र विरोधी एवं फासीवादी ताकतों का हौसला बढ़ रहा है, जो असहमति के हर स्वर को चुप्पी में बदल देना चाहते हैं.

दिल्ली के संवाद एवं विकास आयोग के उपाध्यक्ष खेतान ने दक्षिण पंथी संगठन, सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने और मौत की कथित धमकियों की सीबीआई जांच शीर्ष न्यायालय की निगरानी में करवाने की मांग की थी.

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता कहना चाहता है कि आज देश में दक्षिण पंथी संगठन सक्रिय हैं. इनमें से कुछ प्रमुख समूह हैं सनातन संस्था, अभिनव भारत, हिंदू जनजागृति समिति, हिंदी रक्षक समिति, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, श्री राम सेना और विश्व हिंदू परिषद.

याचिका में कहा गया है कि ऐसे कट्टर दक्षिणपंथी संगठन पिछले कुछ साल में उन लोगों पर कई घातक हमले करते रहे हैं जो उनकी विचारधारा से सहमत नहीं हैं, तर्कशील हैं, धर्मनिरपेक्ष हैं, मुक्त रूप से सोचते हैं, अंधविास के खिलाफ हैं और आलोचनात्मक विचारक हैं.