एनजीटी द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति ने यह भी कहा है कि राज्यों को यमुना के कम पानी और संरक्षण पर ध्यान देना होगा. इसके लिए हो सकता है कि राज्यों को कम पानी में काम चलाना पड़े.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति ने यमुना नदी में सालभर पर्यावरण प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए 1994 में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बीच जल बंटवारे को लेकर हुई संधि पर दोबारा काम करने की सिफारिश की है.
एनजीटी के सेवानिवृत विशेषज्ञ सदस्य बीएस साजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की सदस्यता वाली इस दो सदस्यीय समिति ने ‘नदी के दिल्ली वाले हिस्से में पर्यावरण प्रवाह’ पर मसौदा रिपोर्ट के आधार पर यह सिफारिश की.
समिति ने कहा, ‘हथिनी कुंड बैराज में अनुशंसित ई-प्रवाह की अनुमति देने के लिए जल शक्ति मंत्रालय, अपर यमुना रिवर बोर्ड और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली 1994 के जल समझौते पर दोबारा काम करें.’
यह समझौता दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य पानी की 70% जरूरतों के लिए यमुना पर निर्भर है.
इसके अलावा समिति ने यह भी कहा है कि राज्यों को यमुना के कम पानी और संरक्षण पर ध्यान देना होगा. इसके लिए राज्यों को कम पानी में काम चलाना पड़ सकता है.
निगरानी समिति के एक सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘नदी को पानी की आवश्यकता है. इसके लिए राज्यों को कम पानी, संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना और कम पानी की जरूरत वाली फसलों को लगाना पड़ सकता है.’
राजस्थान एवं पांच राज्यों द्वारा हस्ताक्षरित 1994 के समझौते के अनुसार हरियाणा के लिए 5.7 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम), उत्तर प्रदेश (तब उत्तराखंड तब यूपी का हिस्सा था) के लिए 4.03 बीसीएम, राजस्थान के लिए 1.11 बीसीएम, हिमाचल के लिए 0.37 बीसीएम और दिल्ली के लिए 0.72 बीसीएम पानी का वार्षिक आवंटन किया गया था.
निगरानी समिति की सिफारिश पर 2018 में राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ मिशन (एनएमसीजी) के निर्देशों पर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रुड़की (एनआईएस) द्वारा किए गए एक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार इसमें बदलाव का सुझाव दिया गया है.
पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखने को लेकर दिल्ली और हरियाणा के बीच विवाद रहा है. दिल्ली ने समय-समय पर आरोप लगाया है कि वे यमुना में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ते हैं जिसके कारण पानी में अमोनिया का स्तर बढ़ जाता है और इसके कारण पानी को साफ करना मुश्किल हो जाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)