मिड-डे मील: बंगाल में बच्चों को सिर्फ़ चावल और आलू मिला, वो भी प्रावधान से काफी कम

द वायर द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल में अप्रैल महीने में 2.92 लाख और मई महीने में 5.35 लाख बच्चों को मिड-डे मील योजना का कोई लाभ नहीं मिला है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

द वायर द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान पश्चिम बंगाल में अप्रैल महीने में 2.92 लाख और मई महीने में 5.35 लाख बच्चों को मिड-डे मील योजना का कोई लाभ नहीं मिला है.

A boy eats at an orphanage run by a non-governmental organisation on World Hunger Day, in the southern Indian city of Chennai May 28, 2014. REUTERS/Babu
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि लॉकडाउन के समय स्कूल बंद होने के दौरान भी मिड-डे मील योजना चालू रखी जाए. इसके अलावा गर्मी की छुट्टियों के दौरान भी योजना के तहत बच्चों को लाभ दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि ऐसे समय में इस तरह की योजनाओं को बंद नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यह बच्चों के पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत है. हालांकि कई राज्य या तो इन निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं या फिर बच्चों को आधा-अधूरा लाभ दे रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने भी कुछ ऐसा ही किया है.

द वायर  द्वारा सूचना का अधिकार कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि मिड-डे मील योजना के तहत जितना लाभ दिया जाना चाहिए था, राज्य सरकार ने बच्चों को इसके मुकाबले आधा या इससे भी कम लाभ दिया है.

राज्य में मिड-डे मील योजना के प्रोजेक्ट डायरेक्टर टीके अधिकारी द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के संयुक्त सचिव आरसी मीणा को लिखे गए पत्र के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस सरकार ने मिड-डे मील योजना के तहत अप्रैल महीने में प्रति बच्चे को सिर्फ दो किलो चावल एवं दो किलो आलू दिया है.

इसके अलावा मई महीने में प्रति छात्र तीन किलो चावल और तीन किलो आलू दिया गया है. मिड-डे मील योजना के मानक के अनुसार इन दोनों महीनों में दिया गया लाभ अपर्याप्त है.

टीके अधिकारी द्वारा 18 मई 2020 की तारीख में केंद्र को लिए गए पत्र से ये भी पता चलता है कि अप्रैल महीने में 2.92 लाख और मई महीने में 5.35 लाख बच्चों को मिड-डे मील योजना का कोई लाभ नहीं मिला है.

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 20 मार्च 2020 को सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा था कि कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के बावजूद सभी बच्चों को मिड-डे मील मुहैया कराई जाए.

मंत्रालय ने कहा था कि यदि पका हुआ भोजन नहीं दिया जा रहा है तो इसके बदले में खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) दिया जाए, जिसमें ‘खाद्यान्न’ और ‘खाना पकाने की राशि’ शामिल होती है.

भारत सरकार के मानक के अनुसार मिड-डे मील योजना के तहत प्राथमिक स्तर पर 100 ग्राम एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 150 ग्राम खाद्यान्न प्रति छात्र प्रतिदिन के हिसाब से उपलब्ध कराया जाना चाहिए. यानी कि 30 दिन के हिसाब से प्राथमिक स्तर के छात्र को तीन किलो और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्र को 4.5 किलो खाद्यान्न दिया जाना चाहिए.

इसके अलावा एक अप्रैल 2020 से लागू किए गए नए नियमों के मुताबिक सिर्फ खाना पकाने के लिए प्राथमिक स्तर पर 4.97 रुपये और उच्च स्तर पर 7.45 रुपये की धनराशि प्रति छात्र प्रतिदिन उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिसमें दाल, सब्जी, तेल, नमक ईंधन आदि का मूल्य शामिल हैं.

इसका मतलब ये है कि 30 दिन के हिसाब से ‘खाना पकाने के लिए’ प्राथमिक स्तर के प्रति छात्र को 149.10 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर के छात्र को 223.50 रुपये दिए जाने चाहिए.

यदि खाना पकाने की राशि नहीं दी जाती है तो प्राथमिक स्तर के प्रति छात्र को प्रतिदिन 20 ग्राम दाल, 50 ग्राम सब्जियां, पांच ग्राम तेल एवं वसा और जरूरत के मुताबिक नमक और मसाले दिए जाने चाहिए. वहीं उच्च प्राथमिक के छात्र को प्रतिदिन 30 ग्राम दाल, 75 ग्राम सब्जियां, 7.5 ग्राम तेल एवं वसा और जरूरत के अनुसार नमक एवं मसाले देना होता है.

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई महीने में मिड-डे मील के तहत मुहैया कराया गया खाद्यान्न किसी भी तरह इन मानकों के बराबर नहीं आता है.

West Bengal Mid-Day Meal by The Wire on Scribd

दस्तावेजों से पता चलता है कि राज्य सरकार ने अप्रैल महीने में 30 दिन और मई महीने में 25 दिन के लिए मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजना के बदले में खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया है. इसके तहत उन्होंने चावल और खाना पकाने की राशि के एवज में सिर्फ आलू दिया है, जबकि नियम के मुताबिक दाल, तेल, नमक, मसाले इत्यादि भी दिया जना चाहिए था.

ममता बनर्जी सरकार ने अप्रैल महीने के लिए सभी बच्चों को सिर्फ दो किलो चावल और दो किलो आलू दिया है, जबकि नियम के मुताबिक प्राथमिक स्तर के बच्चों को तीन किलो चावल (100 ग्राम प्रतिदिन×30) और उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों 4.5 किलो चावल (150 ग्राम प्रतिदिन×30) दिया जाना चाहिए था.

इसके अलावा खाना पकाने के एवज में सिर्फ आलू ही नहीं, बल्कि मिड-डे मील के तहत निर्धारित मानक के आधार पर दाल, तेल, नमक, मसाले इत्यादि भी दिया जाना चाहिए था.

इसके अलावा मई महीने में राज्स सरकार ने हर छात्र को तीन किलो चावल और तीन किलो आलू दिया है. प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिए इतना खाद्यान्न तो पर्याप्त है, लेकिन नियम के मुताबिक इस महीने में कुल 25 दिन दिए गए खाद्य सुरक्षा भत्ता के अनुसार उच्च प्राथमिक के छात्र को 3.75 किलो चावल (प्रतिदिन 150 ग्राम*25) दिया जाना चाहिए था.

इसी तरह दोनों श्रेणियों के छात्रों को खाना पकाने के एवज में इस महीने भी सिर्फ आलू दिया गया है जो मिड-डे मील के तहत निर्धारित खाद्य प्रावधान का उल्लंघन है.

राज्य के प्राथमिक स्तर के 67,739 विद्यालयों में कुल 7,317,679 छात्र हैं. वहीं उच्च प्राथमिक स्तर के 16,206 स्कूलों में कुल 4,244,786 छात्र हैं. यानी कि राज्य में कुल 11,562,465 छात्र हैं, जिन पर मिड-डे मील योजना लागू है.

इसके अलावा प्राप्त दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के 24 जिलों में अप्रैल महीने में कुल मिलाकर 2.92 लाख और मई महीने में 5.35 लाख बच्चों को मिड-डे मील के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता नहीं मिला है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विधानसभा क्षेत्र भबानीपुर (जिला कोलकाता) के 1,980 स्कूलों में अप्रैल महीने में 34,917 बच्चों और मई में 40,933 बच्चों को मिड-डे मील का लाभ नहीं मिला है.

वहीं, अप्रैल में जलपाईगुड़ी जिले के 2262 स्कूलों के 23,131 बच्चों, दिनाजपुर के 5,262 स्कूलों के 16,255 बच्चों, बांकुड़ा के 4,965 स्कूलों के 13,310 बच्चों, बीरभूम के 3,833 विद्यालयों के 13,874 बच्चों, हुगली जिले के 3,043 स्कूलों के 13,707 बच्चों, मुर्शिदाबाद के 5,879 स्कूलों के 11,825 बच्चों को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं मिला.

इसी तरह मई महीने में मुर्शिदाबाद जिले के 5,879 स्कूलों के 47,120 बच्चों, पूर्वी मेदिनीपुर के 5,919 स्कूलों के 28,150 बच्चों, पश्चिमी मेदिनीपुर के 33,758 बच्चों, उत्तरी 24 परगना के 5,887 स्कूलों के 32,068 बच्चों, पुरुलिया जिला के 4,398 स्कूलों के 30,217 बच्चों को लाभ नहीं मिला है.

इसी तरह झारग्राम के 2,344 स्कूलों के 66,088 बच्चों, जलपाईगुड़ी के 2,262 स्कूलों के 26,839 बच्चों, हुगली के 4,182 स्कूलों के 38,380 बच्चों, कूच बिहार जिले के 3,236 स्कूलों के 34,244 बच्चों इत्यादि को मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता नहीं दिया गया है.

द वायर  ने पश्चिम बंगाल के शिक्षा विभाग और मिड-डे मील के परियोजना निदेशक को ई-मेल भेजकर पूछा है कि लॉकडाउन के दौरान मिड-डे मील के तहत बच्चों को मुहैया कराए गए खाद्य पदार्थों का प्रावधान किस आधार पर किया गया है.

इसके अलावा अप्रैल और मई महीने में लाखों बच्चों को इस योजना का लाभ क्यों नहीं दिया गया है. इसे लेकर यदि वहां से कोई जवाब आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.

सार्वजनिक दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में मिड-डे मील योजना को उचित तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है.

मिड-डे मील योजना के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) की मीटिंग के दौरान 16 जून को एमएचआरडी द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 12 जिलों में योजना के तहत आवंटित खाद्यान्न की तुलना में काफी कम उपयोग हुआ है.

साल 2019-20 में हुए आवंटन की तुलना में सिलीगुड़ी में 33 फीसदी, कोलकाता में 45 फीसदी, झारग्राम में 56 फीसदी, कूच बिहार में 66 फीसदी, दिनाजपुर में 67-70 फीसदी, हावड़ा में 71 फीसदी, जलपाईगुड़ी में 74 फीसदी, नाडिया में 75 फीसदी और पुरुलिया में 75 फीसदी ही खाद्यान्न का उपयोग हुआ है.

इसके अलावा राज्य ने योजना का सोशल ऑडिट भी नहीं कराया है. पश्चिम बंगाल सरकार ने वादा किया है कि वे 2020-21 के दौरान राज्य में मिड-डे मील योजना की सोशल ऑडिटिंग कराएंगे.

हालांकि एमएचआरडी ने राज्य की अच्छी प्रैक्टिस को भी रेखांकित किया है. ममता सरकार अपने संशाधनों से हफ्ते में एक बार अंडा भी देती है. इसके अलावा सभी स्कूलों में 100 फीसदी एलपीजी सिलेंडर पर खाना बनता है.

द वायर  ने अपनी पिछली तीन रिपोर्टों में बताया था कि किस तरह पश्चिम बंगाल के अलावा दिल्ली, उत्तराखंड और त्रिपुरा में भी लॉकडाउन के दौरान मिड-डे मील योजना का सभी बच्चों को लाभ नहीं मिल पाया है.

उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है, जबकि त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने मिड-डे मील के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि ट्रांसफर करने का आदेश दिया था, जो कि सिर्फ खाना पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है.

वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बच्चों को अप्रैल से लेकर जून तक मिड-डे मील योजना के तहत खाद्यान्न या खाद्य सुरक्षा भत्ता (एफएसए) नहीं दिया गया है.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25