दिल्ली दंगा: ‘गिरफ़्तारियों से हिंदुओं में आक्रोश’ वाले पत्र पर कोर्ट ने अधिकारी से जवाब मांगा

दिल्ली दंगा मामलों में की जा रही जांच और गिरफ़्तारियों के बीच विशेष पुलिस आयुक्त ने एक आदेश में कहा था कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कुछ हिंदू युवकों की हिरासत में लिए जाने से समुदाय में आक्रोश है. हाईकोर्ट ने उनके स्पष्टीकरण देने पर उनसे ऐसे पांच और आदेश पेश करने को कहा है, जहां पहले ऐसे निर्देश दिए गए हों.

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फरवरी 2020 में मौजपुर में हुई हिंसा के बाद गश्त करते सुरक्षाकर्मी. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली दंगा मामलों में की जा रही जांच और गिरफ़्तारियों के बीच विशेष पुलिस आयुक्त ने एक आदेश में कहा था कि दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कुछ हिंदू युवकों की हिरासत में लिए जाने से समुदाय में आक्रोश है. हाईकोर्ट ने उनके स्पष्टीकरण देने पर उनसे ऐसे पांच और आदेश पेश करने को कहा है, जहां पहले ऐसे निर्देश दिए गए हों.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को विशेष पुलिस आयुक्त प्रवीर रंजन से पूछा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की जांच कर रही टीमों के प्रमुखों को वह पत्र जारी करने की क्या आवश्यकता थी जिसमें लिखा था कि दंगाग्रस्त इलाकों से ‘कुछ हिंदू युवाओं’ की गिरफ्तारी के कारण ‘हिंदू समुदाय में आक्रोश’ है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने उनसे यह भी कहा कि वह हाईकोर्ट के सामने ऐसे ही पांच पत्र पेश करें, जिसे उन्होंने या उनके पूर्ववर्ती अधिकारियों ने जारी किया हो.

जस्टिस कैत ने कहा, ‘अधिकारियों को निर्देशित करने के लिए इस प्रकार के पत्र का सीआरपीसी के तहत कोई उदाहरण नहीं है. हालांकि, यह विवाद का कारण नहीं है कि वरिष्ठ अधिकारी अपने अधिकारियों को समय-समय पर और किसी खास समय पर मौजूदा परिस्थिति के बारे में निर्देशित करने की जिम्मेदारी से बंधे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इसके अनुसार मैं उत्तरदाता संख्या 4 (रंजन) को दो दिनों के अंदर सील कवर में ऐसे पांच पत्र पेश करने के लिए कहता हूं जिसे उन्होंने या उनके पूर्ववर्ती अधिकारियों ने शिकायत या जानकारी मिलने पर जारी किया हो.’

बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अपने आठ जुलाई के एक आदेश में रंजन ने कहा था कि उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में कुछ हिंदू युवकों की गिरफ्तारी से हिंदू समुदाय के लोगों में आक्रोश है और लोगों की गिरफ्तारी के समय उचित ध्यान और एहतियात बरतने की जरूरत है.

यह आदेश जांच टीमों की अगुवाई कर रहे वरिष्ठ अधिकारियों को जारी किया गया था और उनसे कहा गया था कि जांच अधिकारियों को जरूरत के हिसाब से निर्देशित करें.

इस आदेश को इस साल फरवरी में हुए दिल्ली दंगों में मारे गए दो लोगों के परिवारों ने अदालत में चुनौती दी थी.

एक याचिकाकर्ता साहिल परवेज के पिता की उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जबकि दूसरे याचिकाकर्ता मोहम्मद सईद सुलमानी की मां की उनके ही घर में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.

हाईकोर्ट ने कहा कि उनकी याचिकाओं पर नोटिस जारी करने का फैसला रंजन द्वारा दस्तावेज जमा करने के बाद किया जाएगा. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 अगस्त की तारीख तय की है.

हाईकोर्ट के 27 जुलाई के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने रंजन के आठ जुलाई के आदेश को पेश किया था. दोनों याचिकाकर्ताओं ने अपने वकील महमूद प्राचा के माध्यम से आदेश को रद्द करने की मांग की थी.

सुनवाई के दौरान रंजन ने कहा, ‘मैं सभी आदेश लेकर आऊंगा. प्राचा जिस खास मामले को उठा रहे हैं मैं उस संबंध में निर्देश दिखाऊंगा.’

हाईकोर्ट द्वारा आदेश जारी किए जाने की परिस्थितियों के बारे में पूछे जाने पर रंजन ने कहा, ‘मैंने शुरुआत में विशेष रूप से उल्लेख किया है कि यह एक खुफिया इनपुट है, जो हमें कुछ एजेंसी के माध्यम से प्राप्त हुआ है. ये सलाह सभी संबंधितों को जारी की गई है. केवल मेरे द्वारा नहीं, विशेष सीपी इंटेलिजेंस द्वारा भी इसे जारी किया गया है. अखबार का शीर्षक है कि यह एक विशेष समुदाय के हित में जारी किया गया था. वह उद्देश्य नहीं था.’

रंजन कोर्ट की इस बात का जवाब दे रहे थे कि ‘उन्होंने किस मौके पर ये आदेश था.’ रंजन ने अदालत से यह भी कहा कि यह पत्र आठ तारीख का है, जब तक वे अधिकतर मामलों पर काम कर चुके थे.

इस पर अदालत ने कहा, ‘अगर आपने किन्हीं और मामलों में भी ऐसे पत्र लिखे हैं, तभी आपकी बात सही मानी जा सकती है.’

दिल्ली पुलिस की ओर से पेश होते हुए केंद्र सरकार के स्थायी वकील अमित महाजन ने याचिका को शरारतपूर्ण बताते हुए खारिज करने की मांग की.

इस पर जस्टिस कैत ने कहा, ‘हो सकता है शरारतपूर्ण हो. यह पत्र भी शरारतपूर्ण है. ऐसा पत्र जारी करने की जरूरत क्या थी? इस तरह का पत्र क्यों जारी किया गया? वह एक आईपीएस अधिकारी हैं क्या उन्हें नहीं पता है कि क्या जारी किया जाना चाहिए और क्या नहीं? दफ्तर में बैठकर एक पत्र जारी करके उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई महान काम कर दिया है.’

इस पर महाजन ने कहा, ‘ये पत्र केवल एक समुदाय के लिए नहीं था. याचिकाकर्ता के वकील और इंडियन एक्सप्रेस द्वारा इसे गलत तरह से समझा गया है. इसी के चलते स्पष्टीकरण जारी किया गया था.’

इस पर जस्टिस कैत ने कहा, ‘वे एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, ऐसे आदेश जारी करने की जरुरत ही क्या थी और किस प्रावधान के तहत वे ये निर्देश दे रहे थे?’

जस्टिस कैत ने आगे कहा, ‘मौके पर मौजूद व्यक्ति देखेगा कि गिरफ्तार करना है या नहीं. हर पुलिस अधिकारी एक अधिकारी है. ऐसा नहीं है कि जब स्पेशल सीपी उन्हें सिखाएंगे तब ही वे अपनी ड्यूटी करेंगे। उन्हें पता है कि क्या करना है और क्या नहीं.’

ज्ञात हो कि इंडियन एक्सप्रेस द्वारा इस बारे में खबर प्रकाशित करने के बाद दिल्ली पुलिस की ओर से कहा गया था, ‘यह पत्र जांच अधिकारियों को बस यह बताने के लिए कि इसे दोनों समुदायों द्वारा कैसे देखा जा रहा है और उन्हें इन मामलों की जांच के लिए संवेदनशील होने और गाइड करने के लिए लिखा गया था.’

हालांकि उनके द्वारा कही जा रही इस बात के बारे में विशेष आयुक्त के पत्र में कहीं लिखा नहीं गया था.

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