विवाहित बेटी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की हक़दारः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

अदालत ने कहा कि संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार है. यदि विवाहित लड़का अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हक़दार है, तो विवाहित बेटी को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता.

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

अदालत ने कहा कि संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार है. यदि विवाहित लड़का अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हक़दार है, तो विवाहित बेटी को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता.

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का कहना है कि किसी मृत सरकारी कर्मचारी की विवाहिता बेटी भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाने की हकदार है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने लैंगिक समानता का उल्लंघन मानते हुए पंजाब में अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति 2002 योजना से विवाहित बेटी को बाहर रखे जाने वाले क्लॉज को हटा दिया.

किसी मृत सरकारी कर्मचारी के आश्रित परिवार के सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का हकदार माना जाता है.

योजना के मुताबिक या सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप आश्रित परिवार के सदस्य से मतलब पत्नी, गोद लिए हुए बेटे सहित बेटा, गोद ली हुई बेटी सहित कुंआरी बेटी और यहां तक की अविवाहित भाई या बहन भी है, जो उसकी मृत्यु से पहले पूरी तरह से सरकारी कर्मचारी पर आश्रित हों.

अदालत का कहना है कि इस योजना का उद्देश्य परिवार की मदद करना था, जो अचानक से परिवार के कमाने वाले एकमात्र शख्स के जाने के बाद से खत्म हो जाती है.

जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि इस योजना के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाने के लिए बेटी का अविवाहित होना जरूरी बताया गया है जबकि इसमें बेटे के मैरिटल स्टेटस का कोई जिक्र नहीं है.

उन्होंने कहा कि मृतक के आश्रित परिवार के सदस्यों की परिभाषा में विवाहित बेटी को शामिल नहीं करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है.

यह बताते हुए कि राज्य के पास इस योजना के तहत वैध उद्देश्यों के लिए लोगों को वर्गीकृत करने की शक्ति है.

इस पर अदालत ने कहा, एक महिला को सिर्फ उसके लिंग के आधार पर, जिसमें उसकी वैवाहिक स्थिति भी शामिल है, उसके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा कि लैंगिक समानता का उल्लंघन संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत देश के सभी नागरिकों को दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है.

उन्होंने कहा कि जब तक सभी के लिए समान अवसर नहीं हो, समानता हासिल नहीं की जा सकती.

हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार है और यदि विवाहित लड़का अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हकदार है तो विवाहित लड़की को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता.

इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि यह आम धारणा बनी हुई है कि विवाह के बाद लड़की की जिम्मेदारी पति की होती है और वह पिता पर आश्रित नहीं होती.

यदि विवाह के बाद बेटा पिता पर आश्रित की श्रेणी में आता है तो बेटी भी समानता के अधिकार के तहत उसी श्रेणी में आती है.

दरअसल यह मामला पंजाब पुलिस में हेड कॉन्सटेबल कश्मीर सिंह की मौत से जुड़ा हुआ है. कश्मीर सिंह की दो अक्टूबर 2008 को ड्यूटी के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी.

उनकी पत्नी जसबीर कौर ने अपनी इकलौती बेटी अमरजीत कौर को पिता की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी दिए जाने की मांग पंजाब पुलिस से की. 15 अप्रैल 2015 को डीजीपी ने यह मांग खारिज करते हुए कहा कि मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने की हकदार नहीं है.

डीजीपी के इसी फैसले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती देकर खारिज करने की मांग की गई थी.

हाईकोर्ट ने इस संबंध में पंजाब के डीजीपी के 15 अप्रैल 2015 के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने के लिए अयोग्य माना गया था.

अदालत ने पंजाब सरकार के फैसले को खारिज करते हुए डीजीपी को एक महीने में नियुक्ति पत्र मृतक कर्मचारी की विवाहित बेटी को दिए जाने के निर्देश दिए हैं.