गृह मंत्रालय ने विवादित नागरिकता क़ानून के नियम बनाने के लिए तीन और महीने का समय मांगा

संसद से नागरिकता संशोधन क़ानून पारित होने के बाद देश में बड़े पैमाने पर इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे. इसका विरोध करने वालों का कहना है कि यह धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण है और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है.

Demonstrators shout slogans during a protest against a new citizenship law, in Ahmedabad, India, December 19, 2019. REUTERS/Amit Dave

संसद से नागरिकता संशोधन क़ानून पारित होने के बाद देश में बड़े पैमाने पर इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे. इसका विरोध करने वालों का कहना है कि यह धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण है और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है.

Demonstrators shout slogans during a protest against a new citizenship law, in Ahmedabad, India, December 19, 2019. REUTERS/Amit Dave
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विवादित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) संबंधी नियम बनाने के लिए तीन महीने का समय और मांगा है.

अधिकारियों ने बीते रविवार को बताया कि इस संबंध में आवेदन अधीनस्थ विधान संबंधी स्थायी समिति से संबंधित विभाग के समक्ष दिया गया है.

नियम के तहत किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के छह महीने के भीतर उससे संबंधित नियम बनाए जाने चाहिए, अन्यथा समयावधि विस्तार की अनुमति ली जानी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि सीएए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावाधान है. इस विधेयक को करीब आठ महीने पहले संसद ने मंजूरी दी थी और इसके खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हुए थे.

विधयेक पर राष्ट्रपति ने 12 दिसंबर 2019 को दस्तखत किए थे.

इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘गृह मंत्रालय ने सीएए पर नियम बनाने के लिए तीन महीने का समय और मांगा है. इस संबंध में आवेदन अधीनस्थ विधान संबंधी स्थायी समिति विभाग के समक्ष दिया गया है.’

उन्होंने बताया कि गृह मंत्रालय ने यह कदम तब उठाया जब समिति ने सीएए को लेकर नियमों की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी. समिति द्वारा इस अनुरोध को स्वीकार कर लिए जाने की उम्मीद है.

अधिकारी ने बताया कि सीएए का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध, पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देना है.

इन छह धर्मों के जो लोग धार्मिक उत्पीड़न की वजह से यदि 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए तो उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी.

संसद से सीएए के परित होने के बाद देश में बड़े पैमाने पर इसके खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिले थे.

सीएए का विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है. आलोचकों का यह भी कहना है कि सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून की आलोचना हुई है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त भी शामिल हैं जिन्होंने कहा था कि यह कानून मूल रूप से भेदभावपूर्ण है.

संसदीय कार्य नियमावली के मुताबिक कानून के लागू होने के छह महीने के भीतर स्थायी नियम और उप-कानून बन जाने चाहिए.

नियमावली यह भी कहती है कि अगर मंत्रालय/विभाग निर्धारित छह महीने में नियम बनाने में असफल होते हैं तो उन्हें समय विस्तार के लिए अधीनस्थ विधान संबंधी समिति से अनुमति लेनी होगी और यह समय विस्तार एक बार में तीन महीने से अधिक नहीं होगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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