प्रख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का अमेरिका में निधन

पंडित जसराज का सबसे बड़ा योगदान शास्त्रीय संगीत को जनता के लिए सरल और सहज बनाना रहा, जिससे उसकी लोकप्रियता बढ़ी. पिछले साल इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने सौरमंडल में एक छोटे ग्रह का नाम उनके नाम पर रखा था. यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार हैं.

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पंडित जसराज. (फोटो: पीटीआई)

पंडित जसराज का सबसे बड़ा योगदान शास्त्रीय संगीत को जनता के लिए सरल और सहज बनाना रहा, जिससे उसकी लोकप्रियता बढ़ी. पिछले साल इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन ने सौरमंडल में एक छोटे ग्रह का नाम उनके नाम पर रखा था. यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार हैं.

पंडित जसराज. (फोटो: पीटीआई)
पंडित जसराज. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का अमेरिका में दिल का दौरा पड़ने से सोमवार की सुबह निधन हो गया.

कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद से पंडित जसराज अमेरिका के न्यूजर्सी में ही थे. उन्होंने सोमवार सुबह आखिरी सांस ली. उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने यह जानकारी दी.

पंडित जसराज के परिवार ने एक बयान में कहा, ‘बहुत दुख के साथ हमें सूचित करना पड़ रहा है कि संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी का अमेरिका के न्यूजर्सी में अपने आवास पर आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.’

उन्होंने कहा, ‘हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान कृष्ण स्वर्ग के द्वार पर उनका स्वागत करें, जहां वह अपना पसंदीदा भजन ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ उन्हें समर्पित करें. हम उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.’

परिवार ने आगे कहा है, ‘आपकी प्रार्थनाओं के लिए धन्यवाद. बापूजी जय हो.’

इस साल जनवरी में अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने आखिरी प्रस्तुति नौ अप्रैल को हनुमान जयंती पर फेसबुक लाइव के जरिये वाराणसी के संकटमोचन हनुमान मंदिर के लिए दी थी.

शास्त्रीय संगीत की लोकप्रियता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया

‘हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले’ पंडित जसराज ने इस साल जनवरी में अपने 90वें जन्मदिन पर ये शेर पढ़ते हुए कहा था कि उम्र तो महज एक आंकड़ा है और अभी मुझे बहुत कुछ करना है.

पंडित जसराज का सबसे बड़ा योगदान शास्त्रीय संगीत को जनता के लिए सरल और सहज बनाना रहा, जिससे उसकी लोकप्रियता बढ़ी. उन्होंने ख्याल गायकी में ठुमरी का पुट डाला, जो सुनने वालों के कानों में मिसरी घोल जाता था. वह बंदिश भी अपने जसरंगी अंदाज में गाते थे.

शास्त्रीय संगीतकार होने के बावजूद उन्हें नए दौर के संगीत से गुरेज नहीं था. वह दुनिया भर का संगीत सुनते थे और सराहते थे. जगजीत सिंह की गजल ‘सरकती जाए रुख़ से नकाब’ उनकी पसंदीदा थी और एक बार दिन भर में वह 100 बार इसे सुन गए थे. भारत, कनाडा, अमेरिका समेत दुनिया भर में संगीत सिखाने वाले पंडित जसराज खुद अपने शिष्यों से सीखने को लालायित रहते थे.

28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में जन्में मेवाती घराने के अग्रणी गायक पंडित जसराज ने आठ दशक से अधिक के अपने सुनहरे सफर में यूं तो कई सम्मान और पुरस्कार हासिल किए लेकिन पिछले साल अगस्त में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (आईएयू) ने सौरमंडल में एक छोटे ग्रह का नाम उनके नाम पर रखा था. यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय कलाकार हैं.

उनसे पहले सिर्फ मोजार्ट बीथोवन और टेनर लूसियानो पावारोत्ति को यह सम्मान मिला था.

उन्होंने कहा था, ‘मुझे तो ईश्वर की असीम कृपा दिखती है. सूर्य की प्रदक्षिणा कर रहा है यह ग्रह. भारत और भारतीय संगीत के लिए ईश्वर का आशीर्वाद है.’

शास्त्रीय संगीत के सशक्त हस्ताक्षर होने के साथ पंडित जसराज ने अर्ध शास्त्रीय शैली जैसे हवेली संगीत को भी लोकप्रिय बनाया. उन्होंने मंदिरों में भजन गाए और उनके गाए कृष्ण भजन खासकर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ दुनिया भर में लोकप्रिय हुए.

उन्होंने नई तरह की जुगलबंदी ‘जसरंगी’ भी रची और अबीरी तोड़ी और पटदीपकी जैसे नए रागों का सृजन किया.

उम्र के नौ दशक पार करने के बाद जब उनसे पूछा गया कि क्या कोई ख्वाहिश अभी भी अधूरी है, तो उनका जवाब था, ‘गालिब ने कहा है, हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले. इतने बड़े शायर जब यह बात कह गए, तो हम तो बहुत पीछे हैं. किसी भी इंसान की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होती.’

उन्होंने कहा था, ‘मैने कभी सोचा या चाहा भी नहीं, वो चीजें भगवान से मिल गईं तो अब क्या चाहूं या क्या कहूं. पद्मश्री मिला तो मेरी आधी जान निकल गई थी. उसके बाद पद्मविभूषण तक मिला. बिना सोचे यहां तक आ गए तो आगे पता नहीं ईश्वर ने क्या लिखा है, उन्हीं पर छोड़ देते हैं.’

पंडित जसराज कहते थे कि जब वह गाते हैं तो ईश्वर को सामने खड़ा पाते हैं और फिर उन्हें किसी का भान नहीं रहता.

पंडित जसराज उस वाकये का जिक्र हमेशा करते थे, जब 1952 में तत्कालीन नेपाल नरेश त्रिभुवन विक्रम के सामने दी गई प्रस्तुति पर उन्हें पुरस्कार में मोहरें मिली थीं.

उन्हें करीब 5000 मोहरें दी गई थीं और वह यह जानकर लगभग अचेत हो गए थे कि गाने के लिए पैसे भी मिलते हैं. देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण (2000 में) से नवाजे जा चुके जसराज को 1975 में पद्मश्री सम्मान मिला था जिस पर वह इतने हैरान हुए थे कि उन्होंने चुप्पी ही साध ली थी.

उन्हें यकीन करने में काफी समय लगा हालांकि उसके बाद तो अनगिनत सम्मान और पुरस्कार उनकी झोली में आए.

उनके निधन से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की स्वर्णिम पीढ़ी का एक और दैदीप्यमान दीप बुझ गया.

प्रधानमंत्री ने शोक प्रकट किया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने निधन पर शोक प्रकट करते हुए सोमवार को कहा कि उनके देहावसान से भारतीय शास्त्रीय विधा में एक बड़ी रिक्तता पैदा हो गई है.

प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ‘पंडित जसराज जी के दुर्भाग्यपूर्ण निधन से भारतीय शास्त्रीय विधा में एक बड़ी रिक्तता पैदा हो गई है. न केवल उनका संगीत अप्रतिम था, बल्कि उन्होंने कई अन्य शास्त्रीय गायकों के लिए अनोखे मार्गदर्शक के रूप में एक छाप छोड़ी. उनके परिवार और समस्त विश्व में उनके प्रशंसकों के प्रति संवेदना. ओम शांति.’

मोदी ने अपने ट्वीट के साथ पंडित जसराज के साथ अपनी कुछ पुरानी तस्वीरें भी ट्विटर पर डालीं जिनमें वह उन्हें सम्मानित कर रहे हैं.

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