लॉकडाउन: कई वृद्धाश्रमों को चंदा मिलना बंद, बुज़ुर्गों के सिर से छत छिनने का ख़तरा

असहाय बुज़ुर्गों के लिए काम करने वाले ग़ैर लाभकारी संगठन हेल्पएज इंडिया के अनुसार, देश में क़रीब 1500 वृद्धाश्रम हैं, जिनमें क़रीब 70,000 वृद्ध रहते हैं. छोटे और मझोले वृद्धाश्रम परोपकारी नागरिकों और कारोबारी समुदायों से मिलने वाले चंदे पर निर्भर रहते हैं. लॉकडाउन चलते उन्हें चंदा मिलना बंद हो गया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

असहाय बुज़ुर्गों के लिए काम करने वाले ग़ैर लाभकारी संगठन हेल्पएज इंडिया के अनुसार, देश में क़रीब 1500 वृद्धाश्रम हैं, जिनमें क़रीब 70,000 वृद्ध रहते हैं. छोटे और मझोले वृद्धाश्रम परोपकारी नागरिकों और कारोबारी समुदायों से मिलने वाले चंदे पर निर्भर रहते हैं. लॉकडाउन चलते उन्हें चंदा मिलना बंद हो गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: जिंदगी के अपने अंतिम वर्ष वृद्धाश्रमों में गुजार रहे हजारों वृद्धों के सामने दान आधारित इन आश्रयस्थलों को पिछले कुछ महीनों से चंदा न मिलने के कारण अपने सिर से छत का साया छिन जाने का खतरा पैदा हो गया है.

लॉकडाउन और उसके बाद के काल में कारोबार ठप हो जाने और आय सिमट जाने के बाद कई वृद्धाश्रम राशन और दवाइयों जैसी अपनी जरूरी चीजों के लिए अपना बजट कांटने-छांटने के लिए बाध्य हो गए हैं. कुछ वृद्धाश्रमों को डर सता रहा है कि यदि ऐसे ही वित्तीय संकट बना रहा तो कहीं उन्हें अपनी यह सुविधा बंद भी करनी पड़ सकती है.

गैर सरकार संगठन हेल्पएज इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू चेरियन ने कहा, ‘वृद्धाश्रम, खासकर छोटे और मझोले वृद्धाश्रम स्थानीय लोकोपकारी नागरिकों और कारोबारी समुदायों से मिलने वाले चंदे पर निर्भर रहते हैं. लॉकडाउन और आर्थिक मंदी के चलते यह चंदा पूरी तरह मिलना बंद हो गया है.’

उन्होंने कहा कि शायद कई संस्थानों को ‘अपनी संपूर्ण आय में भारी गिरावट’ के चलते बंद करना पड़ सकता है.

असहाय बुजुर्गों के लिए काम कर रहे गैर लाभकारी संगठन हेल्पएज इंडिया के अनुसार, देश में करीब 1500 वृद्धाश्रम हैं जिनमें करीब 70,000 वृद्ध रहते हैं.

धनवानों के कुछ ऐसे आश्रमों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर वृद्धाश्रम अपने कामकाज के लिए अलग-अलग सीमा तक चंदों पर निर्भर करते हैं. इन आश्रमों में रहने वालों के लिए बहुत कुछ दांव पर लग गया है. कुछ को साफ-सफाई, धोने, खाना पकाने जैसे कई काम खुद करने पड़ रहे हैं.

शशि मल्होत्रा (73) एक ऐसे ही बुजुर्ग हैं जिन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि यदि यह आश्रम बंद हो गया तो वह कहां जाएंगे.

आयकर विभाग के पूर्व निरीक्षक मल्होत्रा की पत्नी 2008 में चल बसीं और उन्होंने 12 साल से अपने बेटों को नहीं देखा. वह गोविंदपुरी में दिल्ली मेट्रो रेल निगम द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में रहते हैं.

इस आश्रम में मल्होत्रा और 55 साल से अधिक उम्र के 20 अन्य बुजुर्ग मुफ्त रहते हैं. वृद्धाश्रम के बजट में 30 फीसद की कटौती की गई है.

दक्षिण दिल्ली के छत्तरपुर में वृद्धाश्रम ‘शांति निकेतन’ में 60 साल से अधिक उम्र के 38 बेघर और गरीब रहते हैं. चंदे में 50 फीसदी की गिरावट आने के बाद इस वृद्धाश्रम ने अपने सभी चार कर्मचारियों को हटा दिया है.

वृद्धाश्रम के सुपरवाइजर रोहित कुमार ने कहा, ‘फंडिंग कम होने के बाद यहां रहने वालों के लिए राशन, चिकित्सा और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. कभी-कभी हम हेल्पएज इंडिया जैसे एनजीओ से मदद लेते हैं, लेकिन हमें ज्यादातर अपने पास मौजूद संसाधनों का प्रबंधन करना होता है.’

उन्होंने कहा, ‘चंदे से प्राप्त धन का उपयोग घर के किराये, बिजली बिलों के साथ-साथ कर्मचारियों के वेतन के लिए भी किया जाता है. हमें अपने कर्मचारियों को काम बंद करने के लिए कहना पड़ा क्योंकि हम अब उनका वेतन नहीं दे सकते.’

देश में अधिकांश वृद्धाश्रम मुफ्त आवास और भोजन प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो भुगतान के आधार पर सुविधाएं देती हैं.

एगवेल फाउंडेशन के संस्थापक हिमांशु रथ ने बताया कि भुगतान सुविधाओं के लिए प्रति माह शुल्क 4,000-6,000 रुपये के बीच होता है.

देश में कुल बुजुर्गों की आबादी लगभग 12 करोड़ के करीब है, जिसमें से 5.55 करोड़ बुजुर्ग वंचित हैं.

हेल्पएज इंडिया के चेरियन ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में आय के खतरे और व्यवसायों में गिरावट के कारण कॉरपोरेट और परोपकारी व्यक्ति दान देने में असमर्थ हैं.

चेरियन ने कहा, ‘एक अनुमान मुताबिक धन की कमी वृद्धाश्रमों की परेशानियों को 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा देगा. जो जीवन पहले से कठिन था वह अब और ज्यादा कठिन हो गया है.’

उन्होंने कहा, ‘सोशल डिस्टेंसिंग के बदले हुए माहौल में ज्यादातर बुजुर्गों को अपनी जरूरतों का ख्याल खुद रखना पड़ता है, क्योंकि सामान्य कर्मचारी लॉकडाउन नियमों और कोरोनो वायरस के खतरे के कारण उनके पास नहीं जा पाते हैं. कई लोग जिन्हें नियमित चिकित्सा जांच के लिए जाना पड़ता है, वे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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